विपक्ष की विचारशून्यता
एक राष्ट्रीय विचार के साथ विपक्षी एकजुटता की मंशा रखने से पहले राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्र को लेकर रचनात्मक विचार क्या है, अपनी यात्रा में बताना चाहिए।
जीएसटी: विपक्ष का दोहरा चरित्र
यह मानना सिरे से गलत है कि जीएसटी दरों में किसी प्रकार के निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं। इसमें राज्यों की पर्याप्त भूमिका और हिस्सेदारी है।
रामजन्मभूमि आंदोलन : सेक्युलरिज्म के छद्म आवरण के खिलाफ प्रतिवाद का प्रथम स्वर
सेक्युलरिज्म के ‘छद्म’ आवरण के खिलाफ प्रतिवाद के पहले और मुखर स्वर के रूप में अगर किसी आंदोलन का महत्व दिखता है‚ तो वह राम जन्मभूमि आंदोलन है।
मोदी सरकार के साहसिक क़दमों से बदल रही देश के अर्थतंत्र की तस्वीर
महाभारत के शांतिपर्व में एक श्लोक है- स्वं प्रियं तु परित्यज्य यद् यल्लोकहितं भवेत्, अर्थात राजा को अपने प्रिय लगने वाले कार्य की बजाय वही कार्य करना चाहिए जिसमे सबका हित हो। केंद्र की मोदी सरकार के गत साढ़े चार वर्ष के कार्यों का मूल्यांकन करते समय महाभारत में उद्धृत यह श्लोक और इसका भावार्थ स्वाभाविक रूप से जेहन में आता हैl दरअसल
जयंती विशेष : भारतीयता के चिंतक दीन दयाल उपाध्याय
राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को लेकर दुनिया के तमाम विद्वानों ने अलग-अलग वैचारिक दर्शन प्रतिपादित किए हैं। लगभग प्रत्येक विचारधारा समाज के राजनीतिक, आर्थिक उन्नति के मूल सूत्र के रूप में खुद को प्रस्तुत करती है। पूँजीवाद हो, साम्यवाद हो अथवा समाजवाद हो, प्रत्येक विचारधारा समाज की समस्याओं का समाधान देने के दावे के साथ
अटल बिहारी वाजपेयी : ‘मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?’
सोलह अगस्त की तारीख इतिहास में एक युग के अवसान के रूप में दर्ज हो गयी है। राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी अस्वस्थता के बाद निधन हो गया। अटल जी को याद करते हुए उनकी एक कविता का जिक्र यहाँ समीचीन लगता है- “ठन गई, मौत से ठन गई/ जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था/ रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।“
ममता बनर्जी की बौखलाहट के पीछे यह भय छिपा है कि कहीं ‘बंगाल का त्रिपुरा’ न हो जाए!
उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मिली प्रचंड जीत के बाद अप्रैल, 2017 में ओड़िसा में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में अमित शाह ने एक बयान दिया था, जो तब सुर्ख़ियों में छाया रहा। उत्तर प्रदेश की प्रचंड जीत के उत्सव में झूम रहे भाजपा कार्यकर्ताओं से शाह ने कहा था कि यह जीत बड़ी है, लेकिन यह भाजपा का स्वर्णकाल नहीं है। भाजपा का स्वर्णकाल तब आयेगा
अलग मजहबी मुल्क की मांग करने वालों को पाकिस्तान से शरण देने की गुहार लगानी चाहिए !
आये दिन किसी न किसी भाजपा नेता, खासकर गिरिराज सिंह, का हवाला देते हुए राष्ट्रवादियों पर यह आरोप लगता है कि इन्होंने पाकिस्तान भेजने का ठेका ले रखा है। ‘पाकिस्तान चले जाएँ’ का प्रयोग जितना हिदायत के नाते भाजपाइयों ने नहीं किया उससे ज्यादा प्रयोग तो उनसे असहमत होने वालों ने इसे विक्टिम कार्ड के रूप में किया है। मसलन, अकसर देखने को मिलता है कि
डीबीटी प्रणाली के द्वारा स्थापित हो रही आर्थिक सशक्तिकरण की पारदर्शी व्यवस्था
एक प्रश्न है कि किसी भी व्यक्ति के सशक्त होने का व्यवहारिक मानदंड क्या है ? इस सवाल के जवाब में व्यवहारिकता के सर्वाधिक करीब उत्तर नजर आता है- आर्थिक मजबूती। व्यक्ति आर्थिक तौर पर जितना सम्पन्न होता है, समाज के बीच उतने ही सशक्त रूप में आत्मविश्वास के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। निश्चित तौर पर आर्थिक मजबूती के लिए अर्थ को अर्जित करना ही पड़ता है। भारतीय अर्थ परम्परा में धर्म और
गुजरात ने अगर 2014 को दोहरा दिया तो मिशन-150 जरूर प्राप्त करेगी भाजपा !
गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही प्रदेश में सियासी पारा उफान पर है। आमतौर पर गुजरात की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस दो ही दलों की सीधी लड़ाई रहती है। फिर भी अलग-अलग चुनावों के दौरान कुछ छोटे दलों का उभार देखने को मिलता रहा है। लेकिन अबतक के नतीजों का मजमून यही है कि गुजरात की राजनीति भाजपा बनाम कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही रही है और लंबे समय से कांग्रेस का