यूपी विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना दांव खेलने के लिए तैयार हो चुकी है। एक तरफ यूपी में मुख्य विपक्षी दल बसपा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खो चुकी साख को वापस पाने के लिए जद्दोजहद करने में लगी हुई है। सत्तारूढ़ सपा में मचे दंगल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। सपा में जो दंगल मचा है, उसे लेकर लोगों में भ्रम ही घुमड़ रहा है कि वो राजनीतिक दंगल है या पारिवारिक। इन सबके बीच एकमात्र भाजपा ऐसी पार्टी के रूप में नज़र आ रही है, जो विकास की बात करते हुए सकारात्मक राजनीति के सहारे यूपी चुनाव में ताल ठोंक रही है।
यूपी में भाजपा की बढ़ती ताक़त को भांपते हुए बेबस होकर विपक्ष अब एकजुट होने में लगा हुआ है। विपक्षी पार्टियां सपा और कांग्रेस हार के स्वाद से बचने की मंशा से एक होने की कवायदों में लगी हुई हैं। कयासों के मुताबिक सपा 250 और कांग्रेस लगभग 100 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी। 50 सीटें सहयोगी दलों को दी जाएंगी। जिसमें रालोद, महान दल और पीस पार्टी आदि के चुनाव लड़ने की संभावना है। यह भी कहा जा रहा कि राहुल गांधी, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी मिलकर प्रचार करेंगे। स्पष्ट है कि यूपी में बसपा को छोड़ लगभग पूरा विपक्ष भाजपा की लहर से भयभीत होकर एकजुट होने में लगा है, लेकिन भाजपा की लहर के आगे इस संभावित गठबंधन के टिकने की संभावना कम ही प्रतीत होती है।
दरअसल चुनावी बिगुल बजते ही सर्वे आने शुरू हो गए हैं, सूबे में सियासी संग्राम का सीधा फायदा बीजेपी को होता दिख रहा है। ज्यादातर सर्वे के मुताबिक़ बीजेपी को आगामी विधानसभा चुनावों में यूपी में पूर्ण बहुमत मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। बीजेपी अध्य़क्ष अमित शाह और पीएम मोदी खुद रण में उतरकर जनता को विश्वास दिलाने में लगे हुए है कि वो यूपी में भी बदलाव लाएंगे और राज्य को विकास की दिशा में आगे ले जाएंगे। मोदी की रैलियों में उमड़ी भीड़ को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जनता भाजपा को दिलों-दिमाग में बैठा चुकी है। भाजपा के केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद देश में विकास कार्यों की रफ्तार बढ़ने से जनता बेहद प्रभावित हुई है, तो दूसरी तरफ यूपी की सत्ताधारी पार्टी सपा पर शुरूआत से ही आम जनता का पैसा अपने निजी कामों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगता रहा है। विकास की बात की जाए तो बीजेपी राज्यों के मुकाबले 5 सालों में यूपी में विकास काफी धीमी रफ्तार से हुआ है।
मोदी सरकार द्वारा लिया गया कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसा नोटबंदी का फैसला इन चुनावों में बीजेपी के लिए रामबाण साबित होने वाला है। विपक्षी चाहे कुछ भी कहें, लेकिन हकीकत से जनता रूबरू है और वो जानती है कि नोटबंदी से देश को कितना फायदा हुआ है। लोग इस सच को मान रहे हैं कि नोटबंदी से काले धर पर करारी मार पड़ी है।
सूबे में भाजपा की इस बढ़ती ताक़त को भांपते हुए बेबस होकर विपक्ष अब एकजुट होने में लगा हुआ है। विपक्षी पार्टियां सपा और कांग्रेस जैसी एकदूसरे को निरंतर कोसते रहने वाली पार्टियाँ अब हार का स्वाद न चखना पड़े, इसलिए हाथ मिलाने में लगी हुई हैं। कयासों के मुताबिक सपा 250 और कांग्रेस लगभग 100 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी। 50 सीटें सहयोगी दलों को दी जाएंगी। जिसमें रालोद, अपना दल (कृष्णा पटेल गुट), महान दल और पीस पार्टी आदि के चुनाव लड़ने की संभावना है। कांग्रेस नेता के मुताबिक प्रभारी महासचिव गुलाब नबी आजाद और प्रशांत किशोर मिलकर सीट तय कर चुके हैं, जिन सीटों पर कांग्रेस को चुनाव लड़ना है। इस पर राहुल गांधी की भी सहमति बताई जा रही है। यह भी कहा जा रहा कि राहुल गांधी, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी मिलकर प्रचार करेंगे। स्पष्ट है कि यूपी में बसपा को छोड़ दें तो लगभग पूरा विपक्ष भाजपा की लहर से भयभीत होकर एकजुट होने में लगा है, लेकिन जनता शायद ही सपा के नेतृत्व वाले इस गठबंधन पर भरोसा करे। भाजपा की लहर के आगे इस संभावित गठबंधन के टिकने की संभावना कम ही प्रतीत होती है।
(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)