गोयबल्स थ्योरी कहती है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच लगने लगता है। इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ने ऐसे अनेक झूठ हजार बार बोले हैं। उन्हीं में से एक बड़ा झूठ यह भी कि राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग, खासकर संघ और भाजपा वाले, पढ़ते-लिखते नहीं है। यह कोरा झूठ कम से कम हजार बार, सैकड़ों तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा बोला गया होगा। 21 दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक ब्लॉग लिखा है, जिसका शीर्षक है ‘पार्टी का ग्रंथालय-राजनीति की संस्कार शाळा’। इस ब्लॉग में अमित शाह द्वारा लिखा गया तीसरा पैराग्राफ बेहद गौर करने योग्य है। उन्होंने लिखा है, ‘मुझे बताना चाहिए कि स्वाधीनता के पूर्व और उसके पश्चात भी राजनीति में ’विचारक’ राजनेताओं की एक स्वस्थ, समृद्ध परंपरा रहती आयी है। गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गाँधी, वीर सावरकर, राम मनोहर लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कितने सारे राजनेता लेखक, चिंतक, कवि या विचारक भी रहे हैं। यही कारण था कि भारतीय राजनीति में जनतंत्र के प्रति आस्था बनी रही। इसी धारा को आज के वर्तमान युग में हमें हर प्रदेश में बरकरार रखना है तो लिखने-पढ़ने-अध्ययन करने वाले लोग राजनीति में आने चाहिए और राजनीति करने वालों को लिखने-पढ़ने का अभ्यास निरंतर रखना चाहिए।“ बाद की पंक्तियों में उन्होंने लिखा है, “ग्रंथालय का मूल स्वरूप ’वाचनालय’ का है। यहां आकर जो पढ़ेगा, वहीं बढ़ेगा। हमें हर महीने एक या दो किताबें पढ़नी चाहिए। उस पर अपना अभिप्राय लिखना चाहिए। किताबों पर आपस में चर्चा होनी चाहिए। कार्यकर्ता अपने संग्रह की किताबें, ऐसे ग्रंथालयों को भेंट करे तो और भी अच्छा। इन्हीं प्रयासों से पार्टी में वाचन की संस्कृति बढ़ेगी। देश की राजनीतिक संस्कृति बदलने की गंगोत्री ऐसे ग्रंथालयों में है, इस तथ्य को हम न भूले।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार एवं अमित शाह के नेतृत्व में चल रहे संगठन के लिए आज अगर व्यापक स्तर पर पुस्तकालय, ई-पुस्तकालय के बारे में इतनी गंभीरता से विचार किया गया है, तो यह अध्ययन के प्रति भाजपा नेतृत्व की गंभीरता को प्रदर्शित करता है। हालांकि इसे भाजपा और संघ के प्रति नकारात्मक प्रचार करने वाले चंद तथाकथित बुद्धिजीवियों को जवाब मानना और बड़ी गलती होगी। न तो यह किसी को दिया गया जवाब है और न ही भाजपा द्वारा कुछ साबित करने की कोशिश ही प्रतीत होती है। यह उसी परंपरा का निर्वहन है जो जनसंघ की स्थापना के समय रखी गयी थी।
दरअसल हाल में ही भाजपा द्वारा अपने रायपुर (छत्तीसगढ़) स्थित कार्यालय में नानाजी देशमुख वाचनालय का उद्घाटन किया गया है। उसी के बाबत यह ब्लॉग लिखा गया है। यह पुस्तकालय ई-लाइब्रेरी के रूप में भी उपलब्ध कराया गया है। इसमें कोई शक नहीं कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा इतने बड़े स्तर पर स्थापित की गयी यह पहली लाइब्रेरी होगी। इस ब्लॉग का जिक्र इसलिए मौजूं है, क्योंकि वर्तमान भाजपा अध्यक्ष द्वारा कार्यकर्ताओं को दिया गया सन्देश इस बात का द्योतक है कि भाजपा में पढने-लिखने और दुनिया की राजनीति, इतिहास एवं अनेक विचारधाराओं को समझने की परंपरागत सोच रही है। जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अध्ययन और उनकी शैक्षणिक योग्यता के साथ विचारशीलता के प्रति कोई अज्ञान व्यक्ति ही संदेह पैदा करेगा। जनसंघ के बाद के अध्यक्ष पंडित दीन दयाल उपाध्याय का राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक चिन्तन आज स्वयं में ‘एकात्म मानववाद’ की विचारधारा के रूप में प्रतिष्ठित एवं प्रासंगिक है। जनसंघ के जमाने से आज भाजपा के जमाने तक अगर विचारकों की बात करें तो एक लंबी फेहरिश्त नजर आती है। विचारकों ने न सिर्फ विविध विचारधाराओं का अध्ययन किया बल्कि उसको व्यवहारिक स्वरुप देते हुए प्रमाणित भी किया है। आज जब देश में पहली बार भाजपा किसी भी पूर्ण बहुमत की गैर-कांग्रेसी सरकार के रूप में सत्ता में आई है, तो इसने अध्ययन एवं पठन-पाठन को बड़े स्तर पर तरजीह देते हुए अपने परंपरागत संस्कार को मजबूत आधार देने का काम किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार एवं अमित शाह के नेतृत्व में चल रहे संगठन के लिए आज अगर व्यापक स्तर पर पुस्तकालय, ई-पुस्तकालय के बारे में इतनी गंभीरता से विचार किया गया है तो यह अध्ययन के प्रति भाजपा नेतृत्व की गंभीरता को प्रदर्शित करता है। हालांकि इसे भाजपा और संघ के प्रति नकारात्मक प्रचार करने वाले चंद तथाकथित बुद्धिजीवियों को जवाब मानना और बड़ी गलती होगी। न तो यह किसी को दिया गया जवाब है और न ही भाजपा द्वारा कुछ साबित करने की कोशिश ही प्रतीत होती है। यह उसी परंपरा का निर्वहन है जो जनसंघ की स्थापना के समय रखी गयी थी। प्रतिकूल परिस्थितियों में अच्छे कार्य भी योजना के अनुरूप सुचारू ढंग से नहीं चल पाते लेकिन जब स्थितियां अनुकूल होती हैं तो उन्हीं कार्यों को सुचारू ढंग से किया जाता है। इसके लिए सिर्फ नीयत और दृष्टि की जरुरत होती है। नीयत और दृष्टि ही वह मूल है जिसकी बदौलत आज भाजपा नेतृत्व द्वारा इस कार्य को अहमियत देकर किया जा रहा है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा अगर एक पुस्तकालय के सार्थक औचित्य पर ब्लॉग लिखा गया है, तो इसे भारतीय राजनीती में अध्ययन, पठन-पाठन के महत्व को बरकरार रखने की एक बड़ी कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने ब्लॉग के अंत में बेहद महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने लिखा है, “देश की राजनीतिक संस्कृति बदलने की गंगोत्री ऐसे ग्रंथालयों में है, इस तथ्य को हम न भूले।“ इस अंतिम बात में वर्तमान भारतीय राजनीति के लिए सीख भी है, सबक भी है और एक अनिवार्य जरुरत के प्रति दिया गया एक इशारा भी है।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम में संपादक हैं।)