‘रेलवे के लिए मोदी सरकार ने साढ़े तीन साल में तीस साल के बराबर काम किया है’
इसबार बजट में रेलवे को लेकर कई महत्वपूर्ण एलान हुए हैं, जिनका असर आने वाले वक़्त में देखने को मिलेगा। लेकिन, गौर करें तो मोदी सरकार ने पिछले लगभग साढ़े तीन साल में ऐसे कई कदम उठाए हैं जो रेलवे का कायाकल्प करने वाले हैं। प्रधानमंत्री ने रेलवे को एक ऐसा इंजन बनाने का लक्ष्य रखा है जो नए भारत की दिशा में देश की विकास यात्रा को नई गति प्रदान करेगा। देखा जाए तो मोदी सरकार ने महज साढ़े तीन
मोदी सरकार के प्रयासों से वैश्विक विनिर्माण की धुरी बन रहा भारत !
आज भारत दुनिया भर की कंपनियों का बाजार बना है तो इसके लिए कांग्रेस सरकारों की भ्रष्ट और वोट बैंक की राजनीति जिम्मेदार है। आजादी के बाद से ही हमारे यहां बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटी) को विकास का पर्याय मान लिया गया। इसी का नतीजा है कि भारत की पहचान कच्चा माल आपूर्ति करने वाले देश के रूप में होने लगी है। दूसरी चूक यह हुई कि उदारीकरण के दौर
पूर्वोत्तर को प्रगति की मुख्यधारा से जोड़ने में जुटी मोदी सरकार !
1947 में देश के बंटवारे ने कई ऐसे विभाजन पैदा किए जिन्होंने इस उपमहाद्वीप को पीछे धकेलने का काम किया। यदि पूर्वोत्तर की गरीबी, बेकारी, अलगाववाद, आतंकवाद की जड़ तलाशी जाए तो वह देश विभाजन में मिलेगी। 1947 तक पूर्वोत्तर का समूचा आर्थिक तंत्र चटगांव बंदरगाह से जुड़ा था लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निर्माण से इस इलाके का कारोबारी ढांचा तहस-नहस हो गया। पूर्वोत्तर में जल
किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए भाजपा सरकारों की अनूठी पहल
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की खेती-किसानी की बदहाली पिछली सरकारों द्वारा लंबे समय तक कृषिगत आधारभूत ढांचा विशेषकर बिजली, सड़क, सिंचाई, बीज, उर्वरक, भंडारण, विपणन, प्रसंस्करण आदि की ओर ध्यान न दिए जाने का नतीजा है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी और जाति-धर्म की राजनीति करने वाली सरकारों के पास इतनी फुर्सत ही नहीं थी कि वे दूरगामी कृषि सुधारों की ओर ध्यान देतीं। यही कारण है
बिजली की बचत से बिजली क्रांति लाने की दिशा में बढ़ रही मोदी सरकार !
आजादी के बाद अन्य क्षेत्रों की भांति बिजली क्षेत्र का विकास भी विसंगतिपूर्ण रहा। गुणवत्तापूर्ण विद्युत् आपूर्ति हो या प्रति व्यक्ति खपत हर मामले में जमकर कागजी खानापूर्ति की गई। सबसे ज्यादा भेदभाव तो गांवों के साथ किया गया। बिजलीघर भले ही गांवों में लगे हों, लेकिन इनकी चारदीवारी के आगे अंधेरा ही छाया रहा। दूसरी ओर यहां से निकलने वाले खंभों व तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। इसी तरह उस गांव
गुजरात चुनाव : मंदिर दौड़ और जातिवादी गठजोड़ के बावजूद क्यों नहीं जीत सकी कांग्रेस ?
कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी की मंदिर दौड़ और जातिवादी नेताओं से गठजोड़ के बावजूद कांग्रेस को गुजरात में पराजय का मुंह देखना पड़ा। 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी आज इतनी कमजोर हो गई है कि वह गुजरात में अकेले चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवानी जैसे जातिवादी नेताओं से गठजोड़ करने पर मजबूर हुई। इसके बावजूद उसकी दाल नहीं
उर्वरकों की कमी दूर करने में कामयाब रही मोदी सरकार !
कांग्रेसी सरकारें हर स्तर पर बिचौलियों-मुफ्तखोरों की लंबी-चौड़ी फौज खड़ी करने के मामले में कुख्यात रही हैं। जिन–जिन राज्यों में कांग्रेस की जगह जातिवादी सरकारें आई उन्होंने तो भ्रष्टाचार को राजधर्म बना डाला। यहां उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित राशन घोटाले का उल्लेख प्रासंगिक है, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अनाज से लदी मालगाड़ी गोंडा से सीधे बांग्लादेश पहुंचा दी गई थी। इसी तरह करोड़ों लोग फर्जी पहचान के
भारत-ईरान की चाबहार परियोजना से सकते में चीन, अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर ओर अपनी कूटनीति का डंका मनवा रहे हैं। वर्षों से चीन भारत को चारों तरफ से घेरने की रणनीति के तहत पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बढ़ा रहा है। अब प्रधानमंत्री चीन व पाकिस्तान जैसे देशों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं। चीन के बढ़ते प्रभुत्व को कम करने के लिए प्रधानमंत्री ने सबसे पहले “लुक ईस्ट पॉलिसी” को “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” में बदला। आसियान और शंघाई कोऑपरेशन
चिंताजनक है यूपी निकाय चुनावों में एमआइएम का राजनीतिक उभार
उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली जीत से यह साबित हो गया कि प्रदेश की जनता अब जातिवादी राजनीति से तौबा कर चुकी है; लेकिन इन चुनावी नतीजों ने भारतीय राष्ट्र-राज्य के लिए एक नए खतरे का भी आगाज किया है जिसका विश्लेषण जरूरी है। स्थानीय निकाय चुनाव के घोषित नतीजों में हैदराबाद की घोर सांप्रदायिक पार्टी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआइएम) ने 29 सीटों पर
‘आप’ के पांच साल : व्यवस्था परिवर्तन के वादे से मोदी के अंधविरोध की राजनीति तक
अन्ना आंदोलन की कोख से पैदा हुई आम आदमी पार्टी (आप) अपनी स्थापना की पांचवी सालगिरह मनाने में जोर-शोर से जुटी है। दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले इस समारोह के लिए “क्रांति के पांच साल” नामक नारा दिया गया है। लेकिन जिस शुचिता और ईमानदारी के संकल्प के साथ पार्टी का गठन हुआ था, अब उसका कोई नामलेवा नहीं रह गया है।