बिहार अब लालू प्रसाद यादव एवं जनता दल के लालटेन युग वाले अंधेरे से बाहर निकल चुका है और एनडीए की रोशनी में चल रहा है। इस बार के चुनावों में विकास ही मुख्य मुद्दा रहने वाला है, जिसपर बात करने के लिए जहां राजद के पास कुछ नहीं है, तो वहीं भाजपा-जदयू की एनडीए इसपर मजबूती से अपना पक्ष रख सकती है।
इन दिनों बिहार चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। तीन चरणों में होने वाले विधानसभा चुनावों की पहली वोटिंग 28 अक्टूबर को होनी है। परिणामों की घोषणा 10 नवंबर को होगी। इस बार का चुनाव कई अर्थों में महत्वपूर्ण है।
दलगत राजनीति से उठकर देखा जाए तो वृहद परिप्रेक्ष्य में इस चुनाव के अपने निहितार्थ हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी को सीधे तौर पर तो सफलता नहीं मिली थी, लेकिन करीब साल भर बाद पार्टी यहां पुनः नीतीश कुमार के साथ मिलकर एनडीए की सरकार बनाने में सफल रही। उसके बाद से यह सरकार बिहार में लगातार बेहतर काम करती चली आ रही है।
भाजपा इस चुनाव को लेकर पूरी तरह से तैयार प्रतीत हो रही है। दो दिन पहले ही पार्टी ने अपने 30 स्टार प्रचारकों के नाम घोषित किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें प्रमुख हैं। बाद में गृहमंत्री अमित शाह, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे नाम शामिल हैं। एनडीए के सीएम पद के उम्मीदवार और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बार पीएम मोदी के साथ ही मिलकर चुनावी प्रचार में भाग लेंगे। यह जनता के लिए एक नया अनुभव होगा।
पिछले चुनावों में आपको याद होगा किस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी ने आरा, अररिया जैसे बहुल जिलों में उमड़े जनसैलाब को संबोधित किया था। इस बार नीतीश भी साथ होंगे तो माहौल एनडीए के पक्ष में बनाया जाएगा। प्रचारकों के नाम जारी करने के साथ ही उधर अमित शाह ने एक निजी मीडिया समूह को दिए साक्षात्कार में स्पष्ट कहा कि बिहार को प्रगति के पथ पर बनाए रखने के लिए राज्य में एनडीए की सरकार का दोहराया जाना जरूरी है।
बिहार में सुशासन का जुमला महज जुमला नहीं है, इसे वास्तविक धरातल पर देखा भी गया है। यदि हम लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल के बिहार और एनडीए के कार्यकाल के बिहार की तुलना करें तो जमीन आसमान का अंतर पाएंगे।
दरअसल इन दोनों सरकारों के बीच कई बिंदुओं पर तुलनात्मक आकलन किया जा सकता है है। सबसे पहली बात तो यही है कि लालू की जनता दल की सरकार समय बिहार की सत्ता में जो परिवारवाद की परिपाटी बन गई थी, नीतीश के नेतृत्व वाली राजग की सरकार ने समाप्त किया है। वर्षों पहले लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था।
इसके बाद एक तरह से बिहार उनके सालों के हाथ में चला गया था, जिसका कुपरिणाम हर तरफ गुंडाराज और भ्रष्टाचार के रूप में सामने आया। और अतीत में जाएं तो रेल मंत्री रहते हुए लालू पर भ्रष्टाचार के भी कई आरोप लगे, जिनमें रेलवे स्क्रैप बेचे जाने का मामला सबसे बड़ा था। यह अच्छी बात है कि बिहार में अब वह परिवारवाद खत्म हो चुका है।
जहां तक कानून व्यवस्था की बात है, इस दिशा में सबसे अधिक काम हुआ है क्योंकि लालू के समय के बिहार को जुमलों में यदि जंगलराज कहा जाता था तो उसके मायने थे। तब यहां शराब माफिया, भू-माफिया, अराजक तत्व, असामाजिक तत्वों का बोलबाला हुआ करता था और पूरा राज्य ऐसे लोगों के चंगुल में था जिनका लोकतंत्र या गुड गर्वनेंस जैसे शब्दों से दूर तक का भी नाता नहीं।
एनडीए के शासन काल में सामाजिक सुधार हुए हैं। अब यहां लोग कानून का पालन करना जानते हैं। जनता दल के दौर में निष्पक्ष चुनाव होना केवल कोरी बात थी। बूथ कैप्चरिंग जैसे शब्द बिहार में हुई घटनाओं से ही निकलकर देश में चलन में आए।
फिर, जिस समय ईवीएम का समय नहीं था और बैलेट बॉक्स से वोट डाले जाते थे, तब ऐसे मामले सामने आते थे कि बिना वोटिंग के ही अमुक प्रत्याशी विजयी घोषित हो गया। धांधली पूरे तंत्र में व्याप्त थी।
आज यहां ना केवल लोकतंत्र बल्कि निर्वाचन की भी गरिमा स्थापित हुई है। देखा जाए तो आतंकवाद भी यहां एक मुद्दा रहा है। पिछले वर्षों में यहां दरभंगा में आतंक की नर्सरी पनप रही थी। दरभंगा ने आतंक को करीब से देखा है। आतंकवाद ने दरभंगा की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है।
उस दौर में बिहार में आतंकवाद के दरभंगा मॉड्यूल की चर्चा पूरे देश में होती रही थी। अब लालू के जंगलराज का वो दौर इतिहास की बात हो चुका है, जिसमें लोगों को घर से बाहर निकलते भय लगता था कि कहीं सत्तापोषित गुंडों द्वारा उनकी हत्या न कर दी जाए।
अपहरण तो लालू के राज में उद्योग बन गया था। 1992 से 2004 तक बिहार में किडनैपिंग के 32,085 मामले सामने आए। कई मामलों में तो फिरौती की रकम लेकर भी बंधकों को मार दिया जाता था। लेकिन भाजपा-जदयू के शासन में यह स्थिति भी बदल चुकी है। कुल मिलाकर राज्य में क़ानून-व्यवस्था की स्थापना हुई है।
यदि हम विकास के मुद्दे पर आएं तो पाएंगे कि लालू के चंगुल में फंसे बिहार और उसके बाद के बिहार में विकास का पैमाना ही बदल गया है। लालू ने तो बिहार को वास्तव में लालटेन युग में ही पहुंचा दिया था। वे यहां विकास के नाम पर अपना धन बनाने में, अपने मॉल इत्यादि खड़े करने में लगे रहे। वह घोटालों की सरकार थी। उसी दौरान किए चारा घोटाला में लालू यादव आज दोषी करार होकर जेल में पड़े हैं।
राजग की नीतीश सरकार ने राज्य में बिजली समस्या हल करवाई और घर-घर बिजली पहुंचाने का काम किया। आश्चर्य यह है कि जनता दल के हर चुनावी घोषणा पत्र में बिजली एक स्थायी वादा हुआ करता था। चाहे वह 2004 का लोकसभा चुनाव हो या 2009 का या 2014 का। बिजली के मुद्दे पर राजद ने सदा जनता को भरमाया। आखिर एनडीए ने जनता की सुध ली और बिजली आपूर्ति की व्यवस्था धीरे-धीरे बेहतर हो चुकी है।
रोजगार विकास का पर्याय होता है। विकास होते ही रोजगार के नए अवसर खुलते हैं। राज्य में रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। पिछले ही महीने सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को बड़ी सौगात दी है। उन्होंने यहां मत्स्य, पशुपालन एवं कृषि विभाग से जुड़ी 294.53 करोड़ रुपये की विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया।
बिहार में अब विकास आकार ले रहा है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है। जनता दल और एनडीए की तुलना करते समय यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लालू के परिवार के पास अरबों रुपए की संपत्ति आखिर कहां से आई जबकि यह परिवार तो निर्धनता से उठा था। असल में, जनता दल ने हमेशा से गरीबों के नाम पर वोट बटोरे, बड़े-बड़े पद हासिल किए और जब काम की बारी आई तो गरीबों को ही भूल गए।
ये लोग गरीबी से निकले थे, मगर हजारों-करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली। बंगले बनवाए, लाखों की गाडिय़ां लीं। लालू प्रसाद यादव ने चारा घोटाले से पूरे बिहार को बदनाम करके रख दिया था। इसे बिहार का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला कहा जा सकता है जो लालू के शासन काल में 1996 में हुआ। मवेशियों के खिलाए जाने वाले चारे के नाम पर सरकारी खजाने में से 950 करोड़ फर्जी ढंग से निकाले गए। इसे सरकारी खजाने की सबसे बड़ी चोरी माना जाता है।
यह घोटाला मीडिया में वर्षों तक सुर्खी बना रहा। दबाव के चलते लालू को सीएम पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था। इस एक घटना ने बिहार को पूरे विश्व में बदनाम करके छोड़ा। चूंकि अब इस मामले में न्यायालय का फैसला आ चुका है और लालू को दोषी पाकर कारावास की सजा दी गई है, ऐसे में यह साबित हो गया है कि जनता की कमाई पर ऐसे डाका नहीं डाला जा सकता।
लालू देश के पहले ऐसे सांसद हैं जो इस घोटाले में दोषी पाए जाने के बाद अपनी संसद सदस्यता गंवा चुके हैं। चुनाव आयोग ने भी उन्हें 11 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित कर दिया है।
नब्बे के दशक में लालू ने यहां चरवाहा विद्यालय शुरू करके राज्य व देश की पूरी दुनिया में हंसी उड़वाई थी। मवेशी चराने वाले बच्चे सुबह यहां आते थे, अपने मवेशी को चराने के लिए छोड़ देते। फिर शिक्षक उन्हें पढ़ाते थे। चरवाहा विद्यालय की यह अवधारणा धरातल पर टिक नहीं सकी और धीरे-धीरे बच्चों, शिक्षकों ने वहां आना बंद कर दिया।
लालू प्रसाद यादव ने अपनी अजीब हरकतों, कृत्यों से बिहार की छवि इतनी खराब कर दी थी कि बाद के कई वर्षों तक यहां के युवा इससे उबर नहीं पाए। उस दौर में ही बिहार का व्यक्ति होना उपहास की बात हो गया था। रोजगार के लिए दूसरे राज्य में गए बिहारियों को अक्सर इस उपहास का सामना करना पड़ता। इस बुरी स्थिति के लिए लालू बहुत जिम्मेदार हैं।
आज शुक्र है कि बिहार का नागरिक इस कुटैव से मुक्त होकर अपनी नई प्रगतिशील छवि गढ़ रहा है। बिहार में विकास के साथ व्यक्तिव निर्माण भी हो रहा है। मनोरंजन से लेकर खेल, बिजनेस से लेकर स्व-रोजगार तक के क्षेत्रों में बिहार के नागरिक अपनी पहचान बना रहे हैं। भाजपा-जदयू के कार्यकाल में बिहार तेजी से प्रगति के सोपान चढ़ा है।
कहा जा सकता है कि यह प्रदेश अब लालू प्रसाद यादव, जनता दल के लालटेन युग वाले अंधेरे से बाहर निकल चुका है और एनडीए की रोशनी में चल रहा है। इस बार के चुनावों में विकास ही मुख्य मुद्दा रहने वाला है, जिसपर बात करने के लिए जहां राजद के पास कुछ नहीं है, तो वहीं भाजपा-जदयू की एनडीए इसपर मजबूती से अपना पक्ष रख सकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)