ये सिर्फ राजा राम की कहानी नहीं बल्कि हर परिवार के संकट, उसकी समस्या, उसके द्वन्द्व, उसकी दुविधाओं की सुनवाई करने वाली कहानी है। रामचरितमानस सुग्रीव की कहानी है, शबरी की कहानी है, जटायु की कहानी है, अहिल्या की कहानी है, नल-नील की कहानी है, मंदोदरी की कहानी है, त्रिजटा की कहानी है। ये उन पात्रों की कहानी है जो इसके पहले कभी नायक नहीं बने।
महात्मा बुद्ध का एक सूत्र था, ‘अल्पश्रुत पुरुष बैल की भांति बढ़ता है। उसके मांस तो बढ़ते हैं, परंतु उसकी प्रज्ञा नहीं बढ़ती।’ आचार्य रजनीश भी कहते थे, लोगों की मानसिक और शारीरिक उम्र अलग-अलग हैं। तुम किसी की शारीरिक उम्र से धोखे में मत पड़ना, क्योंकि उससे उस व्यक्ति की समझदारी का कोई संबंध नहीं है।
इस प्रस्तावना की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों का जिक्र करते हुए इन्हे समाज के किये विभाजनकारी बताया है। इसमें पहली चौपाई है, ‘पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा।’ इसका अर्थ शिक्षा मंत्री ने ये बताया कि समाज के निचले तबके के लोग पढ़ लिख जाएं तो भी पूजनीय नहीं हैं।
दूसरी चौपाई है, ‘अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए’ इसका मतलब शिक्षा मंत्री ने ये बताया कि नीच जाति का व्यक्ति विद्या पाकर सांप की तरह जहरीला हो जाता है।
अब हमें ये जानना जरुरी है कि शिक्षा मंत्री किस तरीके से स्वयं समाज को दूषित करने का कार्यक्रम कर रहे हैं। पहले बात करते हैं उनके द्वारा बोली गई आधी-अधूरी चौपाई ‘पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा’ के विषय में।
वास्तविकता तो ये है कि शिक्षामंत्री जी को पूरी चौपाई ही नहीं पता थी और अगर पता थी, तो अपने एजेंडा को साधने के लिए उन्होंने जान बूझ कर आधी ही सुनाई लेकिन ये बात तो तय है कि शिक्षा मंत्री को ये नहीं पता कि ये चौपाई उत्तरकांड में नहीं बल्कि अरण्यकांड में भगवान राम और कबंध राक्षस के बीच संवाद के रूप में है।
इस चौपाई का अर्थ है, ‘शाप देता हुआ, मारता हुआ, कठोर वचन कहता हुआ ब्राह्मण भी पूजनीय है, ऐसा संत कहते हैं। वो ब्राह्मण पूजनीय है जो शीलवान हो और गुणों से हीन हो। अगर जन्म से ब्राह्मण होने के बाद भी व्यक्ति सदाचार नहीं करता तो वो शूद्र है और वो पूज्यनीय नहीं है।
शिक्षा मंत्री जी ने एजेंडे को बढ़ाने वाली चलाकियाँ यहाँ ही छोड़ दी होती तब भी क्षम्य होता लेकिन इसके बाद वो एक और आधी-अधूरी चौपाई सुनाते हैं। शिक्षा मंत्री जी ‘अधम जाति में विद्या पाए भयहु यथा अहि दूध पिलाए’ का उल्लेख करते हुए इसका अर्थ बताते हैं कि नीची जाति का व्यक्ति विद्या पाकर सांप की तरह जहरीला हो जाता है।
रामचरितमानस का अध्ययन करने वाली एक बड़ी संख्या जानती है कि ये चौपाई रामचरितमानस के उत्तरकांड से है। पूरी चौपाई कुछ ऐसे है, ‘हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ॥अधम जाति मैं बिद्या पाएं । भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ।
शिक्षा मंत्री अपने वक्तव्य के दौरान लगातार समाज को तोड़ने वाली चलाकियाँ दिखाते हुए सन्दर्भ को हटाते रहे। चौपाई की समीक्षा करने से पहले इसका सन्दर्भ समझना होगा। ये चौपाई तब आती है जब गरुड़ देव और काक भुशुण्डी के बीच संवाद होता है।
इस चौपाई का अर्थ है गुरुजी ने शिवजी को हरि का सेवक कहा, यह सुनकर हे पक्षीराज ! मेरा हृदय जल उठा। मैं पापी विद्या पाकर ऐसा हो गया जैसे दूध पिलाने से साँप। यहां काक भुशुण्डी, गरुड़ जी को गुरुजी कह रहे हैं और स्वयं के लिए अधम जाति का इस्तेमाल कर रहे हैं यानी वो खुद को पापी कह रहे हैं क्योंकि काक भुशुणडी जी को श्राप मिला था इसीलिए वो कौआ बन गए थे।
तुलसी दास की रामचरितमानस साहित्य के लोकतन्त्र की जीवित नागरिक है। ये ऐसा महाकाव्य है जिसको समझने के लिए विकसित साहित्यबोध का होना जरूरी है। ये कॉमनसेन्स चेतना से समझ में नहीं आ पायेगा।
अगर किसी रचना को आप संकट की घड़ी में समाधान के लिए याद करें तो, वो रचना मात्र ना होकर आपकी ‘गुरु’ हो जाती है। सामान्य व्यक्ति आज भी अपने जीवन के विभिन्न प्रसंगों में मानस की चौपाइयों और दोहों को जितना याद करता है, शायद ही किसी और रचना को करता होगा।
ये सिर्फ राजा राम की कहानी नहीं बल्कि हर परिवार के संकट, उसकी समस्या, उसके द्वन्द्व, उसकी दुविधाओं की सुनवाई करने वाली कहानी है। रामचरितमानस सुग्रीव की कहानी है, शबरी की कहानी है, जटायु की कहानी है, अहिल्या की कहानी है, नल-नील की कहानी है, मंदोदरी की कहानी है, त्रिजटा की कहानी है। ये उन पात्रों की कहानी है जो इसके पहले कभी नायक नहीं बने।
रामचरितमानस दिन के हर पहर की कहानी है। हर संबंधों की कहानी है। दुःख और सुख के भेद की कहानी है। ये जड़ से चेतन को जोड़ने की कहानी है। ये भारत को जोड़ने की कहानी है।
आप कभी आग की लपक से जल जाते हैं तो क्या कसम खाते हैं कि अब आग से कभी खुद को जलने नहीं दूंगा? नहीं, क्यूँकि आप आग को जान गए, अब कसम की क्या जरूरत? मंदबुद्धि कसम खाते हैं, प्रण ले लेते हैं, चिल्लाते हैं लेकिन जिनकी प्रज्ञा प्रखर है, वे सिर्फ समझ लेते हैं क्यूँकि समझना हर किसी के बस की बात भी नहीं!
प्रभु श्री राम से प्रार्थना रहेगी कि मंत्री जी को उचित बुद्धि प्रदान करें, ऐसी बुद्धि जिससे ‘समझ’ विकसित हो।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। राजनीति और संस्कृति सम्बन्धी विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)