बंगाल राज्य इन दिनों अराजकता और रक्तपात का गढ़ बन चुका है। वही बंगाल जिसकी मूल पहचान कला, साहित्य से थी, अब हिंसा, घृणा का पर्याय बन चुका है। देश के इतने महत्वपूर्ण राज्य को इस तरह बरबाद नहीं होने दिया जा सकता। यदि भाजपा ने राज्य में अपनी ताकत झोंकी है तो यह उचित ही है।
बंगाल समेत देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बंगाल में ये चुनाव 8 चरणों में होंगे और 27 मार्च को पहली वोटिंग होगी। यह बात गौर करने योग्य है कि जिन चार अन्य राज्यों में चुनाव होना है, उनकी चर्चा संतुलित एवं कम ही है लेकिन बंगाल बहुत सुर्खी में है। और तो और, केंद्र की भाजपा सरकार ने भी इस चुनाव में अपनी ताकत झोंकना शुरू कर दिया है। जरा सोचिये ऐसा क्यों हो गया है। इसके गहरे निहितार्थ हैं।
बंगाल राज्य इन दिनों अराजकता और रक्तपात का गढ़ बन चुका है। वही बंगाल जिसकी मूल पहचान कला, साहित्य से थी, अब हिंसा, घृणा का पर्याय बन चुका है। देश के इतने महत्वपूर्ण राज्य को इस तरह बरबाद नहीं होने दिया जा सकता। यदि भाजपा ने राज्य में अपनी ताकत झोंकी है तो यह श्रेष्ठ है। स्वागत योग्य है।
मौजूदा तृणमूल कांग्रेस ने यहां नफरत एवं खूनखराबे का ऐसा माहौल बना दिया है जो सवाल पैदा करता है कि क्या वास्तव में यह भारत का ही राज्य है। क्या बंगाल भी पूर्व के कश्मीर जैसा होता जा रहा है जहां भारत का कोई कानून ना चलता हो।
क्या बंगाल में ममता बनर्जी किसी मुख्यमंत्री की भूमिका में हैं या उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग की भूमिका में हैं। ऐसा क्यों है कि उनकी मर्जी के बिना वहां सीबीआई नहीं जा सकती, उनकी मर्जी के बिना वहां सत्ता पक्ष के नेता रोड शो, रैली नहीं कर सकते। करेंगे तो उन पर जानलेवा हमला हो जाएगा।
इस प्रकार का जंगलराज किसी समय बिहार में था। इसी के चलते बिहार लंबे समय तक पिछड़ा एवं बदनाम रहा। अब बिहार इससे उबर चुका है और अन्य राज्यों की तरह प्रगति की मुख्य धारा में शामिल हो रहा है लेकिन हैरत है कि सांस्कृतिक रूप से समद्ध बंगाल ऐसी दुर्गति का शिकार हो गया। मनमानी और गुंडागर्दी जैसे यहां आम बात हो गई है। कानून एवं सुरक्षा व्यववस्था ताक पर है।
यहां की जनता भी अब ममता की सरकार से त्रस्त हो चुकी है। कोरोना जैसी महामारी के समय ममता बनर्जी का कुप्रबंधन राज्य के लोगों के लिए भारी साबित हुआ। इतना ही नहीं, ममता बनर्जी ने इस आपदा में भी राजनीति के अवसर तलाश लिए। चक्रवाती तूफान हो या कोरोना संकट, हर बुरे समय में केंद्र से मदद मांगना और केंद्र को कोसना, ममता का शगल रहा है।
अब चूंकि चुनाव सर पर आ ही गए हैं और ममता को आभास हो गया है कि उनकी जमीन खिसकती जा रही है, इसलिए उनके प्रतिक्रियावादी स्वभाव में उग्रता और नाटकीयता का समावेश अब अतिरेक के साथ हो गया है। हमेशा की तरह उनकी बौखलाहट अब उनके कृत्यों में प्रकट होने लगी है।
इसका ताजा उदाहरण हमने सबने पिछले दिनों देखा। एक प्रायोजित तमाशे का रूप लेना, आगे बढ़ना और पटाक्षेप होना। ममता बनर्जी को आश्चर्यनजक रूप से पैर में चोट आ गई। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि उन्होंने इसे हमला करार दिया। वह भी तब जब वह कड़ी सुरक्षा में हमेशा होती हैं। उस रात भी थीं। और यदि उनके पैरे में वास्तव में चोट थी तो इसका इलाज कराने वह 70 किमी दूर क्यों गईं।
इसके बाद शुरू हुआ नाटकीयता का चरम जब उन्होंने व्हीलचेयर पर बैठकर चुनावी प्रचार करने की बात कही। मजा तो तब आया जब चुनाव आयोग ने इसे हमला नहीं, हादसा पाया और यही बताया। तब जाकर ममता बगलें झांकने लगीं। आश्चर्य तो एक दिन में ममता के पैर का प्लास्टर कटने को लेकर भी व्यक्त किया जा रहा।
दरअसल बात ये है कि ममता को अपनी जमीन खिसकती नज़र आ रही है लेकिन क्या इसका अर्थ यह है कि वह कुछ भी अनर्गल करने लगेंगी। हालांकि ममता के साथ कुछ भी संभव है। उन्हें हंगामा करने और तमाशा करने का बहुत शौक है। चूंकि जनता का विश्वास तो खो ही चुकी हैं, जनता का मन तो जीतने से रहीं, इसलिए अब अंतिम विकल्प के रूप में झूठी सहानुभूति बटोरने का हथकंडा आजमा रही हैं।
बातों से दाल नहीं गली तो विक्टिम कार्ड खेल रही हैं। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। ममता बनर्जी से बंगाल की जनता परेशान है। जनता स्वयं बदलाव चाहती है। गृहमंत्री अमित शाह ने कल बंगाल में चुनावी सभा में बहुत महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि पैर की चोट पर इतना दर्द हो रहा है और बंगाल में भाजपा एवं संघ के सैकड़ों कार्यकर्ताओं की जो हत्या बीते समय में हुई है, उसके बारे में क्या।
यह भी गौर करने वाली बात है कि कथित हमले को लेकर ममता इतना व्यर्थ प्रलाप कर रही हैं, जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के वाहन पर जानलेवा हमला हुआ था उसके बारे में क्या। निश्चित ही ममता बनर्जी नीत कुशासन एवं तानाशाह सरकार का अंत समय निकट आ गया है। 2 मई का दिन बहुत दूर नहीं है। चुनावी परिणाम से पता चल जाएगा कि जनता किसे चाहती है और बंगाल में ममता बनर्जी का वजूद रहता है या नहीं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)