तथाकथित सेक्युलर मीडिया को पत्रकार रोहित सरदाना का करारा जवाब
किले दरक रहे हैं। तनाव बढ़ रहा है। पहले तनाव टीवी की रिपोर्टों तक सीमित रहता था। फिर एंकरिंग में संपादकीय घोल देने तक आ पहुंचा। जब उतने में भी बात नहीं बनी तो ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, अखबार, हैंगआउट – जिसकी जहां तक पहुंच है, वो वहां तक जा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करने लगा।जब मठाधीशी टूटती है, तो वही होता है जो आज भारतीय टेलीविज़न में हो रहा है। कभी सेंसरशिप के खिलाफ़ नारा लगाने वाले कथित पत्रकार – एक दूसरे के खिलाफ़ तलवारें निकाल के तभी खड़े हुए हैं जब अपने अपने गढ़ बिखरते दिखने लगे हैं। क्यों कि उन्हें लगता था कि ये देश केवल वही और उतना ही सोचेगा और सोच सकता है – जितना वो चाहते और तय कर देते हैं। लेकिन ये क्या ? लोग तो किसी और की कही बातों पर भी ध्यान देने लगे।
‘मन की बात’ से बढ़ी रियो ओलंपिक में पदक जीतने की उम्मीद
विगत कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब ‘मन की बात’ में भारतीय खेलों को बेहतर बनाने की बात कही तो भारतीय खेल और खिलाड़ियों के साथ-साथ देशवासियों को उम्मीद की एक नयी किरण दिखाई दी। दरअसल यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर पूरे देश को मिलकर विचार करना पड़ेगा यह केवल अकेले सरकार का मसला नहीं है। हर बार जब देश के खिलाड़ी पदक जितने में कामयाब नहीं होते हैं अथवा इक्के-दुक्के होते हैं तो देश भर में एक चर्चा आम हो जाती है कि आखिर इतनी बड़ी आबादी में से नाम मात्र के खीलाड़ी ही पदक क्यों जीतते हैं?। लेकिन कभी भी किसी भी स्तर पर इसके समाधान के बारे नहीं सोचा गया।
बसपा के गुनाहगारों की कब होगी गिरफ्तारी?
किसी पार्टी को यह गलत फहमी नहीं होनी चाहिए उसके यहां विवादित बयानबाजों का अभाव है। ऐसे जोखिम सभी दलों के सामने आ सकते है। आज भारतीय जनता पार्टी अपने एक नेता के धृणित बयान से आलोचना का सामना कर रही है। अब बसपा भी अपने कुछ लोगों की नारेबाजी से असहज हो रही है।
मोदी और बीजेपी पर आरोप की राजनीति के अलावे अब किसी काम के नहीं रहे केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जनता ने सत्ता विकास के कार्यों और दिल्ली के भले के लिए सौंपी थी। लेकिन शायद दिल्ली की केजरीवाल सरकार काम करने के मूड में नहीं है। बल्कि केजरीवाल सरकार का पूरा ध्यान अपने काम पर कम और मोदी सरकार पर ज्यादा रहता है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को सत्ता संभाले लगभग डेढ़ वर्ष हो चुके हैं। लेकिन जनता के हितों के कार्यों को छोड़कर केजरीवाल
भारत से भला और कितनी बार मुँह की खाएगा पाकिस्तान?
देश के बंटवारा के बाद से ही पाकिस्तान कदम दर कदम भारत से मुंह की खाता रहा लेकिन वो इससे कोई सीख नहीं ले सका, अथवा लेने की कोशिश नहीं किया। उसके इरादे भारत और खासकर कश्मीर को लेकर कभी भी नेक नहीं रहे। वो उसी कबिलाई मानसिकता में आज भी जी रहा है, जिसकों सदियों पहले सभ्य समाज द्वारा नाकार दिया गया था। अपनी अंदरूनी मामलों से निबटने के बजाय पाकिस्तान हमेशा कश्मीर का राग अलापता रहता है, और यहां अस्थिरता पैदा करने और अलगाव को हवा देने में लगा रहता है। जबकि उस के खुद के आंतरिक मामले इतने जटिल है जो निकट भविष्य में पाकिस्तान को कई टूकड़ों में विभाजित कर सकता है।
गांधी की हत्या और संघ : वामपंथी कुतर्कों पर टिका एक मनगढ़ंत इतिहास
राजनेताओं को यह समझना होगा कि अपने राजनीतिक नफे-नुकसान के लिए किसी व्यक्ति या संस्था पर झूठे आरोप लगाना उचित परंपरा नहीं है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी शायद यह भूल गए थे कि अब वह दौर नहीं रहा, जब नेता प्रोपोगंडा करके किसी को बदनाम कर देते थे।
भारतीयता के विरूद्ध जारी षड्यंत्रों का रहस्योद्घाटन करती पुस्तकः ‘अखंड भारत संस्कृति ने जोड़ा राजनीति ने तोड़ा’
वर्तमान इंटरनेट, कप्यूटर और स्मार्ट फोन आदि के दौर में पुस्तकों का बचा रह जाना हैरान कर सकता है। वह भी जब ये गैजेट्स मनुष्य के दैनन्दिन जीवन का अनिवार्य हिस्सा हो चले हों। आजकल इंटरनेट पर ‘सबकुछ’ मिलता है। इस ‘सबकुछ’ का आकर्षण हमें बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। इसमें रचनाओं का अंबार है, जिसे एक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इसमें एक बहुत बड़ा भ्रम भी है जिससे हमें खबरदार होने की जरूररत है।
वैचारिक दिवालियेपन का शिकार हो गयी है आम आदमी पार्टी
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए लगभग डेढ़ वर्ष का समय हुआ है, इस दौरान यह सरकार अपने जनहित के अपने सकारात्मक कामों के लिए कम, फिजूल के हंगामों के लिए बहुत अधिक चर्चा में रही है। कभी दिल्ली पुलिस की मांग के जरिये तो कभी राज्यपाल नजीब जंग से बिना बात जंग छेड़कर यह पार्टी बवाल करती रही है। आजकल यह अपने विधायकों की गिरफ्तारी को लेकर धरती-आकाश एक किए हुए है।
संविधान का उल्लंघन केजरीवाल की रणनीति का हिस्सा है
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के नेता खुद को संविधान से उपर समझने लगे। वे हर उस संवौधानिक प्रक्रिया को तुच्छ समझने लगे जिसका समर्थन भारतीय संविधान करता है। केजरीवाल ने संविधान के इतर जाकर ही संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी जिसको बाद में माननीय न्यायलय द्वारा असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस वाकया से सबक लेने और संवैधानिक प्रक्रियाओं का एक फिर से उल्लंघन किया और दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के लिए जनमत संग्रह कराने का राग अलापने लगे।
‘हिंदुत्व’ की विचारधारा से ही निकलेगा समाजिक भेद-भाव का समाधान
कभी आस पास नजर डालने पर भी काफ़ी कुछ नजर आता है। जैसे अभी हाल में ही समाचारों में तुर्की दिखा था। आधुनिक तुर्की का इतिहास देखेंगे तो कई चीज़ें नजर आ जाएँगी। किसी जमाने में यहाँ ओटोमन साम्राज्य हुआ करता था। इस साम्राज्य ने करीब सात सौ साल राज किया। ये कोई एक देश में नहीं बल्कि यूरोप, एशिया, अफ्रीका यानि कई महादेशों में फैला हुआ साम्राज्य था। यहीं के खलीफा का इस्लामिक राज्य स्थापित करने के लिए भारत में भयावह मोपाला दंगे हुए थे। शायद कई लोगों ने मोपला दंगे का नाम ना सुना हो, लेकिन केरल में हुए इस दंगे की भयावहता ऐसी थी की उसके बारे में एनी बेसेंट कहती थी कि भगवान ना करे हमें कभी फिर से खलीफा और इस्लामिक हुकूमत के बुरे सपने को झेलना पड़े