75,000 करोड़ रूपये की किसान सम्मान निधि योजना की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री की यह पहली बड़ी रैली थी, जिसमें किसानों और मजदूरों का इतनी बड़ी तादाद में आना ही ज़ाहिर कर रहा था कि विपक्ष द्वारा सरकार के विषय में फैलाए जा रहे आरोपों को जनता ने नकार दिया है। बंगाल में मोदी के लिए उमड़ा ये जनसैलाब सूबे में भाजपा की बढ़ती धमक का ही सूचक है और ममता दीदी की बेचैनी की वजह भी यही है।
पिछले कुछ महीने से पश्चिम बंगाल में सत्ता पक्ष द्वारा एक ख़ास तरह की घिनौनी राजनीति चल रही है कि विपक्षी पार्टियों को वहाँ रैली ही नहीं करने दो, उनके कार्यकर्ताओं पर हमले करो। ऐसा कुछ पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी करती थी, लेकिन मिट्टी और मानुष की सौगंध लेने वाली ममता बनर्जी भी अब लोगों के साथ छल कर रही हैं। बंगाल में विपक्षी कार्यकर्ताओं के साथ ज्यादती की शिकायत कई बार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी की है। वैसे चुनाव तो पूरे देश में होने हैं, लेकिन ममता सबसे ज्यादा बेचैन नजर आ रहीं।
क्यों है बेचैनी?
शनिवार को प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल में उत्तरी 24 परगना के चुनावी दौरे पर थे जहाँ उन्होंने ठाकुरनगर में लाखों की जनसभा को संबोधित किया। इस जनसभा में इतने लोग उमड़ आये कि लोगों को संभालना मुश्किल हो गया, स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जितने लोग अन्दर मैदान में खड़े थे उससे कहीं ज्यादा बाहर खड़े थे, जिस वजह से अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हुई।बड़ी रैलियों में इस तरह की नौबत आती है, लेकिन व्यवस्था को संभालना आखिरकार स्थानीय सरकार और पुलिस का ही काम है, जिस जिम्मेदारी से ममता बनर्जी लगातार भागने की कोशिश करती रही हैं।
75,000 करोड़ रूपये की किसान सम्मान निधि योजना की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री की यह पहली बड़ी रैली थी, जिसमें किसानों और मजदूरों का इतनी बड़ी तादाद में आना ही ज़ाहिर कर रहा था कि विपक्ष द्वारा सरकार के विषय में फैलाए जा रहे आरोपों को जनता ने नकार दिया है। बंगाल में मोदी के लिए उमड़ा ये जनसैलाब सूबे में भाजपा की बढ़ती धमक का ही सूचक है और ममता दीदी की बेचैनी की वजह भी यही है।
बंगाल के ठाकुरनगर जहाँ पीएम नरेन्द्र मोदी की रैली हो रही थी, वहां भारी संख्या में मातुआ समुदाय के लोग रहते हैं। ये वैसे लोग हैं जो आज़ादी के बाद बांग्लादेश से पलायन करके यहाँ बसे हुए हैं। इसका ज़िक्र यहाँ इसलिए ज़रूरी था, क्योंकि एनआरसी की घोषणा के बाद बंगाल में भ्रम फ़ैलाने वाले लोगों की संख्या ज्यादा बढ़ गई है। बावजूद इसके लोगों का उमड़ना दिखाता है कि विपक्ष के भ्रमों का जनता पर कोई असर नहीं है।
क्या ममता को लोकतंत्र में यकीन नहीं?
ममता बनर्जी खुद वर्षों के संघर्ष के बाद सत्ता में आई लेकिन ऐसा लगता है कि उनका खुद का यकीन प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में नहीं है। ममता पश्चिम बंगाल में भाजपा के लगातार उत्थान को देखकर सकते में हैं और विरोध के लोकतान्त्रिक तरीकों से इतर भी हर वह कोशिश कर रही हैं जो कभी पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार ममता को रोकने के लिए करती थी। लेकिन ममता शायद भूल गयी हैं कि बंगाल में जनता तानाशाही करने वालों को उखाड़ फेंकने में गुरेज़ नहीं करती है।
पश्चिम बंगाल की सियासत को करीब से देखने वालों को पता है कि लेफ्ट के शासन के दौरान किस तरह से गुंडा राज कायम किया गया था, आज भी उसी तरह के दृश्य देखने को मिल रहे हैं। पंचायत चुनावों से लेकर बीजेपी के सभाओं व कार्यकर्ताओं पर दर्जनों बार हमले हुए हैं, जिसको लेकर ममता दीदी मौन रही हैं और मौन का मतलब उनके पार्टी समर्थक सहमति के तौर पर मानते हैं। मगर जनता क्या समझती है, ये भी जरूरी है।
बीजेपी की रैलियों में अगर आज लाखों लोग उमड़ रहे हैं तो ये निश्चित ही बंगाल की जनता के बदलते मिजाज को दिखाता है। भाजपा ने लम्बे समय से पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में निःस्वार्थ भाव से काम किया है, इसका नतीजा अब दिखने लगा है। बीते पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी की त्तानाशाही राजनीति के बावजूद उसे ज़बर्दस्त सफलता मिली।
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में बीजेपी को ग्राम पंचायत चुनाव में 33 फीसद सीटें मिलीं वहीं झारग्राम में 41 फीसद सीटें मिलीं। ऐसे में समझा जा सकता है कि आज के वक़्त में तृणमूल कांग्रेस को अगर भाजपा से डर है तो वो निर्मूल नहीं है। परन्तु भाजपा को बंगाल में रोकने के लिए जो तरीके ममता सरकार अपना रही है, वो लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)