शिवानन्द द्विवेदी

परिवारवादी राजनीति पर प्रधानमंत्री का कड़ा संदेश

भारतीय राजनीति में परिवारवाद की बहस एकबार फिर चर्चा में है। चर्चा की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दिया गया एक बयान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि अपने परिवार वालों के टिकट के लिए पार्टी नेता दबाव न बनाएं। भाजपा की आंतरिक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया यह

सियासी ड्रामे से विफलताओं पर परदा डालने की क़वायद

उत्तर प्रदेश की राजनीति में चल रहा सत्ताधारी परिवारवादी कुनबे का सियासी ड्रामा आखिरकार उसी बिंदु पर खत्म हुआ जिस पर उसे खत्म होना था। सियासी ड्रामे का यह अंतिम चरण कहा जा सकता है। इसके पहले भी अक्तूबर महीने में यह उठा-पटक तेज हुई थी। उस समय सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष

भाजपा की अध्ययन परंपरा और वर्तमान परिदृश्य

गोयबल्स थ्योरी कहती है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच लगने लगता है। इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ने ऐसे अनेक झूठ हजार बार बोले हैं। उन्हीं में से एक बड़ा झूठ यह भी कि राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग, खासकर संघ और भाजपा वाले, पढ़ते-लिखते नहीं है। यह कोरा झूठ कम से कम हजार बार, सैकड़ों तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा बोला गया होगा। 21 दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष

दीन दयाल उपाध्याय के विचारों में अन्तर्निहित है मानव-कल्याण का मार्ग

यह वर्ष देश के लिए दीन दयाल जन्म शताब्दी के रूप में मनाने का अवसर है। भारतीय जनता पार्टी इसे गरीब कल्याण वर्ष के रूप में मना रही है। वहीँ देश के तमाम विचारशील संगठन इस अवसर पर अनेक व्याख्यानमाला, कार्यक्रम, सेमीनार आदि का आयोजन कर रहे हैं। इसी क्रम में दीन दयाल शोध संस्थान द्वारा ‘दीन दयाल कथा’ कार्यक्रम का आयोजन देश में चार स्थानों पर करने की योजना बनाई गयी है। इसकी

चार दशकों के राजनीतिक सफर में हर अवसर पर विफल रहे हैं मनमोहन सिंह

एक पत्रकार वार्ता (जनवरी 2014) में डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि मेरा मूल्यांकन इतिहास करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि चार दशक तक किसी एक राजनीतिक दल के साथ पूरी वफादारी और राजनीतिक निष्ठा से सरकार में शीर्ष पदों पर काम करने वाले व्यक्ति का मूल्यांकन होना स्वाभाविक है। इसमें कोई शक नहीं कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में डॉ मनमोहन सिंह उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्हें

बहुत याद आयेंगे चो रामास्वामी

मोदी को मौत का सौदागर सबसे पहले 2007 में कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी ने कहा था। लेकिन 2007 के पांच वर्ष बाद 2012 में एकबार फिर एक क्षण ऐसा आया जब किसी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। ऐसा कहने वाला कोई और नहीं नरेंद्र मोदी के अपने दोस्त और तमिल सप्ताहिक पत्रिका तुगलक के संपादक चो रामास्वामी थे। फर्क सिर्फ इतना था कि 2007 में सोनिया गांधी ने मोदी से नफरत में आकंठ डूबकर

सोशल मीडिया के जरिये जन-जन तक पहुँचने में कामयाब सरकार

लोक कल्याणकारी राज्य में लोक की चिंता राज्य की चिंता होती है। लोक का सुख-दुःख, कष्ट, पीड़ा सरकार से सीधे जुड़ी होती है। पिछली सरकारों की तुलना में अगर वर्तमान सरकार का कार्यकाल देखें तो गत ढाई साल में इस देश ने कई बदलाव देखे हैं। लेकिन एक बड़ा बदलाव यह दिखा है कि अब सरकार के मंत्री और मंत्रालय जनता के ज्यादा करीब उपस्थिति बना पाने में सफल हुए हैं। डिजिटल इण्डिया के प्रसार

अगर सावरकर न रोकते तो संगीत छोड़ ही चुकी थीं लता मंगेशकर!

सुर-साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रशसंक, उनका सम्मान करने वाले तो इस देश और दुनिया में करोड़ो होंगे। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि लता मंगेशकर किन लोगों को पसंद करती हैं, किनका सम्मान करती हैं और किसने उन्हें संगीत क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया ? यतीन्द्र मिश्र की किताब ‘लता सुर-गाथा’ यह राज खोलती है। हिंदी के कवि, सम्पादक और सिनेमा के अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने लता

निकाय चुनाव: नोटबंदी के निर्णय पर जनता की मुहर

आठ नवंबर को रात आठ बजे राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सौ और एक हजार के नोट बंद होने का फैसला सुनाकर सबको चौंका दिया था। इस बात को अब बीस दिन से ज्यादा हो गए हैं लेकिन आज भी यह विमर्श का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। हालांकि विमुद्रीकरण के फैसले के बाद से ही इसके पक्ष-विपक्ष में बहस शुरू हो गयी, जो अब भी चल रही है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस,

पीओके पर फारुक अब्दुल्ला का बेसुरा राग

कश्मीर को को लेकर बंटवारे के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की खटास किसी से छिपी नहीं है। गाहे-बगाहे यह मुद्दा अन्तरराष्ट्रीय पटल पर भी उठाया जाता रहा है। तमाम विवादों और समझौतों के बीच खुद को भारतीय माननें वाले अथवा भारतीय होने का गर्व करने वाले किसी भी आम जन या ख़ास के मन में इस बात को लेकर शायद ही कोई संदेह हो कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पार कश्मीर का जो