खुद को धर्मनिरपेक्षता की जननी बताने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता और उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुस्लिम कर्मचारियों के लिये 90 मिनट का अवकाश तय किया है। ये अवकाश उन्हें नमाज़ अदा करने के लिये मिलेगा। इस विषय से संबंधित प्रस्ताव कैबिनेट में पास भी हो गया है। दरअसल कांग्रेस का यह चुनावी पैंतरा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं है। जिस प्रांत में अराजकता, भ्रष्टाचार और लचर कानून व्यवस्था अपने चरम पर है, वहां इस प्रकार की घोषणा के क्या मायने है? यह वह समय है जब रोजगार और गरीबी के कारण पहाड़ से पालायन लगातार जारी है, मुख्यमंत्री का ध्यान इस पर न जाकर मुसलमानों के मज़हबी तुष्टिकरण पर ज्यादा है। इस घोषणा का औचित्य क्या था, जबकि यह सर्वविदित है कि मुसलमान कर्मचारी जो देश के किसी भी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत है, उनको बिना किसी व्यावधान के जुमे की नमाज़ की स्वतंत्रता होती है। उसके बाद भी अगर सरकार इस तरह के फैसले लेती है, तो इससे यह साफ हो जाता है कि उत्तराखंड की कांग्रेसी सरकार की मानसिकता क्या है ?
हरीश रावत द्वारा मुस्लिम कर्मचारियों के नमाज़ हेतु 90 मिनट का अवकाश घोषित किया जाना भी कांग्रेस के तुष्टिकरण की तिकड़मों में ही एक नया अध्याय है। स्पष्ट है कि धर्मनिरपेक्षता के बाने में छुपकर कांग्रेस मज़हबी तुष्टिकरण का बेहद घिनौना खेल खेलती आयी है, जिसे जनता ने अब समझ लिया है। यह एक प्रमुख कारण है कि कांग्रेस को जनता द्वारा हर स्तर पर लगातार खारिज किया जा रहा है। और यही रहन रही तो वो खारिज की जाती रहेगी।
सबसे अहम सवाल है कि इस घोषणा से मुसलमानों का कितना भला होगा। जिस समुदाय के लोग अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी के दंश में जी रहे हैं, ऐसे में नमाज के लिए समय देना कितना जायज होगा, इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मज़हबी तुष्टिकरण और पक्ष पात कांग्रेस का मूल चरित्र रहा है। प्रारंभ से वो इस एजेंडे को लेकर बढती रही है। इस मामले में भी कांग्रेस का यही चरित्र उभरकर सामने आया है। कांग्रेस के इस मज़हबी तुष्टिकरण से देश के मुसलमानों का कितना भला हुआ, यह शोध का विषय है। लेकिन देश को इससे कितना नुकसान हुआ, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
देश के किसी भी राज्य में जब-जब चुनाव आते हैं, तब-तब कांग्रेस मज़हबी तुष्टिकरण के दाँव चलने लगती है। विगत कुछ साल पहले जब आंध्र प्रदेश में विधानसभा का चुनाव था, तब कांग्रेस ने पांच प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण का वादा किया था, सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने इस पर अमल भी किया और सुप्रीम कोर्ट तक इसकी लड़ाई चली और जब न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया तब अंत में पसमांदा मुसलमानों के नाम पर मामले का पटाक्षेप हुआ।
कांग्रेस बार-बार उन्ही कुकर्मों को करती है, जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था। मनमोहन सिंह ने तो प्रधानमंत्री रहते इस्लामी बैंकों की स्थापना की पहल भी की थी और केरल में इस पर काम भी शुरु हो गया था, लेकिन सुब्रम्हण्यम स्वामी के दखल के बाद इस तुष्टिकरण के मिशन पर विराम लगा। अन्यथा इस्लामी बैंक के नाम पर देश के अर्थतंत्र को दो टुकड़ों में विभाजित करने की जमीन कांग्रेस ने तैयार कर दी थी। बाटला हाउस मुठभेड़ में कांग्रेस का चेहरा और चरित्र दोनो देश की जनता ने देखी। जब एक आतंकवादी के लिए यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी को रातभर रोना पड़ा। लेकिन, मुंबई हमलों में उनके मुँह से ‘उफ’ तक नहीं निकली। 2004 का आम चुनाव जीतने के तुरंत बाद कांग्रेस ने सच्चर कमेटी और जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमेंटी के माध्यम से एक बार और देश को विभाजित करने के कुत्सित प्रयास करने में लग गयी। रंगनाथ मिश्रा कमेटी में तो यहां तक कहा गया कि देश में मुसलमानों की स्थिति को सुधारने के लिए उन लोगों को 15 प्रतिशत आरक्षण देने की आवश्यकता है।
इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे जो कांग्रेस के ऐसे कुकर्मों के गवाह हैं, चाहे वह वंदेमातरम पर मुस्लिम समुदाय के साथ हुआ कांग्रेस का अघोषित समझौता हो या फिर मुस्लिम आकांताओं को मसीहा बताकर हमारी परंपराओं तथा इतिहास का अतिक्रमण हो, इस सबके पीछे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की ही सोच विद्यमान है। कांग्रेस-नीत संप्रग-2 सरकार के समय के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने एक कार्यक्रम में हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग तक कर दिया था। राहुल गांधी भी इसी बात की पुनरावृत्ति किये थे, जिसका खुलासा विक्कीलिक्स में हुआ था। ताज़ा मामले में, हरीश रावत द्वारा मुस्लिम कर्मचारियों के नमाज़ हेतु 90 मिनट का अवकाश घोषित किया जाना भी कांग्रेस के तुष्टिकरण की तिकड़मों में ही एक नया अध्याय है। स्पष्ट है कि धर्मनिरपेक्षता के बाने में छुपकर कांग्रेस मज़हबी तुष्टिकरण का बेहद घिनौना खेल खेलती आयी है, जिसे जनता ने अब समझ लिया है। यह एक प्रमुख कारण है कि कांग्रेस को जनता द्वारा हर स्तर पर लगातार खारिज किया जा रहा है। और यही रहन रही तो वो खारिज की जाती रहेगी।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)