सच तो यह है कि पश्चिम बंगाल की सरकार राज्य में हो रही हिंसक वारदातों पर लगाम कसने में पूरी तरह से नाकाम हो चुकी है। सवाल यह है कि टीएमसी के नाम पर क्या बंगाल में किसी को भी खुलेआम मारपीट करने की और गुंडागर्दी करने की खुली छूट मिली हुई है?
पश्चिम बंगाल इन दिनों लगातार खबरों में बना हुआ है, लेकिन ये सुर्खियां नकारात्मक और अप्रिय कारणों के चलते हैं। लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले ही यहां अराजकता का माहौल बनना शुरू हो गया था जो चुनाव के बाद और गहरा गया है। पश्चिम बंगाल से लगातार हिंसा और अस्थिरता की खबरें आ रही हैं।
लोकसभा चुनावों से लेकर निकाय चुनावों तक भाजपा की सफलता के बाद ये हिंसा और बढ़ी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी रोड शो में कार्यकर्ताओं पर पथराव और कॉलेज में ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि बंगाल में अराजकता सिर उठाए खड़ी है, लेकिन बात अब और बढ़ती मालूम होती है।
ताजा घटनाक्रम हुगली के एक कॉलेज का है। यहां पर गुरुवार को दो छात्राओं को इसलिए बंधकर बनाकर अभद्रता की गई क्योंकि उन्होंने टीएमसी और ममता जिंदाबाद का नारा नहीं लगाया था। इस हरकत पर बीच-बचाव करने जब प्रोफेसर पहुंचे तो अराजक तत्वों ने उनके साथ भी मारपीट की। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। जब बात सियासी महकमों तक पहुंची तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने औपचारिक तौर पर दोषियों पर कार्रवाई किए जाने जैसी ऊपरी बात कही और पल्ला झाड़ लिया।
चूंकि यह घटना तेजी से सुर्खी बन गई, ऐसे में टीएमसी बैकफुट पर आ गई। देर शाम पार्टी के हुगली जिला अध्यक्ष दिलीप यादव और विधायक प्रवीर घोषाल ने पीड़ित प्रोफेसर से मिलकर उनके साथ हुई मारपीट के मामले में माफी मांगी। घटना के बाद प्रोफेसर ने इस मामले की लिखित शिकायत भी पुलिस थाने में दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद के दो सदस्यों को गिरफ्तार किया।
पीड़ित प्रोफेसर के आरोपों के आधार पर टीएमसी पार्षद तन्मय देव प्रमाणिक को पार्टी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इससे बात आई गई होने जैसा आभास होता है, लेकिन ऐसा है नहीं। सवाल है कि ऐसी मानसिकता टीएमसी कार्यकर्ताओं में आ कहाँ से रही है कि वे अपनी पार्टी और नेता का जयकारा लगवाने के लिए मारपीट पर उतर जा रहे? इस मानसिकता का स्रोत क्या है?
दरअसल राज्य में हिंसा के मामलों पर ममता सरकार ढुलमुल रवैया इसका मुख्य कारण है। टीएमसी कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि वे कुछ भी करें उन्हें कोई कुछ नहीं करेगा। सच यही है कि अपनी वोटबैंक की राजनीति में डूबी पश्चिम बंगाल की ममता सरकार राज्य में हो रही हिंसक वारदातों पर लगाम कसने में पूरी तरह से नाकाम हो चुकी है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव परिणाम आने के एक सप्ताह के भीतर ही दक्षिण परगना में टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं से मारपीट के एक से अधिक मामले सामने आए। हैरत है कि लोकतंत्र का जब-तब हवाला देने वाली ममता सरकार ऐसे मामलों में मौन क्यों धारण कर लेती है। शायद ममता को लोकतंत्र की परिभाषा ज्ञात नहीं है। वे अपनी मनमानी को लोकतंत्र का जामा पहनाने का कुतर्क करती हैं जबकि उन्हीं के राज्य में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ रही हैं।
इस घटना के ठीक एक दिन पहले ही यहां भाजपा सांसद के निवास पर बम फेंकने की हरकत की गई थी। उत्तर 24 परगना जिले के बैरकपुर से बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह के घर पर अज्ञात बदमाशों ने बम फेंका। इसके बाद उन्होंने यहां पर गोलियां भी दागीं। अभी तक बदमाशों का पता नहीं लगाया जा सका है। जाहिर है, बंगाल में पुलिस, कानून व्यवस्था एकदम विफल हो चुकी है और ममता सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है। जब एक जनप्रतिनिधि तक यहां सुरक्षित नहीं है तो आम नागरिकों की सुरक्षा की कल्पना ही की जा सकती है।
ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में ना तो किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ना ही दलगज राजनीति करने की। ममता ने चुनाव के दौरान बंगाल में भाजपा के शीर्ष नेताओं के हेलीकॉप्टर तक नहीं उतरने दिए। उनकी सभाएं नहीं होने दीं। कई बाधाएं खड़ी कीं। रोड शो नहीं करने दिए। विजयी जुलूस में अड़चनें पैदा कीं। इसके अलावा लोगों को ‘जय श्रीराम’ बोलने पर गिरफ्तार तक किया गया। ये सब बातें स्पष्ट करती हैं कि बंगाल में किस तरह की तानाशाही चल रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)