कांग्रेस के ज्यादातर वादे मतदाताओं को तात्कालिक तौर पर लुभाने वाले हैं, जबकि भाजपा ने देश को हर तरह से मजबूती देने वाले दूरदर्शितापूर्ण और व्यावहारिक वादे किए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसके वादों पर कितना यकीन दिखाती है।
देश में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और हर दल अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र निकालने में लगा है। गत दो अप्रैल को जहां कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणापत्र ‘हम निभाएंगे’ शीर्षक के साथ जारी किया था, तो वहीं आठ अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना संकल्प पत्र जनता के सामने रख दिया। भाजपा 2014 से सत्ता में है, तो कांग्रेस इससे पूर्व लगातार दस वर्ष और उससे भी पूर्व के दशकों में सर्वाधिक समय तक देश का शासन चला चुकी है।
कांग्रेस की लाख कमजोरियों के बावजूद इस चुनाव में भी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होनी है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि इन दोनों दलों के घोषणापत्रों के प्रमुख बिन्दुओं पर एक नजर डाली जाए और इस बात की पड़ताल की जाए कि कौन दल देश के वर्तमान और भविष्य को लेकर कितनी स्पष्ट और तर्कसम्मत दृष्टि रखता है।
भारत के लिए गरीबी एक बड़ी समस्या है। आंकड़ों के अनुसार आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी देश की बीस प्रतिशत से अधिक आबादी अब भी गरीबी की चपेट में है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में गरीबी पर चोट करने की बात कही है और इसके लिए ‘न्याय’ योजना लाने वादा किया गया है, जिसके तहत गरीबों को छः हजार मासिक की दर से सालाना बहत्तर हजार रुपये दिए जाएंगे। राहुल गांधी हर कहीं यह कह रहे हैं कि ये ‘गरीबी मिटाओ’ योजना है। सवाल है कि क्या वाकई ऐसी योजना से गरीबी मिट जाएगी? देखा जाए तो यह योजना भारत जैसे विशाल आबादी और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश में व्यावहारिक ही नहीं है।
जानकारों की मानें तो इस योजना पर वार्षिक लागत 3.6 लाख करोड़ रुपये की आएगी, ये पैसा कहाँ से आएगा इसपर राहुल गांधी और कांग्रेस का घोषणापत्र खामोश हैं। दूसरी चीज कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र जो पहले से ही मानव संसाधन की कमी का सामना कर रहे हैं, इस योजना को लागू करने में पिस जाएंगे। बैंकों के सर्वर पर भी दबाव बढ़ेगा, जिसे अद्यतन करने एवं नई तकनीक को खरीदने के लिये बैंकों को भारी-भरकम पूँजी की जरूरत होगी।
योजना के सही लाभार्थियों की पहचान कर उनतक इसे पहुँचाना भी आसान नहीं, इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने की पूरी-पूरी संभावना है। कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश आदि राज्यों में कर्जमाफी के वादे का हश्र हम देख चुके हैं। इतने सब के बाद भी अगर एकबार के लिए मान लें कि ये योजना लागू हो जाती है, तो भी इससे गरीबों को जो पैसे मिलेंगे, उससे कुछ समय के लिए उनका जीवन-स्तर भले सुधर जाए लेकिन वे गरीबी से बाहर आ जाएंगे, ये कहना बहुत दूर की कौड़ी है।
भाजपा ने अपनी वर्तमान गरीब कल्याण नीतियों के तहत गरीबों के लिए आवास, शौचालय, एलपीजी सिलेंडर, बिजली-पानी आदि मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता कराने का वादा किया है। गरीबी हटाने की दिशा में ये काफी हद तक सुविचारित और स्पष्ट दृष्टि है। गरीबों को सीधे पैसा देने की बजाय उसी पैसे से उनका जीवन-स्तर सुधारकर उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकालना व्यावहारिक और कारगर दोनों है। भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में इस दिशा में कुछ काम किया भी है, जिससे उसके इस वादे पर यकीन किया जा सकता है।
रोजगार के मोर्चे पर कांग्रेस के घोषणापत्र में बाईस लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया गया है। लेकिन इसकी पड़ताल करने पर ज्ञात होता है कि इसमें से मात्र चार लाख नौकरियां ही केंद्र सरकार के अधीन हैं, बाकी राज्य सरकारों के अंतर्गत आती हैं। ऐसे में केंद्र की सत्ता में रहते हुए कांग्रेस राज्यों में कैसे और कितनी नौकरियां दिलवा पाएगी, ये बड़ा सवाल है। साथ ही कांग्रेस का वादा है कि तीन साल तक युवाओं को व्यापार शुरू करने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं होगी। देखा जाए तो लगभग यही चीज स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं के जरिये सुनियोजित ढंग से मोदी सरकार पहले से ही कर रही है।
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में मुद्रा योजना जिसके तहत अबतक 17 करोड़ लोगों को स्वरोजगार हेतु कर्ज दिया जा चुका है, का विस्तार कर उसे तीस करोड़ तक ले जाने की बात कही है। भाजपा सरकार की मुद्रा योजना निश्चित ही रोजगार के मोर्चे पर एक रचनात्मक पहल है, किन्तु सरकार को इस बात की भी पड़ताल करनी चाहिए कि जो कर्ज दिए गए हैं, उनमें से कितनों के जरिये रोजगार स्थापित हुए हैं।
किसानों के लिए कांग्रेस ने एक अलग बजट लाने तथा कर्ज न चुका पाने की स्थिति में उनपर दीवानी मुकदमा चलाने की बात कही है। ये दोनों वादे भले अच्छी मंशा से किए गए हों, लेकिन व्यावहारिकता में इनसे कोई लाभ नहीं दिखता। किसान के लिए अलग से बजट लाया जाए या आम बजट में ही आवंटन हो, इससे उसकी दशा पर क्या फर्क पड़ता है? जरूरी ये है कि किसान को सशक्त करने के लिए कैसी नीतियां और योजनाएं लाई जाती हैं। इस मामले में कांग्रेस रिक्त ही दिखती है।
रही बात कर्ज न चुकाने को अपराध के दायरे से बाहर करने की इस नीति से जरूरतमंद किसानों को लाभ हो न हो, लेकिन मजबूत किसान इसका दुरूपयोग जमकर करेंगे। अब भी कर्जमाफी की आस में बहुत से सक्षम किसान कर्ज नहीं चुकाते, इस योजना के बाद तो कर्ज न चुकाना फैशन ही बन जाएगा। ये देश के अर्थतंत्र के लिए घातक कदम होगा।
भाजपा ने 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने, किसान क्रेडिट कार्ड पर 1 लाख तक के कर्ज के लिए पांच साल तक शून्य ऋण की व्यवस्था, किसान सम्मान निधि सहित 25 लाख करोड़ ग्रामीण विकास पर खर्च करने का वादा किया है। निस्संदेह भाजपा के इन वादों में रचनात्मक दृष्टि है।
कांग्रेस ने अफस्पा की समीक्षा और देशद्रोह क़ानून खत्म करने का वादा भी किया है। अफस्पा के तहत तैनात सुरक्षाबलों पर जब-तब लगे बलात्कार, हत्या आदि के आरोपों का रेखांकन करते हुए कांग्रेस ने इसकी समीक्षा की बात कही है। समझ नहीं आता कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर इतनी हल्की सोच कोई दल कैसे रख सकता है। अफस्पा वहीं लागू है, जहां इसकी जरूरत है और ये उन क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के लिए ढाल का काम करता है। कांग्रेस द्वारा समीक्षा का वादा इस ढाल को कमजोर करने वाली बात है।
कहा जा रहा कि देशद्रोह क़ानून तो अंग्रेजों के समय का है, इसे खत्म होना चाहिए, सो सवाल उठता है कि हमारे संविधान की अनेक व्यवस्थाएं भी तो अंग्रेजी शासन की ही हैं, लेकिन उपयोगिता के आधार पर इन्हें कायम रखा गया है फिर देशद्रोह क़ानून को खत्म करने का क्या मतलब है? क्या इस क़ानून को खत्म करना ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारों को समर्थन देना नहीं है? कांग्रेस को ये बातें स्पष्ट करनी चाहिए।
भाजपा ने इन सब विषयों को नहीं छुआ है, लेकिन धारा-370 को खत्म करने, राम मंदिर बनाने का प्रयास करने जैसे अपने पुराने वादे दोहराए हैं। अबकी राम मंदिर के साथ सबरीमाला मंदिर का मुद्दा भी संकल्प पत्र में शामिल हो गया है। भाजपा ने 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर और 2032 तक दस लाख करोड़ डॉलर सहित तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही है।
यह वो नए भारत का विजन है जो कांग्रेस के घोषणापत्र में नदारद नजर आता है। कुल मिलाकर कांग्रेस के ज्यादातर नए वादे मतदाताओं को तात्कालिक तौर पर लुभाने वाले हैं, जबकि भाजपा ने देश को हर तरह से मजबूती देने वाले दूरदर्शितापूर्ण और व्यावहारिक वादे किए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसके वादों पर कितना यकीन दिखाती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)