यह जनरक्षा यात्रा इस लिहाज से भी जरूरी थी कि जबतक हिंसा किसी भाजपा-शासित राज्य में न हो, तब तक वह सुर्ख़ियों का, चर्चा का विषय नही बन पाती। पिछले एक साल में केरल में तकरीबन 13 कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं की गईं, पर क्या मजाल कि इसपर किसी समाचार चैनल पर कोई चर्चा दिखी हो। यहाँ तक कि यात्रा शुरू होने से पहले सोमवार की शाम में भी कुछ कार्यकर्ताओं पर हमले हुए, लेकिन कहीं कोई चर्चा नहीं दिखी।
‘केरल’, जिसे ईश्वर की भूमि कहा जाता है, वामपंथी शासन में राजनीतिक हिंसा का खूनी अखाड़ा बनता जा रहा है। अबतक यहाँ भाजपा और संघ के करीब 300 कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं, जिनमें से अधिकतर हत्याएं खुद मुख्यमंत्री पी. विजयन के क्षेत्र कन्नूर में हुई हैं। वामपंथी बुद्धिजीवी, तथाकथित मानवाधिकारवादी जो भाजपा-शासित राज्यों पर सवाल उठाने के मामले में सबसे आगे होते हैं, इन हत्यायों पर खामोश नज़र आते हैं।
केरल की वामपंथी सरकार हत्यारों को संरक्षण देने और इन मामलों को दबाने का ही प्रयास करती रही है। हैरानी ये भी है कि खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने वाला मीडिया भी इन घटनाओ पर उस तरह से सवाल नही उठाता जैसे गौरी लंकेश के लिए उठाया गया था। बल्कि मीडिया में भी इस खबर को हर स्तर पर दबाया गया है।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने केरल में 15 दिन की जनरक्षा यात्रा का उद्घोष किया है। पेन्नूर से अपनी जनयात्रा मंगलवार को शुरू करते हुए अमित शाह ने वामपंथी सरकार के विरुद्ध सीधा मोर्चा खोला है। अमित शाह ने जनता को संबोधित करते हुए कहा भी कि केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल वामपंथ के लम्बे समय से गढ़ बने हुए हैं और इन्ही जगहों पर सबसे ज्यादा राजनैतिक हिंसा, हत्याएं आदि देखने को मिलती हैं।
इन हत्यायों में मारे गये सभी लोगो को उन्होंने श्रद्धांजलि अर्पित की और साथ ही उनके परिवार को यह भरोसा भी दिया कि पार्टी और सभी कार्यकर्त्ता उनके साथ हैं। 18 अक्टूबर तक चलने वाली इस जनरक्षा यात्रा में प्रतिदिन एक केंद्रीय मंत्री के अलावा भाजपा-शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी उपस्थित रहेंगे।
यह यात्रा इस लिहाज से भी जरूरी थी कि जबतक हिंसा किसी भाजपा-शासित राज्य में न हो, तब तक वह सुर्ख़ियों का, चर्चा का विषय नही बन पाती। पिछले एक साल में केरल में तकरीबन 13 कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं की गईं, पर क्या मजाल कि इसपर किसी समाचार चैनल पर कोई चर्चा दिखी हो। यहाँ तक कि यात्रा शुरू होने से पहले सोमवार की शाम में भी कुछ कार्यकर्ताओं पर हमले हुए, लेकिन कहीं कोई चर्चा देखने को नहीं मिली। बात-बात पर मोर्चा खोलने वाली वामपंथियों की मोमबत्ती गैंग भी केरल की इन राजनीतिक हत्यायों के खिलाफ नही बोलती और सिविल सोसाइटी भी इसपर चुप हो जाती है।
विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अब खुद इसके विरुद्ध कदम उठाते हुए अपने सभी शीर्ष नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करते हुए पन्द्रह दिन की इस जनरक्षा यात्रा का आरम्भ किया है। यात्रा के दूसरे ही दिन उत्तर प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस यात्रा को संबोधित किया और संघ और भाजपा के अटल प्रयासों की सराहना की। उन्होंने नौ किमी तक पदयात्रा भी की।
गौरतलब है कि जिस तरह का माहौल वामपंथी देश में तैयार करते हैं, उसका उत्तर उन्हें चुनावों में जनता दे रही है। दुनिया भर में हाशिये पर पड़ा वामपंथ अब भारत में भी अपनी अंतिम साँसें ही गिन रहा है। बंगाल इनके हाथ से जा चुका है। केरल और त्रिपुरा बचे हैं, तो वहाँ जिस ढंग से ये राजनीतिक हिंसा का तांडव मचाए हुए हैं, उसे देखते हुए चुनावों में जनता इन्हें माकूल जवाब देगी। वहाँ भी इनका सूपड़ा साफ़ होना लगभग निश्चित है। बंगाल और केरल में तो भाजपा जमीनी स्तर पर विपक्ष के रूप में लगातार मजबूत भी होती जा रही है।
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)