उत्तरप्रदेश सरकार के मंत्री और मुस्लिम नेता आजम खान ने साबित कर दिया है कि उन्हें मर्यादा में रहना जरा भी नहीं आता। इस बार उन्होंने अपनी बदजुबान से डॉ. भीमराव अम्बेडकर का अपमान किया है। संभवत: यह उनके शिक्षण और प्रशिक्षण का दोष है कि उन्होंने एक बार फिर अपनी दूषित मानसिकता को जाहिर कर दिया। आजम खान ने भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम सड़कछाप भाषा में उच्चारित किया और उनकी प्रतिमा का मजाक उड़ाते हुए अपमानजनक टिप्पणी की।
उत्तर प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर जब सवाल उठ रहे हैं, तब अखिलेश यादव पुलिस व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहते हुए कहते हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने आजम खान की भैंस खोजी और आगरा में भाजपा नेता का कुत्ता भी ढूंढ़ लाए हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान उनकी असंवेदनशीलता का द्योतक है, जिन्हें न तो देश के महापुरुष के अपमान से फर्क पड़ा और न ही वह राज्य में पनप रहे ‘गुंडाराज’ से ही चिंतित दिखाई दिए। मुख्यमंत्री की चुप्पी उनके मंत्री द्वारा डॉ. अंबेडकर के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी पर स्वीकृति की मुहर भी लगाती है।
गाजियाबाद में हज हाउस के उद्घाटन कार्यक्रम में आजम खान ने डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहा – इस ‘आदमी’ के हाथ का इशारा कहता है कि जहां मैं खड़ा हूं वह तो मेरी जमीन है ही, सामने का खाली पड़ा प्लॉट भी मेरा है। आजम खान समाजवादी पार्टी के बड़े नेता हैं। पार्टी उनके सहारे मुसलमानों के वोट तलाशती है। यही कारण है कि जब वे देश के महापुरुष डॉ. आंबेडकर के लिए घटिया भाषा का इस्तेमाल कर उनका उपहास उड़ा रहे थे, तब वहाँ बैठे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खामोश थे। उन्होंने अपने मंत्री और सपा नेता आज़म खान के इस घटिया बयान का विरोध नहीं किया। बल्कि मुख्यमंत्री स्वयं भी अतार्किक बातें करने में शामिल हो गए। उत्तरप्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर जब सवाल उठ रहे हैं, तब अखिलेश यादव पुलिस व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहते हुए उसी मंच से कहते हैं कि उत्तरप्रदेश पुलिस ने आजम खान की भैंस खोजी और आगरा में भाजपा नेता का कुत्ता भी ढूंढ़ लाए हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान उनकी असंवेदनशीलता का द्योतक है, जिन्हें न तो देश के महापुरुष के अपमान से फर्क पड़ा और न ही वह राज्य में पनप रहे ‘गुंडाराज’ से ही चिंतित दिखाई दिए। मुख्यमंत्री की चुप्पी उनके मंत्री द्वारा डॉ. आंबेडकर के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी पर स्वीकृति की मुहर भी लगाती है।
आजम खान अपने बयान को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि बसपा का तो नारा ही है, जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। इसी नारे को साकार करते हुए बसपा ने जमीनों पर कब्जे करके सबको पीछे छोड़ दिया। यदि हम आजम खान के पूरे बयान का विश्लेषण करें, तब पाएंगे कि वह यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि डॉ. अंबेडकर अंगुली दिखाकर बसपा से कह रहे हैं कि जमीनों पर कब्जा करो। अतिक्रमण करो। यकीनन आजम खान दया के पात्र हैं। उन्हें फिर से किसी ढंग के विद्यालय में पढऩे के लिए भेजा जाना चाहिए ताकि कुछ शिक्षा हासिल कर सकें। आजम खान को शायद नहीं मालूम होगा कि बाबा साहेब की ‘अंगुली’ का वास्तविक संदेश क्या है? क्योंकि उनकी तालीम दूसरी किस्म की हुई है। बाबा साहेब की सबसे बड़ी सीख भी यही है कि ‘शिक्षित बनो।’ बाबा साहेब मानते थे कि बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। डॉ. अंबेडकर की सीखों और उनके विचारों से आजम खान को चिढ़ क्यों है, यह तो वह ही बता सकते हैं। लेकिन, समाजवादी पार्टी को समझना चाहिए कि बाबा साहेब का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है। सपा को अपने नेता की इस दूषित मानसिकता के लिए माफी माँगनी चाहिए।
बहरहाल, आजम खान के बयान पर बहुजन समाजवादी पार्टी ने नाराजगी जताई है। लेकिन, बसपा ने अभी तक अपनी ‘नाराजगी’ को प्रकट नहीं किया है। सपा तो इसपर मौन है ही। खैर, ज्यादा अच्छा तो यह होगा कि आजम खान की बदजुबानी का प्रतिकार आम समाज करे। उत्तरप्रदेश के चुनाव में जिस वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए आजम खान ने देश के गौरव बाबा साहेब का अपमान किया है, समाज को एकजुट होकर उसी राजनीति को जवाब देना चाहिए। संपूर्ण समाज की ओर से आजम जैसे संकीर्ण मानसिकता के लोगों को संदेश दिया जाना चाहिए कि अपनी राजनीति को साधने के लिए महापुरुषों के अपमान की छूट किसी को नहीं है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)