सवाल यह उठता है कि आखिर बंगाल में बीते कुछ वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि यहां हिंसक घटनाएं बहुत आम हो चली हैं। जंगलराज का जो विशेषण किसी समय बिहार को दिया जाता था, वह अब बंगाल पर लागू हो गया है। बिहार तो सुधर गया है लेकिन बंगाल दिनों दिन बदतर होता जा रहा है। आज पूरे देश में बंगाल जैसा असुरक्षित राज्य कोई नहीं है।
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर से अराजकता की आग सिर उठाकर खड़ी हो गई है। ममता बनर्जी के कार्यकाल में और उम्मीद भी क्या की जा सकती है! राज्य में कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ें और सड़कों पर हिंसा का नंगा नाच हो, यही ममता का शासन है।
बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट में एक चुनावी हिंसा ने इतना विकराल रूप ले लिया कि कथित रूप से 10 लोगों को जिंदा जलाकर मार दिया गया। हैरत है कि इस लोमहर्षक घटना के बाद भी बंगाल की राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है और अपने बचाव में बहाने खोजने की फिराक में है।
रामपुरहाट में एक टीएमसी नेता भादू शेख पर अज्ञात लोगों ने स्टेट हाईवे 50 पर बम फेंक दिया था। इसमें घायल होने के बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई। अभी हमलावर अज्ञात ही थे लेकिन बदले की हिंसा करने वालों ने इसके चलते जिन 10 लोगों को जिंदा जला दिया, उनका भला इस मामले से क्या लेना देना था, उनका क्या कसूर था।
कहीं ऐसा तो नहीं कि राज्य की सरकार व पुलिस इन गुंडों को प्रश्रय दे रही है ? बंगाल के संवेदनशील एवं सक्रिय राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने जिम्मेदार ममता सरकार को इस मामले में तुंरत आड़े हाथों लिया है।
यह भी आश्चर्य है कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी ममता बनर्जी बेशर्मी की हदें पार करते हुए चुप बैठी हैं। यह आपराधिक मौन बहुत सारे संकेत देता है। राज्यपाल ने मुख्य सचिव से मामले की रिपोर्ट तलब की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि वे 72 घंटों के भीतर बीरभूम घटना की रिपोर्ट राज्य सरकार से तलब करेंगे। चूंकि बंगाल में कानून व्यवस्था बुरी तरह बिगड़ चुकी है, इसलिए केंद्र से एक दल वहां के हालातों का जायजा लेने भी जाएगा।
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बकायदा ट्वीट करके इस घटना को भयानक बताया है और ममता सरकार पर संगीन आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि यह इस बात का संकेत है कि राज्य हिंसा एवं अराजकता की संस्कृति की गिरफ्त में है। यह घटना राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था का संकेत है।
इस घटना पर दुख प्रकट करते हुए राज्यपाल ने राज्य के मुख्य सचिव से शीघ्र ही इसके संबंध में जानकारियां भी मांगी हैं। उन्होंने वीडियो संदेश भी जारी करके कहा है कि प्रशासन को दलीय हित से ऊपर उठने की जरूरत है। इससे बौखलाकर ममता ने राज्यपाल को एक पत्र लिखकर इन बातों को आरोप बताया है। ममता ने कहा कि घटना के पीछे किसका हाथ है यह जांच का विषय है। राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआइटी गठित की है।
सवाल यह उठता है कि आखिर बंगाल में बीते कुछ वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि यहां हिंसक घटनाएं बहुत आम हो चली हैं। जंगलराज का जो विशेषण किसी समय बिहार को दिया जाता था, वह अब बंगाल पर लागू हो गया है। बिहार तो सुधर गया है लेकिन बंगाल दिनों दिन बदतर होता जा रहा है। आज पूरे देश में बंगाल जैसा असुरक्षित राज्य कोई नहीं है।
पिछले साल राज्य में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के दिन से ही खुलेआम चुनावी हिंसा शुरू हुई जो कई दिन तक चली। इसमें कथित रूप से टीएमसी के गुंडों ने भाजपा कार्यकर्ताओं, समर्थकों को पीटा, अत्याचार किए लेकिन ममता बनर्जी चुपचाप बैठी रहीं। जब भी बंगाल में चुनावी हिंसा होती है, राज्य सरकार की निष्क्रियता दिखाई दे जाती है। इसका तो सीधा सा अर्थ यही है कि अराजक तत्वों को कहीं न कहीं सरकार का वरदहस्त प्राप्त है।
सवाल यह भी है कि किसी भी इलाके में जब आगजनी होती है तो वहां की पुलिस क्या कर रही होती है ? पुलिस हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रहती है और वारदात को रोकन में क्यों नाकाम रहती है ? क्या पुलिस भी किसी इशारे से संचालित हो रही है ? ध्यान रहे, यह वही पुलिस है जिसने अपने से बड़े कद की सीबीआई टीम को कोलकाता में केवल इसलिए बंधक बना लिया था क्योंकि टीम वहां घोटाले की जांच करने आई थी।
यानी बंगाल में कुछ ऐसा हो गया है कि मनचाहे उल्टे सीधे कानून बनेंगे, आतताइयों की मर्जी चलेगी और यहां जब मन करेगा तब दंगे होंगे लेकिन ममता सरकार इस तरह मौन होकर बैठ जाएगी मानो कुछ हुआ ही ना हो।
बीते कुछ समय में यह बंगाल में सबसे बड़ी हिंसा की घटना बनकर उभरी है। कुल मिलाकर दुखद किन्तु सत्य यही है कि बंगाल में इन दिनों जंगलराज चल रहा है और ममता बनर्जी ने बंगाल को देश का सबसे बुरा राज्य में बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)