बैंकिंग क्षेत्र की सकल गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) कम होकर मार्च 2022 में 6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई, जो वर्ष 2016 के बाद सबसे कम है। वहीं, शुद्ध एनपीए कम होकर मार्च 2022 में 1.7 प्रतिशत हो गई। आंकड़ों से साफ है कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से अछूता है। बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता में इजाफा हुआ है और आगामी तिमाहियों में भी इसमें बेहतरी आने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारतीय स्टेट बैंक का शुद्ध मुनाफा 31,676 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ़ बड़ौदा का 7,272 करोड़ रुपए, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का 5,265 करोड़ रुपए, यूको बैंक का 930 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 1,151 करोड़ रुपए, केनरा बैंक का 5,678 करोड़ रुपए, इंडियन बैंक का 3,945 करोड़ रुपए, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का 1,045 करोड़ रुपए और पंजाब नेशनल बैंक का 3,456 करोड़ रुपए रहा, जो सरकारी बैंकों के प्रदर्शन में आ रहे सुधार के संकेत हैं।
बैंकिंग क्षेत्र की सकल गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) कम होकर मार्च 2022 में 6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई, जो वर्ष 2016 के बाद सबसे कम है। वहीं, शुद्ध एनपीए कम होकर मार्च 2022 में 1.7 प्रतिशत हो गई। आंकड़ों से साफ है कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से अछूता है। बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता में इजाफा हुआ है और आगामी तिमाहियों में भी इसमें बेहतरी आने की संभावना है।
बैंकों का सकल एनपीए और शुद्ध एनपीए महामारी के पहले के स्तर से बेहतर हुआ है। अब ऋण खाते फिसलकर एनपीए में कम तब्दील हो रहे हैं। बैंकों के मुनाफे में तेजी आने की वजह से बैंक एनपीए के लिए पर्याप्त प्रावधान कर पा रहे हैं।
भारतीय बैंकों की संपत्ति गुणवत्ता पिछले दशक के शुरुआती दौर में गिरनी शुरू हुई थी। मार्च 2018 में सकल एनपीए कुल कर्ज का 11.5 प्रतिशत हो गया। तब से बैंकों की संपत्ति गुणवत्ता में सुधार आ रहा है और पिछले 1 सालों में संपत्ति गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार आया है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए मार्च 2021 में 7.3 प्रतिशत था, जो सितंबर 2021 में कम होकर 6.9 प्रतिशत हो गया।
वित्त वर्ष 2021-22 की तीसरी तिमाही में निजी बैंकों में आईडीबीआई बैंक का प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात (पीसीआर) 97.10 प्रतिशत है, जो सबसे बेहतर है। सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र का पीसीआर 93.77 प्रतिशत है, जो सबसे अधिक है। दूसरे नंबर पर इंडियन ओवरसीज बैंक का पीसीआर 92.33 प्रतिशत है। भारतीय स्टेट बैंक का पीसीआर 88.32 प्रतिशत है।
वहीं, पिछले वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में निजी बैंकों में आईडीबीआई का गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) सबसे अधिक 20.56 प्रतिशत है, जबकि यस बैंक का एनपीए 14.65 प्रतिशत और बंधन बैंक का एनपीए 10.81 प्रतिशत है। सरकारी बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया का एनपीए 15.16 प्रतिशत है, जबकि पंजाब एंड सिंध बैंक का एनपीए 14.44 प्रतिशत और पंजाब नेशनल बैंक का एनपीए 12.88 प्रतिशत है।
विगत वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में निजी बैंकों में बंधन बैंक का शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) 7.8 प्रतिशत के साथ अधिकतम था। आईडीएफसी बैंक का एनआईएम 5.9 प्रतिशत था। सरकारी बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का एनआईएम 3.77 प्रतिशत के साथ अधिकतम था, जबकि भारतीय स्टेट बैंक का एनआईएम 3.15 प्रतिशत था। एनआईएम जमा पर दिए जा रहे ब्याज और ऋण पर वसूले जाने वाले ब्याज का अंतर है और इस अंतर से बैंक का मुनाफा निर्धारित होता है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 3 जून, 2022 को समाप्त हुए पखवाड़े में बैंकों के ऋण में पिछले साल के मुक़ाबले 13.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो विगत 3 वर्षों में सर्वाधिक है। पिछले साल इसमें महज 5.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। इसी अवधि में बैंकों ने 1.02 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिया, जिससे बैंकों का ऋण बढ़कर 121.40 लाख करोड़ रुपये हो गया। 20 मई 2022 तक ऋण वृद्धि सालाना आधार पर 12.1 प्रतिशत रही, जो एक साल पहले महज 6 प्रतिशत थी। इसतरह, एक साल के अंदर ऋण वृद्धि दर दोगुनी हो गई।
आलोच्य अवधि में बैंकों में 1.59 लाख करोड़ रुपये जमा बढ़ा, जिससे बढ़कर यह 167.33 लाख करोड़ रुपये हो गया। चालू वित्त वर्ष में बैंकों में 2.5 लाख करोड़ रुपये जमा की बढ़ोतरी अब तक हो चुकी है और सालाना आधार पर इसमें 9.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
देश में सूक्ष्म वित्त क्षेत्र का सकल ऋण पोर्टफोलियो मार्च 2022 तक 10 प्रतिशत तक बढ़कर 2,85,441 करोड़ रुपये हो गया, जो मार्च 2021 तक 2,579,377 करोड़ रुपये था। वहीं, क्रमिक रूप से यह पिछले वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही तक 2,56,058 करोड़ रुपये था। इसतरह, पिछले वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही के दौरान ऋण वृद्धि में आई तेजी के कारण पर वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में संतोषजनक वृद्धि हुई।
दो अंकों में ऋण वृद्धि का कारण सिर्फ ऋण की मांग में तेजी आना नहीं है। महामारी के दौरान कंपनियों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों में कमी आई थी, जो अब सामान्य हो रही है। खुदरा ऋण की तेज वृद्धि में आवास ऋण का महत्वपूर्ण योगदान है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण उधारी दर में वृद्धि भी होना है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार उधारी में वृद्धि संतोषजनक है। अब यह सालाना आधार पर तकरीबन 12 प्रतिशत है, जबकि पिछले साल यह केवल 5 से 6 प्रतिशत थी।
कोरोना महामारी के बावजूद बैंक मुनाफा कमा रहे हैं और एनपीए को भी कम करने में सफल हो रहे हैं, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)