कांग्रेस ने पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में इस कटौती को ‘चुनाव से प्रभावित नाममात्र की कमी’ बताया। लेकिन यह कथित नाममात्र की कमी भी कांग्रेस शासित राज्य अबतक नहीं कर सके हैं। कांग्रेस शासित पंजाब, कर्नाटक आदि राज्यों में केवल केंद्र द्वारा ढाई रुपये की कमी ही हुई है, राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर कोई कमी नहीं की गयी है। इसके बावजूद भी अगर पेट्रो उत्पादों की महंगाई को लेकर कांग्रेस केंद्र पर निशाना साधती है, तो इसे उसकी निर्लज्जता ही कहा जाएगा।
केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी को राहत दी है। केंद्र ने खुद तो उत्पाद शुल्क कम करके पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में ढाई रुपये की कमी की ही है, राज्यों से भी इतनी ही कमी करने की अपील की है। केंद्र सरकार की इस अपील के बाद भाजपा शासित लगभग सभी राज्यों ने पेट्रोल-डीजल का मूल्य ढाई रुपये कम करने का ऐलान कर दिया। इस तरह इन राज्यों में पेट्रोल-डीजल पांच रुपये सस्ता हो गए। लेकिन विडंबना देखिये कि जो कांग्रेस आदि विपक्षी दल इस मुद्दे पर सरकार को लगातार घेर रहे थे, उनके शासनाधीन राज्यों ने अपने स्तर पर कीमतों में अबतक कोई कमी नहीं की है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल साहब ने तो इस कमी को जनता से धोखा ही बता दिया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को दस रुपये प्रति लीटर दाम कम करने चाहिए। लेकिन विचित्र यह है कि दस रुपये की कमी की मांग करने के बावजूद केजरीवाल ने अपने हिस्से की ढाई रुपये की राहत जनता को देने की जहमत अबतक नहीं उठाई है। जाहिर है, दोमुंहेपन की राजनीति में माहिर केजरीवाल का ये रूप कोई नया नहीं है। अब दिल्ली की जनता उनके द्वारा इस तरह की चीजों की अभ्यस्त भी हो चुकी है।
कांग्रेस ने पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य में इस कटौती को ‘चुनाव से प्रभावित नाममात्र की कमी’ बताया। लेकिन यह कथित नाममात्र की कमी भी कांग्रेस शासित राज्य नहीं कर सके हैं। कांग्रेस शासित पंजाब, कर्नाटक आदि राज्यों में केवल केंद्र द्वारा ढाई रुपये की कमी ही हुई है, राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर कोई कमी नहीं की गयी है। इसके बावजूद भी अगर पेट्रो उत्पादों की महंगाई को लेकर कांग्रेस केंद्र पर निशाना साधती है, तो इसे उसकी घोर निर्लज्जता ही कहा जाएगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी केजरीवाल की भाषा बोल रही हैं। उन्होंने भी केंद्र से कीमतों में दस रुपये प्रति लीटर की कटौती की मांग की है। लेकिन, यहाँ भी हाल यही है कि इतना हल्ला करने के बावजूद ममता सरकार ने कीमतों में अपने हिस्से के ढाई रुपये कम नहीं किए हैं। वामपंथी शासन वाले राज्य केरल ने भी कीमतों में कमी करने से इनकार कर दिया है।
इस स्थिति को देखते हुए कहने की जरूरत नहीं कि विपक्षी दलों को लोकहित से कोई सरोकार नहीं है, इन्हें केवल अपनी राजनीति से मतलब है। मोदी सरकार का अंधविरोध करने की इस नकारात्मक राजनीति में डूबे ये दल जनहित का भी विरोध करने में नहीं हिचक रहे।
अगर जनता के भले की बात इनके दिमाग में होती तो ये अपने शासनाधीन राज्यों में पेट्रो उत्पादों की कीमतों में कटौती करते लेकिन इन्होने ऐसा नहीं किया है, क्योंकि इससे केंद्र सरकार को श्रेय मिल सकता है। जाहिर है, पेट्रोल-डीजल को मुद्दा बनाकर जनसमर्थन हासिल करने की उम्मीद पालने वाले विपक्ष का इस मुद्दे पर जनविरोधी चेहरा ही सामने आ रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)