अभी सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं के हाथों केरल भाजपा के युवा कार्यकर्ता निर्मल (20) की हत्या के एक सप्ताह भी नहीं बीते कि यहाँ एक और भाजपा नेता की मौत मार्क्सवादी हिंसा में हो गयी है। भाजपा के कडकल पंचायत समिति के अध्यक्ष एवं सेवानिव्रित पुलिस इंस्पेक्टर रवींद्रनाथ (58) दिनांक 2 फ़रवरी को मार्क्सवादियों के घातक हमले में घायल हो गए थे। उनके सर पर गंभीर चोटें आई थीं। इस चोट के कारण उनका निधन शानिवार 18 फ़रवरी की सुबह त्रिवेंद्रम मेडिकल कॉलेज में इलाज़ के दौरान हो गया। केरल में मार्क्सवादी हिंसा लगातार जारी है। गौरतलब है कि केरल में पुलिस व्यवस्था एवम गृह विभाग मार्क्सवादी मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के हाथों में है। जब से पिनाराई ने सत्ता सम्हाली है, तब से मात्र 9 महीने में रवींद्रनाथ को मिलाकर 11 भाजपा कार्यकर्ताओं की जान सी.पी.एम. समर्थित हिंसा में जा चुकी है।
मार्क्सवादियों का राज हर दिन केरल के किसी न किसी राजनैतिक घर में मातम का कारण बना हुआ है। कारण है, उनकी हिंसक विचारधारा, जो कि लोकतंत्र से ज्यादा तानाशाही व्यवस्था एवम निरंकुश सोच को अच्छा मानती है। इस सोच के साथ सी.पी.एम. जब तक केरल के राजनैतिक परिवेश में प्रासंगिक बनी रहेगी तब तक विपक्षी कार्यकर्ताओं की बलि एवं राजनैतिक हिंसा के थम जाने की बात अब शायद बेमानी ही प्रतीत होती है।
यह घटना कुंजिरथुमोडू, कडकल जो कि त्रिवेंद्रम के निकटवर्ती जिले कोल्लम में अवस्थित है, वहाँ की बताई जा रही है। रविंद्रनाथ पर 2 फ़रवरी को तब हमला हुआ जब वो एक मंदिर के कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। शुरुआत में भाजपा कार्यकर्ताओं और सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं के बीच मामूली झड़प हुई थी, जो पुलिस की मध्यस्थता के कारण शांत हो गयी थी। परंतु, मंदिर के कार्यक्रम से जब रविंद्रनाथ अपने सहयोगियों के साथ वापस लौट रहे थे, तो सी.पी.एम. के गुंडों ने फिर से घात लगाकर उनपर जानलेवा हमला कर दिया। इस हमले में उनके सर पर गंभीर चोट आई। मार्क्सवादियों की बर्बरता यहीं नहीं रुकी, उन्होंने रास्ते को घंटो जाम करके रखा जिससे एम्बुलेंस समय पर घायल भाजपा कार्यकर्ताओं को अस्पताल नहीं पहुँचा सके। सारे घटना क्रम के दौरान कडकल सर्किल इस्पेक्टर शनि एवं पुलिस बल मूकदर्शक बना रहा एवं कोई सहायता को नहीं आया। यह आक्रमण एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया ताकि क्षेत्र में सी.पी.एम. का भय बन सके। इस सारे घटनाक्रम के पीछे सी.पी.एम. के उच्च पदों पर आसीन सत्तारूढ़ नेताओं की भूमिका बिलकुल स्पष्ट है। रवींद्रनाथ को अचेतनावस्था में ही त्रिवेंद्रम मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जहाँ उन्होंने 18 फ़रवरी को आखिरी सांस ली।
अकेले कडकल में जो कि मार्क्सवादियों का गढ़ माना जाता है, सी.पी.एम. की हिंसा में मारे जाने वाले रामचंद्रन चौथे संघ/भाजपा कार्यकर्ता हैं। उनके पहले यहाँ आरएसएस प्रचारक दुर्गादास, चिंगेली प्रसोभान एवं मुल्लनकत्तुकुज़ही जयन की हत्या मार्क्सवादियों के द्वारा हो चुकी है। केरल में राजनीतिक हिंसा की भेंट चढ़ने वाले रवींद्रनाथ भाजपा/आरएसएस के 295 वें सिपाही हैं। जबकी मार्क्सवादी हिंसा के शिकार होने वाले 232 वें बलिदानी हैं। सी.पी.एम. की स्टॅलिन वाली राजनीती लगातार केरल के माँ बेटियों की गोद सूनी कर रही है। सी.पी.एम. के लिए राजनीती का अर्थ यहाँ केवल विरोधियों की हत्या है। चुनावों का मत प्रतिशत बता रहा है कि आज केरल में वामपंथियों का जनाधार तेजी से खिसककर भाजपा की तरफ आ रहा है, जिस कारण भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले बेतहाशा बढ रहे हैं। सामाजिक गतिविधिओं में भाजपा कार्यकर्ताओं का प्रभाव एवं स्वीकार्यता बढ़ी है, जिससे बौखला कर सी.पी.एम. ये हमले करवा रही है। निर्मल की हत्या भी मंदिर में तनाव के बाद रास्ते में लौटते वक्त हुई थी, ठीक उसी तरह रवींद्रनाथ पर भी पहले हमला हुआ था। हमले का तरीका एवं वजह में गजब की समानता है।
जब से पिनाराई ने सत्ता संभाली है, प्रदेश में हर 25 वें दिन किसी भाजपा कार्यकर्ता की हत्या हो रही है। अभी हाल ही में 12 फ़रवरी को भाजपा के ओबीसी मोर्चा के कार्यकर्ता प्रमोद को मल्लापुरम के तिरुर में सी.पी.एम. के गुंडों ने चाकुओं से हमला कर घायल कर दिया था, सौभाग्य से उनकी जान बच गयी थी, पर रवींद्रनाथ इतने भाग्यशाली नहीं रहे। घटना के बाद कडकल की स्थानीय जनता डरी हुई है कि कब किस निर्दोष की जान वामपंथी हिंसा की भेंट चढ़ जाये। सत्ता से बाहर होने का डर मार्क्सवादियों में इस कदर समाया हुआ है कि उनके विरुद्ध हर आवाज़ को वो हमेशा के लिए दबा देना चाहते हैं। घटना के विरोध में कोल्लम भाजपा के आह्वान पर रविवार को दिनभर का बंद काफी सफल रहा है। जनता मार्क्सवादियों के आतंक से ऊब चुकी है एवं राजनैतिक मुक्ति के लिए छटपटा रही है। मार्क्सवादियों का राज हर दिन केरल के किसी न किसी राजनैतिक घर में मातम का कारण बना हुआ है। कारण है, उनकी हिंसक विचारधारा, जो कि लोकतंत्र से ज्यादा तानाशाही व्यवस्था एवम निरंकुश सोच को अच्छा मानती है। इस सोच के साथ सी.पी.एम. जब तक केरल के राजनैतिक परिवेश में प्रासंगिक बनी रहेगी तब तक विपक्षी कार्यकर्ताओं की बलि एवं राजनैतिक हिंसा के थम जाने की बात अब शायद बेमानी ही प्रतीत होती है।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान में रिसर्च एसोसिएट हैं।)