यह आश्चर्य की बात है कि किसान जैसा बड़ा एवं महत्वपूर्ण वर्ग बंगाल में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ नहीं प्राप्त कर पा रहा है। ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार को केंद्र की भाजपा सरकार से समस्या हो सकती है लेकिन क्या इस निजी समस्या का खामियाजा जनता को भुगतना चाहिये? किसान तो एक उदाहरण हैं, इसी प्रकार कई योजनाएं हैं जो केंद्र से चलकर यहां राज्य तक नहीं पहुंच पातीं।
बंगाल चुनाव की बेला में अब राजनीतिक दल अपना घोषणा-पत्र लेकर आ गए हैं। पहले टीमएसी ने अपना चुनावी घोषणा-पत्र जारी किया और उसके कुछ ही दिनों बाद भाजपा ने भी अपना संकल्प पत्र जारी कर दिया है जो कि बहुप्रतीक्षित था। बहुप्रतीक्षित इस अर्थ में क्योंकि भाजपा शुरू से कहती आ रही है कि वह यहां वोटर्स को रिझाने के लिए नहीं, बल्कि सुशासन स्थापित करने के लिए प्रयास कर रही है। पार्टी का संकल्प पत्र भी उसके इस दावे को प्रतिबिंबित करता है।
केंद्र सरकार की कुछ योजनाओं का लाभ लेने से बंगाल की जनता आज भी वंचित है। इस खाई को पाटने के लिए भी भाजपा सत्ता में आना चाहती है। बात बहुत हद तक सही भी है। आंकड़े और तथ्य इस बात की तस्दीक करते हैं।
यह आश्चर्य की बात है कि किसान जैसा बड़ा एवं महत्वपूर्ण वर्ग बंगाल में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ नहीं प्राप्त कर पा रहा है। ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार को केंद्र की भाजपा सरकार से समस्या हो सकती है लेकिन क्या इस निजी समस्या का खामियाजा जनता को भुगतना चाहिये? किसान तो एक उदाहरण हैं, इसी प्रकार कई योजनाएं हैं जो केंद्र से चलकर यहां राज्य तक नहीं पहुंच पातीं। पहुंचती भी हैं तो फलीभूत नहीं हो पाती। इसीलिए यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिर भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में क्या वादे किए हैं।
संकल्प में सबसे मुख्य बात यह है कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ बंगाल के लोगों को भी मिलेगा। साथ ही 75 लाख किसानों को जो 18 हजार रुपये तीन साल से ममता बनर्जी ने नहीं पहुंचाया है, वो सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में पहुंचेगा। पहले ही कैबिनेट के अंदर बंगाल के हर गरीब को आयुष्मान भारत योजना, जिससे ममता सरकार ने राज्य के लोगों को वंचित कर रखा है, का लाभ देने का वादा भी भाजपा ने किया है।
संकल्प पत्र में गौर करने योग्य वादा यह भी है कि हर वर्ष किसानों को भारत सरकार का जो 6 हजार रुपये आता है उसमें राज्य सरकार का 4 हजार रुपया जोड़कर दिया जाएगा। मत्स्य पालकों को हर वर्ष 6 हजार रुपये दिए जाएंगे।
इन सबसे बढ़कर सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट को पहली ही कैबिनेट में लागू करने का महत्वपूर्ण वादा भी भाजपा के संकल्प पत्र में है। मुख्यमंत्री शरणार्थी योजना के तहत प्रत्येक शरणार्थी परिवार को पांच साल तक DBT से 10 हजार रुपया प्रतिवर्ष दिया देने की बात भी कही गयी है। एक तो किसानों को दिए जाने वाली इस राशि में राज्य का अंशदान केंद्र की तुलना में कम है, ऊपर से जितना है वह भी नहीं दिया जा रहा है।
ऐसे में भाजपा के इस वादे का विशेष महत्व है। बंगाल में एक प्रकार से मनमानी की सरकार चल रही है। इस सरकार का जनकल्याण से कोई सरोकार मालूम नहीं होता। ऐसे में भाजपा यदि बुनियादी मुद्दों की बातें कर रही है तो वह आकर्षित कर रहा है।
संकल्प पत्र जारी करते हुए अमित शाह ने कहा कि भाजपा के संकल्प पत्र में सिर्फ घोषणाएं नहीं हैं, बल्कि ये संकल्प है दुनिया के सबसे बड़े दल का, ये संकल्प है देश में 16 से ज्यादा राज्यों में जिसकी सरकार है उस पार्टी का, ये संकल्प है पूर्ण बहुमत से लगातार दो बार बनी सरकार का।
यह अपने आप में विसंगतिपूर्ण बात है कि बंगाल में पिछले कई वर्षों से घुसपैठिये चले आ रहे हैं और राज्य सरकार मौन बैठी है। क्या घुसपैठियों को सरकार से समर्थन मिल रहा है जो वे इतने बेखौफ हैं। शायद, इसीलिए अपने संकल्प-पत्र में भाजपा को यह भी कहना पड़ा कि हम पांच साल में बंगाल को घुसपैठियों से मुक्त बनाएंगे। कटमनी, तोलाबाजी व तुष्टीकरण से मुक्ति दिलाएंगे।
जहां तक ममता बनर्जी के घोषणा-पत्र की बात है, उन्होंने इसमें समाज के निर्धन एवं निराश्रित वर्ग के लिए वादों का अंबार लगा दिया। ममता ने कहा कि चुनाव जीतने के बाद दुआरे योजना के तहत लोगों के घर तक राशन पहुंचाया जाएगा और मई से विधवा पेंशन के तौर पर एक हजार रुपये दिया जाएगा। निम्न आय वर्ग के लोगों को सालाना छह हजार रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा गरीब अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को सालाना 12 हजार रुपये दिए जाएंगे। पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य साथी बीमा जारी होगा वगैरह वगैरह।
लेकिन क्या ममता से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिये कि विधवा पेंशन, स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाएं तो सभी प्रदेशों में वर्षों से चली आ रही हैं। यदि ममता अब इन योजनाओं का लाभ देने का वादा कर रही हैं तो वे अब तक क्या कर रही थीं? चुनाव के समय पर ही उन्हें विधवाओं, छात्रों की क्यों याद आई। क्या राज्य के छात्र, पेंशनर्स, महिलाएं, नौकरीपेशा पुरुष ये सब लोग टीएमसी के लिए महज वोट बैंक हैं?
ममता से पूछा जाना चाहिये कि राज्य में कानून सुरक्षा व्यवस्था की नाम की कोई चीज नहीं है। खूनखराबा आम बात हो गई है। ऐसे में उनका पहला काम आम जनता को सुरक्षा प्रदान करना होना चाहिये या ख्याली पुलाव परोसना?
उनसे यह भी पूछा जा सकता है कि जिन 5 लाख नौकरियों का वादा वे कर रही हैं, वे नौकरियां वे किसे देंगी। राज्य की मूल निवासी जनता को या पिछले दरवाजे से घुसे चले आ रहे घुसपैठियों को। असल में ममता को अहसास हो गया है कि उनकी जमीन अब खिसक चुकी है। बस इस पर जनता की मुहर लगना शेष है। उनके हाथ से अब सत्ता जाने वाली है।
ऐसे में आखिरकार बेमन से ही सही, अब वे वोटबैंक और तुष्टिकरण की राजनीति पर उतर आईं हैं। इसे आखिरी हथकंडा समझकर अपना रही हैं। बहरहाल, भाजपा और टीएमसी दोनों ने अपने मैनिफेस्टो जाहिर कर दिए हैं। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है। जनता किसकी बातों पर भरोसा करती है और सत्ता की चाबी सौंपती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)