हर गाँव तक बिजली पहुँचाने में कामयाब रही मोदी सरकार !
आजादी के सत्तर साल बाद ही सही लेकिन अब तक अंधेरे में डूबे 18,452 से अधिक गांवों में समय सीमा से पहले बिजली पहुंचना एक बड़ी उपलब्धि है। गौरतलब है कि प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2015 को लाल किले की प्राचीर से एक हजार दिनों में देश के इन गांवों में बिजली पहुंचाने का समयबद्ध लक्ष्य तय किया था। इसके लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की गई, जिसके तहत ग्रामीण घरों और कृषि
सिंधु जल समझौता : नेहरू की ऐतिहासिक भूल को सुधारने में जुटी मोदी सरकार
सत्ता के लिए तुष्टिकरण के तो कई उदाहरण मिल जाएंगे, लेकिन अपनी संप्रभुता को गिरवी रखने के उदाहरण भारत के अलावा पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे। कोको द्वीप म्यांमार को उपहार में देना, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता ठुकराना, पंचशील समझौता, अपनी जमीन को बंजर बताना, सिंधु जल समझौता ऐसे ही कुछेक उदाहरण हैं।
राशन घोटाला : भ्रष्टाचार और झूठ के बेताज बादशाह हैं केजरीवाल !
कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश (आम आदमी पार्टी) से जनता ने उम्मीद की थी कि वह देश में शुचिता और जवाबदेही की राजनीति के एक नए युग का सूत्रपात करेगी, लेकिन वह केजरीवाल के झूठ और भ्रष्टाचार का शिकार बनकर रह गई। यही कारण है कि सरकार बनने के बाद से ही घोटाले सामने आ रहे हैं। राशन कार्ड के बदले अस्मत लूटने का कारनामा संभवत: पहली बार केजरीवाल के मंत्री ने किया होगा। इसके बाद तो
अन्ना को सबसे पहले अपने राजनीतिक शिष्य केजरीवाल के खिलाफ जनांदोलन करना चाहिए !
इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर अन्ना हजारे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दूसरे चरण का आगाज कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी राजनीतिक पैदाइश (अरविंद केजरीवाल) भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान बना रहे हैं। इतना ही नहीं, एक नई तरह की राजनीति करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल आजकल माफीनामा लेकर घूम रहे हैं। गौरतलब है कि ईमानदारी और स्वच्छता के नए प्रयोग के दावे और वादे के
कांग्रेस अधिवेशन : खयाली पुलाव वाली राजनीति भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएगी !
उत्तर प्रदेश की दो और बिहार के एक लोकसभा सीटों के लिए हुए उप चुनाव में नापाक जातिवादी गठजोड़ की जीत क्या हुई, राजनीति में नए-नए समीकरण बैठाने की मुहिम को पंख लग गए। 2019 के आम चुनाव में सीटों की संख्या और मत प्रतिशत को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं। कांग्रेस की स्थिति तो बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाली है। जिन उप चुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित होकर वह
महिलाओं को चूल्हे के धुंए से आजादी दिलाने में कामयाब रही मोदी सरकार !
आजादी के बाद गरीबी मिटाने की सैकड़ों योजनाओं के बावजूद गरीबों की तादाद में अपेक्षित कमी नहीं आई तो इसका कारण है कि हमने उन कारणों को दूर नहीं किया जो लोगों को गरीबी के बाड़े में धकेलती हैं। आजादी के बाद से ही सरकारों का पूरा जोर सस्ता राशन और भत्ता बांटने पर रहा ताकि गरीबों में असंतोष न पनपे और वोट बैंक की राजनीति बदस्तूर चलती रहे। यदि सरकारों ने बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य,
पूर्वोत्तर में अबकी ‘वोट बैंक’ नहीं, ‘विकास’ की राजनीति का सिक्का चला है!
पूर्वोत्तर भारत में भारतीय जनता पार्टी को मिल रही कामयाबी के राजनीतिक मायने के साथ-साथ आर्थिक मायने भी हैं जो इस शोर में दब से गए हैं। आजादी के बाद अधिकांश सरकारों के लिए पूर्वोत्तर बेगाना ही रहा। उनके लिए गुवाहाटी ही पूर्वोत्तर का आदि और अंत दोनों था। जनजातियों में वर्गीय संघर्ष को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने और बांग्लादेशी घुसपैठियों को सुनियोजित तरीके से बसाकर
बेघरों को घर मुहैया कराने में जुटी मोदी सरकार !
दुनिया के सबसे उपजाऊ मैदानों, सदानीरा नदियों और मेहनतकश आबादी के बावजूद आज देश के करोड़ों लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है तो इसकी वजह भ्रष्टाचार ही है। इसी को देखते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत से बाद आजाद होने वाले देश विकास के मामले में हमसे कई कदम आगे निकल गए हैं।
पकौड़े पर राजनीति छोड़ कांग्रेस यह बताए कि साठ सालों में बेरोजगारी ख़त्म क्यों नहीं हुई ?
रोजगार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पकौड़े के उदाहरण वाले बयान पर संसद से सड़क तक सियासत जारी है। कोई पकौड़े तल रहा है, तो कोई रेहड़ी पर पकौड़ा बेचकर अपनी सूखती राजनीति को पानी देने की कवायद में जुटा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पकौड़ा ब्रेक ले रहे हैं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्ष का कोई नुमाइंदा यह नहीं बता रहा है कि बेरोजगारी की समस्या ने इतना विकराल कैसे धारण किया? देखा जाए
मोदी केयर : गरीबी उन्मूलन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी ये योजना
अब तक की सरकारें गरीबों को दान-दक्षिणा वाली योजनाओं में उलझाए रखती थीं ताकि वोट बैंक की राजनीति पर आंच न आए। यही कारण है कि गरीबी उन्मूलन की सैकड़ों योजनाओं और लाखों करोड़ रूपये खर्च करने के बावजूद गरीबों की तादाद में अपेक्षित कमी नहीं आई। मोदी सरकार इन सबसे अलग है, क्योंकि वह गरीबों को समर्थ बना रही है ताकि वे उदारीकृत अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।