रमेश कुमार दुबे

आम आदमी की उम्मीद और यकीन को धूमिल करने वाले नेता बन गए हैं केजरीवाल!

पत्रकार से नेता बने आम आदर्मी पार्टी के वरिष्‍ठ नेता आशुतोष के इस्‍तीफे ने पार्टी की नींव हिलाने का काम किया। भले ही केजरीवाल इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं करने की बात कर रहे हैं, लेकिन इतना तो तय है कि आम आदर्मी पार्टी अब खास आदमी पार्टी बन चुकी है। आशुतोष अरविंद केजरीवाल की तानाशाही और भ्रष्‍ट कार्यशैली के पहले शिकार नहीं हैं। इससे पहले

देश के हर कोने को सड़कों से जोड़ने में जुटी है मोदी सरकार

सत्‍ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सड़क निर्माण को प्राथमिकता दे रहे हैं। उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि शुरूआती चार साल में ही सरकार 28,531 किलोमीटर सड़क (हाईवे, एक्‍सप्रेसवे) बनाने में कामयाब रही है। दूसरी ओर इससे पहले की संप्रग सरकार अपने आखिरी चार साल में केवल 16,505 किलोमीटर सड़कों का ही निर्माण कर पाई थी। यह

आम जनता के लिए राहत और भ्रष्टाचारियों के लिए शामत साबित हो रहा डिजिटल इण्डिया!

गांवों में शहरी सुविधा मुहैया कराने वाली सैकड़ों योजनाएं शुरू हुईं लेकिन वे योजनाकारों के वातानुकूलित कमरों से आगे निकलकर गांव की पगडंडी तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती थीं। इसी तरह की एक योजना थी भारत नेट जिसके तहत देश भर की ग्राम पंचायतों को हाई स्‍पीड ब्राड ब्रैंड इंटरनेट से जोड़ने का लक्ष्‍य रखा गया था। दुर्भाग्‍यवश 2011 में शुरू हुई यह योजना

बाणसागर परियोजना : ये मोदी की कार्यशैली है कि दशकों से अटकी परियोजनाएं वर्षों में पूरी हो रहीं !

उत्‍तर प्रदेश, बिहार और मध्‍य प्रदेश के लिए संजीवनी रूपी बाणसागर नहर परियोजना का उद्घाटन आखिरकार हो ही गया। चालीस साल पहले शुरू हुई इस परियोजना के 20 साल तो काम शुरू होने में ही निकल गए। इस दौरान कई सरकारें आईं-गईं लेकिन इस परियोजना पर सिर्फ बातें-वादें हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि जो परियोजना 300 करोड़ रूपये में पूरी हो सकती थी

कांग्रेस की तरह मोदी सरकार की कृषि योजनाएं फाइलों तक नहीं सिमटीं, बल्कि जमीन पर पहुँच रही हैं!

अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए मोदी सरकार ने 14 खरीफ फसलों के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) में 180 रूपये से लेकर 1827 रूपये तक की भारी-भरकम बढ़ोत्‍तरी की है। राम तिल (नाइजर सीड) पर सबसे ज्‍यादा 1827 रूपये प्रति क्‍विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है जबकि मूंग के एमएसपी में 1400 रूपये का इजाफा किया गया है।

हवा-हवाई नहीं, ठोस नीतियों पर आधारित है किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के किसानों से संवाद करते हुए अपनी सरकार के कार्यों का ब्‍योरा दिया और 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की प्रतिबद्धता भी दुहराई। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के प्रयासों को आंकड़ों से पुष्‍ट भी किया। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के पांच साल (2009-14) में कृषि क्षेत्र के लिए बजट आवंटन 1.21 लाख करोड़ रुपये था जो

शिकंजी प्रकरण ने राहुल की अज्ञानता के साथ-साथ कांग्रेस की नाकामियों को भी उजागर किया है!

कांग्रेस में नई जान फूंकने की कवायद में जुटे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी अपने विचित्र–विचित्र बयानों से सुर्खियां बटोरने में माहिर हैं। कांग्रेस के अन्‍य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए उन्‍होंने सशक्‍तीकरण का एक ऐसा फार्मूला सुझाया जो किसी के गले नहीं उतरा। उनके मुताबिक इस देश में हुनर की कद्र करने वाले नहीं हैं। यही कारण है कि यहां

‘इसे मोदी इफेक्ट ही कहेंगे कि 30 महीने का काम 17 महीने में ही पूरा हो गया’

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी को बुनियादी ढांचा संबंधी परियोजनाओं की लेट-लेतीफी और उनकी बढ़ती लागत ने चिंता में डाल दिया। इसे देखते हुए उन्‍होंने सांख्‍यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्‍यन मंत्रालय से रिपोर्ट तलब की। मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भूमि अधिग्रहण संबंधी जटिलताओं और पर्यावरण संबंधी मंजूरी में देरी अर्थात जयंती टैक्‍स के कारण देश की

जेडीएस से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है !

कर्नाटक के घटनाक्रमों से एक बार फिर साबित हो गया कि कांग्रेस के लिए सत्‍ता साधन न होकर साध्‍य है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार, विशेषकर नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की मजबूरी के तहत बनने जा रही कांग्रेस-जनता दल (एस) सरकार कितनी टिकाऊ साबित होगी, यह तो आने वाला वक्‍त ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि ये गठबंधन करके कांग्रेस ने

मोटे अनाजों के जरिए कृषि क्षेत्र को मजबूत करने में जुटी मोदी सरकार !

देश में किसानों की बदहाली की सबसे बड़ी वजह है, कांग्रेसी शासन काल की एकांगी कृषि विकास नीति। आज अनाज के भरे हुए गोदाम के बावजूद देश में कुपोषण की व्‍यापकता है, तो इसका कारण भी आजादी के बाद की कांग्रेसी सरकारों द्वारा लम्बे समय तक चलाई गयीं खेती की अदूरदर्शी नीतियां हैं।