गुजरात और हिमाचल में भाजपा की जीत में अगर एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकप्रिय नेतृत्व का प्रभाव रहा, तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की संगठन शक्ति की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही। ये जीत सही मायने में मोदी-शाह की जोड़ी की जीत है।
नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने छठी बार चुनाव जीतकर गुजरात में एक नया इतिहास बनाया है। गुजरात के अलावा भाजपा ने हिमाचल में भी दो तिहाई बहुमत हासिल करके अपना डंका बजा दिया है। देश की 135 करोड़ जनता चाहती है कि सरकार की विकासपरक नीतियां जारी रहें। स्थिति साफ़ हो गयी है कि देश का विश्वास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी नीतियों के प्रति कायम है। अगर थोड़ी कमियां हैं, तो उन्हें दूर करने का प्रयास भी लगातार जारी रहेगा।
भाजपा को गुजरात में मिली जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस जीत के असली नायक पार्टी अध्यक्ष अमित शाह हैं, जिन्होंने सही वक़्त पर गुजरात की समस्याओं को समझा और उसे हल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। यह वही व्यक्ति कर सकता था, जो अपने इलाके के कार्यकर्ताओं की खामियों और खूबियों को बखूबी जनता हो। प्रधानमंत्री ने कहा कि अपने पास एक ऐसा पार्टी प्रेसिडेंट है, जो न केवल परिश्रमी है, बल्कि कार्यकर्ताओं की शक्तियों का पार्टी के हित में उपयोग करवाने में कुशल भी है।
गौर करें तो शाह ने उस वक़्त मोर्चा संभाला, जब कांग्रेस जातिप्रधान नेताओं के कन्धों पर सवार होकर गुजरात की राजनीतिक फिजा में ज़हर घोलने में लगी हुई थी। कांग्रेस के जातीय समीकरणों के आधार पर कहा जा रहा था कि गुजरात में भाजपा के लिए लड़ाई कठिन होगी। ऐसे में, अमित शाह ने मौके पर स्थिति को संभाल लिया।
गुजरात की बात करें तो चुनाव से पहले जीएसटी के लागू होने के बाद स्थितियां भाजपा के लिए अनुकूल नहीं मानी जा रही थीं, लेकिन चुनाव से ठीक पहले जमीनी स्थिति को समझते हुए जीएसटी में बदलाव हुआ। इसके पीछे भी अमित शाह की सूझबूझ और जमीनी समझ के होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
अपनी संगठन शक्ति और अनुशासन के लिए जाने जाने वाले अमित शाह प्रदेश भर में फैली पार्टी की पचास हजार से अधिक बूथ कमिटियों और शक्ति केन्द्रों के संपर्क में रहे। गुजरात में स्थिति नियंत्रण में रहे, इसके लिए अमित शाह ने आखिरी समय में हिमाचल छोड़ गुजरात के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ध्यान केन्द्रित रखा।
कोई शक नहीं कि कांग्रेस ने समाज को विभाजित करने वाले आरक्षण से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता के साथ उठाया, गुजरात और हिमाचल में मिली जीत के बाद मोदी और शाह की जोड़ी ने वही नारा दोहराया जिसको लेकर पार्टी आगे बढ़ी थी, “जीतेगा भाई, जीतेगा, विकास ही जीतेगा।” इसका अर्थ यही था कि आने वाले समय में भी पार्टी का प्रमुख मुद्दा विकास ही रहेगा, जिसको लेकर मोदी ने 2014 के लोक सभा चुनाव में विशाल बहुमत हासिल किया था।
हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने 48.5 फीसद वोट हासिल किया, जो 2012 के मुकाबले 10 फीसद ज्यादा है, ज़ाहिर है हिमाचल के लोगों ने नरेन्द्र मोदी की योजनाओं और नीतियों को भारी समर्थन दिया है। इसी तरह गुजरात में भी पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा ही है, बावजूद इसके कि कांग्रेस ने जातिवाद को केंद्र में रखकर वोट पाने का हरसंभव प्रयास किया।
पीएम मोदी ने कहा कि जिस जातिवाद के जहर को ख़त्म करने में 30 साल का वक़्त लगा, इस चुनाव में कांग्रेस ने उसे दोबारा खड़ा करने का प्रयास किया, लेकिन जनता ने उन मंसूबों को पहचानते हुए उसे नकार दिया है। राहुल गांधी ने हिंदुत्व कार्ड खेलकर मतदाताओं को भरमाने की जो कोशिश की उसे भी जनता ने पहचान लिया और अपन फरमान सुना दिया कि हिन्दुओं का असली हितैषी कौन रहा है।
गुजरात और हिमाचल की जनता ने अपने मतों द्वारा यह सपष्ट कर दिया है कि बीजेपी अपनी सुधारवादी नीतियों को जारी रखे, यह ज़रूरी है। प्रधनामंत्री मोदी का संकल्प है कि 2022 तक भारत को विश्वशक्ति और दुनिया का पावरहाउस बनाया जाए, जनता ने उनके इस संकल्प की पूर्ती हेतु उन्हें गुजरात और हिमाचल में पूर्ण बहुमत कर अपना एकबार फिर अपना समर्थन व्यक्त कर दिया है।
कुल मिलाकर गुजरात और हिमाचल में भाजपा की जीत में अगर एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकप्रिय नेतृत्व का प्रभाव रहा, तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की संगठन शक्ति की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही। ये जीत सही मायने में मोदी-शाह की जोड़ी की जीत भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)