पाँचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे दमदार नज़र आ रही भाजपा !

चुनाव की रणभेरी बजते ही चुनावी युद्ध के मैदान में महारथियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। एक तरफ भाजपा का विकास का मुद्दा है तो दूसरी तरफ अन्य दलों का जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद का मुद्दा। परंपरागत चुनाव से इतर इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग प्रतीत हो रहा है। माना जा रहा है कि यह चुनाव परिणाम कई राजनीतिक पार्टियों की दशा और दिशा भी तय कर सकता है।

देश में निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव तारीखों की घोषणा होते ही सियासी पारा चढ़ने लगा है। राजनीतिक गलियारों में सर्दी के मौसम में भी गर्मी का एहासांस हो रहा है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने हिसाब से मतदाताओं को अपने पाले में करने लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैं। साथ ही, चुनाव में जीत  हासिल करने के लिए सियासी गुणा-भाग भी तेजी से चल रहा है। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कोई प्रोफेशनल राजनीतिक रणनीतिकार का सहारा ले रहे हैं, तो कोई अपने ब्रांड के सहारे जीत के समीकरण बिठाने में लगे हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ कुल पाँच राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। लेकिन, पूरे देश की नजर उत्तर प्रदेश के चुनाव पर है और हो भी क्यो न! आखिर दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जो गुजरता है। इस चुनावी अखाड़े में समाजवादी पार्टी जहां अपने पारिवारिक झगड़े में उलझी हुई है, वहीं बसपा के नेताओं का पार्टी से मोह भंग होता दिख रहा है। हाल के कुछ महीनों में अगर गौर करें तो बसपा से स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। कांग्रेस में कोई सशक्त चेहरा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है और समाजवादी पार्टी में मचा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है या फिर कहें कि पूरी कहानी ही असमंजस से भरी है। वहीं कांग्रेस प्रोफेशनल चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के भरोसे बैठी हुई है।

यूपी में समाजवादी पार्टी में एक अलग ही घमासान मचा है। बसपा अपने परंपरागत दलित वोट के साथ-साथ मुस्लिम वोटों को रिझाने में लगी हुई है। जबकि इन सब से इतर भाजपा विकासवादी राजनीति के पथ पर अग्रसर है। भाजपा की परिवर्तन रैलियों में जो जनसैलाब उमड़ रहा है, उसे देखते हुए यह कहना समीचीन होगा कि राज्य में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहने वाला है। इसके अलावा उत्तराखंड जहा भाजपा की कांग्रेस से सीधी टक्कर है, में भी भाजपा के अच्छा करने की उम्मीद जताई जा रही है। साथ ही, मणिपुर और गोवा जैसे छोटे राज्यों में भी भाजपा के आने की संभावना बन सकती है।

उत्तर प्रदेश का चुनाव इसलिए भी रहस्यमय बनता जा रहा है, क्योंकि मुस्लिम वर्ग, जो कि उत्तर-प्रदेश में एक बड़े मतदाता वर्ग के रूप में माना जाता है, ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है कि वे किधर जाएंगे। हांलाकि सपा में मचे परिवारिक घमासान के बीच मायावती मुस्लिमों को अपने पाले में करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही हैं। अगर टिकट वितरण पर गौर करें तो पता चलता है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इस बार कई ब्राह्मणों का टिकट काट कर मुस्लिम उम्मीदवारों पर अपना भरोसा जतायी है। दूसरा बड़ा मतदाता वर्ग दलित है, जिसे बसपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है, जिसे तोड़ने के लिए भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। क्योंकि, भाजपा जानती है कि सवर्ण समुदाय का ज्यादातर वोट उसके पक्ष में है। ऐसे में, अगर दलित को तोड़ने में वो कामयाब हो जाती है, तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की राह आसान हो जाएगी। लोकसभा में भाजपा दलित पक्ष को अपने पाले में करने में कामयाब भी रही है। उसी का परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को अप्रत्याशित जीत मिली थी। लोकसभा चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी अपने परिवार तक ही सीमित रह गयी, वहीं कांग्रेस पार्टी मात्र दो सीट ही जीत पाई थी, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी शामिल हैं। अगर बसपा की बात करें तो उसका खाता तक नहीं खुल पाया था। भाजपा व अपना दल ने सबको चौंकाते हुए 80 में 73 सीटें हासिल कर इतिहास रच दिया था। लोकसभा के चुनाव परिणाम के बाद ही भाजपा उत्तर प्रदेश को लेकर काफी उत्साहित दिख रही है।

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वहीं अगर हम उत्तराखंड की बात करें तो वहां कांग्रेस की सरकार है, जिस कारण सत्ता विरोधी लहर हावी हो सकती है। उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए हरीश रावत के अलावा कोई भी खेवनहार दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है। क्योंकि, वर्तमान परिदृश्य में उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस के पास हरीश रावत से बड़ा कोई अन्य चेहरा नहीं है। क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सहित कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। हरीश रावत पर भी कुछ दिन पहले कथित रूप से भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं । भाजपा उत्तराखंड में ताबड़तोड़ रैली कर जनता की नब्ज टटोल रही है। ऐसे में, यहां तो सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता दिख रहा है और इस तरह के सीधे मुकाबले में भाजपा का पलड़ा हमेशा से भारी है। क्योंकि जहां-जहां इस तरह के मुकाबले हुए हैं, वहां भाजपा ने जीत का परचम लहराया है, जिसका ताजा उदाहरण असम का चुनाव परिणाम है।

आम आदमी पार्टी(आप) के आने के बाद पंजाब की राजनीति में काफी फेरबदल की संभावना जताई जा रही है। या फिर यूं कहें कि ‘आप’ के आने के बाद पंजाब का चुनावी मुकाबला काफी रोमांचक हो गया है। ‘आप’ पार्टी भी पंजाब में अपना जनाधार देख रही है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में एक मात्र पंजाब ही ऐसा राज्य था, जहां पर उसका खाता खुला था। लोकसभा के बाद से ही ‘आप’ लगातार पंजाब में जनाधार बढ़ाने की जद्दोजहद में लगी हुई है। लेकिन, दिल्ली में जिस तरह उसके नेता एक-एक कर भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर जेल जा रहे हैं, पंजाब में आप के हाथ से मामला निकलता दिख रहा है। गौर करें तो पंजाब में आंकड़े मौजूदा सरकार के पक्ष में हैं। पहले की अपेक्षा कांग्रेस वर्तमान में अपने आपको पंजाब में मजबूत दिखाने की कोशिश कर रही है। खासकर भाजपा के  स्टार नेता नवजोत सिंह सिद्धू को अपने पाले में करने के बाद। लेकिन नवजोत की लोकप्रियता को कांग्रेस वोट में कितना  परिवर्तित कर पाती है, यह तो समय ही बताएगा। वैसे, एक टी.वी. चैनल के हालिया चुनावी सर्वे में भाजपा-अकाली गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलते दिख रहा है। भाजपा के लिए शुभ संकेत यह है कि उसे चंडीगढ़ निकाय चुनाव में भी शानदार जीत मिली है।

गोवा में अभी भाजपा की सरकार है। आम आदमी पार्टी, पंजाब की तरह यहां भी पूरी तरह सक्रिय होने की कवायद में लगी है। लेकिन, मौजूदा हालात में भाजपा गोवा मे सबसे मजबूत है। वर्तमान स्थिति में कुल 40 सीटों में से भाजपा के पास 20, कांग्रेस के पास 9 एवं बाकी सीटें महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी सहित दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के पास है।

पूर्वोतर में पहली बार असम में सरकार बनाने के बाद भाजपा काफी उत्साहित है। यहां आपको बता दें कि केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही प्रधानमंत्री ने पूर्वोतर पर अपना ध्यान बढ़ा दिया था। क्योंकि तमिलनाडु, पं. बंगाल, उड़ीसा आदि के बाद पूर्वोतर ही ऐसा क्षेत्र है जहां भाजपा मुख्य भूमिका में नहीं है। भाजपा जानती है कि 2019 में अगर उसे पुनः सरकार बनानी है तो इन राज्यों को अपने कब्जे में लेना जरूरी है। ताकि अगर उत्तर भारत में अगर कुछ सीटों का नुकसान हो तो उसकी भरपाई इन छोटे राज्यों से हो जाये। असम और अरूणाचल में भाजपा की सरकार बनने के बाद अब उसकी नजर मणिपुर की चुनाव पर है। मणिपुर में फिलहाल कुल 60 सीटों में से 42 सीटों पर कांग्रेस, 07 सीटों पर तृणमुल कांग्रेस, 05 सीटों पर मणिपुर स्टेट कांग्रेस और 06 सीटों पर क्षेत्रीय पार्टी काबिज है। वर्तमान में मणिपुर की राजनीतिक हालत भी बदली है और भाजपा ने वहाँ भी अपनी पकड़ मज़बूत की है।

यूपी में समाजवादी पार्टी में एक अलग ही घमासान मचा है। बसपा अपने परंपरागत दलित वोट के साथ-साथ मुस्लिम वोटों को रिझाने में लगी हुई है, जबकि इन सब से इतर भाजपा विकासवादी राजनीति के पथ पर अग्रसर है। उत्तर-प्रदेश का चुनाव प्रधानमंत्री के लिए काफी महत्वपूर्ण है। भाजपा की परिवर्तन रैलियों में जो जनसैलाब उमड़ रहा है, उसे देखते हुए यह कहना समीचीन होगा कि राज्य में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहने वाला है। इसके अलावा उत्तराखंड जहा भाजपा की कांग्रेस से सीधी टक्कर है, में भी भाजपा के अच्छा करने की उम्मीद जताई जा रही है। साथ ही, मणिपुर और गोवा जैसे छोटे राज्यों में भी भाजपा के आने की संभावना बन सकती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं एवं समसामयिक विषयों लेखन करते हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)