अपने मूल विषय पर लौटें तो बछड़े को काटने वालों के हाथों में कांग्रेस के झंडे थे। बाद में इन कार्यकर्ताओं को पार्टी से निलंबित करने की बात भी कांग्रेस की तरफ से कही गयी। दरअसल गौ हत्या जैसे सवालों पर राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस को अपने लोगों की ऐसी घटिया हरकतों पर लगाम लगाने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए, अन्यथा ऐसी हरकतें उसकी बदहाल राजनीतिक दशा को और बदतर कर देंगी।
केरल के कन्नूर में यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा गाय काटने की घटना निहायत घटिया, शर्मनाक और शैतानी हरकत है। इसे देश में गाय के नाम पर माहौल को बिगाड़ने की साज़िश माना जाना चाहिए। ऐसे लोगों को सख़्त सज़ा मिलनी चाहिए। यह मत भूलिए कि केरल के कन्नूर जिले में लगातार भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं की हत्याएं भी हो रही हैं।
हालांकि पहले तो कांग्रेस इन कार्यकर्ताओं को अपना मानने से ही इनकार कर रही थी, मगर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा घटना की आलोचना किए जाने के बाद पार्टी तुरंत हरकत में आई और इन कार्यकर्ताओं को आनन-फानन में निलंबित कर दिया गया। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘ऐसे लोगों के लिए कांग्रेस में कोई जगह नहीं है। इनको निलंबित कर दिया गया है।’
इन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने शनिवार को कोच्चि में भाजपा कार्यालय के सामने बीफ फेस्टिवल (गोमांस समारोह) आयोजित किया था। इसमें इन्होंने खुले वाहन में सरेआम बछड़ा काटा। फिर वहीं उसका मांस पकाया, खाया और लोगों के बीच बांटा। यह अत्यंत जघन्यतम कृत्य है।
कांग्रेस के ये कार्यकर्ता केंद्र सरकार द्वारा ह्त्या के लिए मवेशियों की खरीद पर प्रतिबंध के फैसले का विरोध कर रहे थे। इसमें कोई शक नहीं है कि केरल में जो हुआ वह विचारहीन और नृशंस है। यहाँ बड़ा प्रश्न यह है कि क्या देश के तथाकथित सेकुलर और वाम खेमे द्वारा गाय के नाम पर भारत को बांटने का कुचक्र नहीं रचा जा रहा है? यह देश को बाटने की सोची-समझी रणनीति है। केरल देश के लिए दूसरा कश्मीर साबित न हो इस बात के पुख्ता इंतजाम करने होंगे।
दरअसल केरल एक बहुत विकट राज्य के रूप में उभर रहा है। वाम शासन में केरल तेजी से इस्लामी आतंकवाद की प्रजनन भूमि में बदल रहा है। केरल के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना है और वे इन ताकतों के खिलाफ एक सेतु के रूप में संघ को देखते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने हिन्दू विरोधी रुख के कारण केरल की मूल परम्पराओं और जीवन मूल्यों को नष्ट करने की कोशिश की थी। युवा पीढ़ी अब एक बार फिर अपनी जड़ों से जुड़ना चाहती है, और वह संघ और उसके अनुसंगों में अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान को देख रही है। इसके अतिरिक्त मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में उसे भाजपा में अकूत संभावनाएं नजर आती हैं।
बहारहाल, अपने मूल विषय पर लौटें तो बछड़े को काटने वालों के हाथों में कांग्रेस के झंडे थे। बाद में इन कार्यकर्ताओं को पार्टी से निलंबित करने की बात भी कांग्रेस की तरफ से कही गयी। दरअसल गौ हत्या जैसे सवालों पर राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस को अपने लोगों की ऐसी घटिया हरकतों पर लगाम लगाने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए, अन्यथा ऐसी हरकतें उसकी चरमराई राजनीतिक दशा को और बदतर कर देंगी।
पार्टी का झंडा लेकर गाय काटने की यह देश में शायद पहली कैमरे में दर्ज वारदात होगी। खाने का अधिकार अगर संवैधानिक है, तो एक-दूसरे का सम्मान करना भी संविधान की ही भावना है। पब्लिक में आप किसी के सामने मुर्गा या बकरा तक नहीं काट सकते, क्योंकि बात भावनाओं की नहीं है, इसका दिमाग़ी असर भी ख़राब होता है।
केरल के कन्नूर में यूथ कांग्रेस के नेताओं ने जो कांड किया है, उसका एक ही मकसद लगता है विरोध के नाम पर दूसरे समुदायों में चिढ़ पैदा की जाए। केंद्र सरकार ने पशु बाजार में बूचड़खानों के लिए जानवरों को खरीदने और बेचने पर रोक लगा दी है। इसी के विरोध में ये गोकशी की गई। केरल की वामपंथी सरकार अलग ही इस प्रतिबन्ध का विरोध कर रही है।
अब यह स्वीकार कर लेना होगा कि गॉड्स ओन कंट्री यानी “ईश्वर के अपने देश केरल” में हालात बदत्तर होते जा रहे हैं। वहां पर राजनीतिक कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं। उनके हाथ-पैर काट दिए जाते हैं। केरल अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा के लिए जाना जाता है। समुद्र के किनारे स्थित केरल के तट अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। पर इस शांतिपूर्ण माहौल के पीछे कत्लेआम हो रहे हैं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के। इधर भाजपा या संघ से जुड़ा होना खतरे से खाली नहीं है। और अब बछड़े को जिस तरह से मारा गया उससे सारा देश सन्न है।
दरअसल लेफ्ट फ्रंट के नेताओं की पेशानी से केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत के कारण पसीना छूट रहा है। भाजपा केरल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभर रही है। वैसे केरल में भाजपा एक राजनीतिक पार्टी के रूप में 1987 के विधानसभा चुनाव से अपनी मौजूदगी करा दी थी। केरल में भाजपा को खड़ा करने में जनसंघ के दौर में पार्टी से जुड़े राजगोपाल का खास रोल रहा है। ओ. राजगोपाल ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की नीतियों से प्रभावित होकर 1960 में ही भारतीय जनसंघ से जुड़कर केरल राजनीति में कदम रखा। कार्यकर्ताओं के सतत प्रयास से पिछले कुछ सालों में केरल की धरती पर भाजपा की नींव यक़ीनन मजबूत हुई है। इसके चलते वहां पर माकपा और मुस्लिम लीग के लोगों में खासी बौखलाहट है। कन्नूर की घटना को दबा देने से बात नहीं बनेगी। और यह बात दबने वाली भी नहीं है।
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)