उत्तर प्रदेश सात चरणों में से तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। प्रदेश की आवाम लोकतंत्र के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मना रही है। यही कारण है कि जैसे -जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे है, वोटिंग फीसद भी 2012 के मुकाबले बढ़ रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ना अक्सर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता है, इसलिए ये सपा-कांग्रेस गठबंधन की चिंता को बढ़ा रहा है, तो भाजपा की उम्मीदों को और मजबूत कर रहा है। चुनाव शुरू होने से पहले कई ऐसे घटनाक्रम चले जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाले थे।
यूपी की जनता मोदी सरकार की उज्ज्वला, जनधन, मुद्रा, प्रधानमत्री आवास आदि योजनाओं पर आधारित ‘सबका साथ सबका विकास’ के एजेंडे को देख रही है और इससे प्रभावित भी नज़र आ रही। यह सब वो कारण हैं, जिससे यूपी में बीजेपी को मजबूती मिलती दिख रही है। बहरहाल, यूपी का चुनाव संग्राम अपने लगभग आधे सफर को तय कर चुका है। जनता मतदान करने के लिए घरों से निकल रही है। अब देखने वाली बात होगी कि यूपी की जनता किसे प्रदेश की कमान सौंपती है।
सबसे पहले तो यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में जो प्रायोजित नाटकीय घटनाक्रम चला, उसके जरिये पार्टी और प्रदेश में अखिलेश को मजबूत करने की कवायद मुलायम सिंह द्वारा की गई। इसके बाद कांग्रेस का ‘27 साल यूपी बेहाल’ का नारा ‘यूपी को साथ पसंद है’ में बदल गया अर्थात सपा और कांग्रेस में मौकापरस्ती का गठबंधन चुनाव से ऐन पहले हो गया। अपनी राजनीतीक वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही बसपा इस समूचे चुनाव के सबसे पीछे खड़ी दिखाई दे रही है। यह स्थिति समझ से परे है जो मायावती उत्तर प्रदेश में अपना वर्चस्व रखती थीं, आज उनकी पार्टी के सुस्त राजनीतिक आचार-व्यवहार को देखकर कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले ही मायावती अपनी हार स्वीकार कर चुकी हैं।
वर्तमान में सपा-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा इस चुनाव के केंद्र में हैं। यूपी में सत्ता विरोधी रुझान की जो लहर है, वो बीजेपी के पाले में जाती दिख रही है। इस चुनाव में सबसे मजबूत दावेदार अगर बीजेपी हुई है तो इसके कई प्रमुख कारण हैं। पहला, पिछले चौदह साल से बीजेपी उत्तर प्रदेश में सत्ता से दूर है, इन चौदह सालों में प्रदेश की जनता कभी मायावती तो कभी मुलायम को चुनकर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है। अब एक तरफ मायावती के सत्ता में आते ही जहां भ्र्ष्टाचार अपने पाँव फ़ैलाने लगता है और वे सरकारी धन को मूर्तियों, पार्कों में व्यर्थ का व्यय करने में लग जाती हैं। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी जब-जब सत्ता में आती है, सबसे पहले प्रदेश की कानून व्यवस्था को ताक पर रख देती है। गुंडाराज कायम हो जाता है। शिक्षा व्यवस्था चरमरा जाती है। नौकरियों, नियुक्तियों में भेदभाव की बात सामने आने लगती है। बलात्कार, फिरौती, हत्या, भ्र्ष्टाचार के मामलों में बेतहाशा वृद्धि होती है। ऐसे में, इनसे प्रदेश में विकास की उम्मीद लगाना अब जनता को बेमानी लगने लगा है। साथ ही, अगर आज यूपी में बीजेपी सत्ता में आने का दमखम दिखा रही है, तो इसके पीछे एक मुख्य कारण केंद्र में भाजपा-नीत मोदी सरकार द्वारा अपने लगभग ढाई वर्ष के कार्यकाल में देश के विकास के लिए उठाए गए कदम हैं। यूपी की जनता मोदी सरकार की उज्ज्वला, जनधन, मुद्रा, प्रधानमत्री आवास आदि योजनाओं पर आधारित ‘सबका साथ सबका विकास’ के एजेंडे को देख रही है और इससे प्रभावित भी नज़र आ रही। यह सब वो कारण हैं, जिससे यूपी में बीजेपी को मजबूती मिलती दिख रही है। बहरहाल, यूपी का चुनाव संग्राम अपने लगभग आधे सफर को तय कर चुका है। जनता मतदान करने के लिए घरों से निकल रही है। अब देखने वाली बात होगी कि यूपी की जनता किसे प्रदेश की कमान सौंपती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)