सवाल समाज के अंतिम छोर पर खड़े दलित समुदाय से आने वाले उस शख्स का भी है जो प्रधानमंत्री मोदी के वाक्य ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ में यकीन रखता है। चूंकि शरणार्थियों में सर्वाधिक दलित समुदाय से ही आते हैं इसलिए जाहिर है उस भरोसे को, उस उम्मीद को बनाए रखने की प्रतिबद्धता भारतीय जनता पार्टी ने न सिर्फ दिखाई है बल्कि पूरा करने की दिशा में मजबूती से आगे भी बढ़ रही है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वर्तमान राजनीति के इस दौर में जब विपक्षी दल शरणार्थियों के हितों के विरुद्ध खड़े हैं, शरणार्थियों की सारथी बनकर भाजपा उनके के हितों की रक्षा कर रही है।
पश्चिम बंगाल की सुषुप्त पड़ी राजनीति में गृहमंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह के दौरे ने एक बार फिर उबाल ला दिया है। राजनीतिक सरगर्मी में वृद्धि करते हुए अमित शाह ने शरणार्थियों के प्रति पुनः अपना दृढ़ संकल्प दोहराते हुए कहा कि हर शरणार्थी को नागरिकता देकर रहेंगे चाहे कोई कितना भी सीएए का विरोध करे।
अब इसे समझने की बारी उन महानुभावों की है जो अपनी राजनीति को चमकाने के लिए एक वर्ग विशेष का इस्तेमाल शाहीन बाग में कर रहे हैं। दिल्ली के कुछ ख़ास हिस्से में दंगा भड़का रहे हैं। बात सिर्फ दिल्ली की नहीं बल्कि देश भर की है।
अकेले बंगाल की बात करें तो टीएमसी यहां सीएए को लेकर लगातार भ्रम फैलाकर, राजनीतिक हिंसा करवाकर अपने वोट बैंक को सहेजने की कोशिश कर रही है। आपको याद होगा कि लोकसभा में सीएए पर बहस के दौरान तृणमूल के सांसद रविन्द्रनाथ और विवेकानंद का उदाहरण देते हुए खुद को ‘बंगाली हिन्दू’ घोषित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन सांसदों को ममता बैनर्जी से पूछना चाहिए कि जब बंगाली हिन्दू शरणार्थियों की बात आती है तो वे घुसपैठियों के पक्ष में क्यों खड़ी हो जाती हैं?
निश्चित रूप से ममता बैनर्जी 2019 लोकसभा चुनावों का हश्र भूली नहीं होंगी, ऐसे में अमित शाह की गर्जना से एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस और ममता के कान खड़े हो गए होंगे। अपनी बेहद जानी-पहचानी भाषण शैली के माध्यम से कार्यकर्ताओं और जनता से संवाद स्थापित करने वाले अमित शाह ने ममता से पूछा कि आप इन घुसपैठियों पर इतनी नरमी क्यों दिखाती हैं?
इस पूरे विषय को अगर ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो जनसंघ के शीर्षस्थ नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहा था कि, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी बंगाल के हिन्दू न केवल मानवीय आधार पर बल्कि आगामी पीढ़ियों के भविष्य के लिए उनके द्वारा ख़ुशी-ख़ुशी सहे गए कष्टों और बलिदानों के आधार पर तथा अपने हितों को दरकिनार कर भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता और बौद्धिक प्रगति की नींव रखने के लिए, भारत के संरक्षण के हकदार हैं।”
फिर सवाल समाज के अंतिम छोर पर खड़े दलित समुदाय से आने वाले उस शख्स का भी है जो प्रधानमंत्री मोदी के वाक्य ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ में यकीन रखता है। चूंकि शरणार्थियों में सर्वाधिक दलित समुदाय से ही आते हैं इसलिए जाहिर है उस भरोसे को, उस उम्मीद को बनाए रखने की प्रतिबद्धता भारतीय जनता पार्टी ने न सिर्फ दिखाई है बल्कि पूरा करने की दिशा में मजबूती से आगे भी बढ़ रही है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वर्तमान राजनीति के इस दौर में जब विपक्षी दल शरणार्थियों के हितों के विरुद्ध खड़े हैं, शरणार्थियों की सारथी बनकर भाजपा उनके के हितों की रक्षा कर रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)