वामपंथ अपने ही गढ़ में हाँफता हुआ तब दिखा, जब उसके मेयर के उम्मीदवार को बीजेपी के एक साधारण से कार्यकर्त्ता ने पराजित कर दिया। बल्कि बीजेपी के जीते हुए उम्मीदवारों में से एक सब्जी बेचने वाली अति साधारण महिला है। यह दर्शाता है कि जहाँ और पार्टियाँ वंशवादी विषबेल को सींचने और खाद-पानी डालने में विश्वास रखती हैं, वही बीजेपी आज भी कार्यकर्त्ताओं की पार्टी है। यह जीत दक्षिण की राजनीति के भविष्य का संकेत है।
छोटी-से-छोटी जीत भी तब ऐतिहासिक महत्त्व रखती है, जब वह प्रतिद्वंद्वी के किले में घुसकर फ़तेह की जाती है। शिवाजी के लिए जैसे सिंहगढ़ के किले की जीत थी, वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं हिंदुओं के लिए पलक्कड़ नगरपालिका की जीत है।
जैसे अपना बलिदान देकर भी तानाजी मालसुरे जैसे योद्धा ने सिंहगढ़ के किले पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की, वैसे ही संघ-भाजपा के तमाम समर्पित कार्यकर्त्ताओं ने अपनी शहादत देकर केरल की धरती पर कमल खिलाया है।
हमें याद रखना होगा कि यह वही क्षेत्र है, जहाँ भगवान अयप्पा का प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर स्थित है। वामपंथी गुंडों और सूडो सेकुलर गिरोहों ने हिंदू आस्था एवं श्रद्धा के सर्वोच्च केंद्रों में से एक भगवान अयप्पा के मंदिर सबरीमाला को अपवित्र एवं अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
वे बार-बार आस्था एवं श्रद्धा के केंद्रों पर हमला कर हिन्दू-मन को आहत करते रहते हैं। यह उनके कुकृत्यों के विरुद्ध पलक्कड़ की स्थानीय जनता का प्रतिकार है। वैसे शर्म तो सेकुलरिस्टों-वामपंथियों-जिहादियों को आती नहीं, पर यदि उनमें नाम मात्र की भी नैतिकता और शर्म बची हो तो उन्हें सार्वजनिक रूप से सबरीमाला में आस्था रखने वाले सभी हिंदुओं से माफ़ी माँगनी चाहिए।
निकाय चुनाव में बीजेपी का पलक्कड़ नगरपालिका की 31 में से 18 सीटों पर जीतना कोई साधारण बात नहीं है। यह एक सीट राज्य जीतने के बराबर है। वहाँ की डेमोग्रेफी, जिहादी-मसीही-सूडो सेकुलरिस्ट ताक़तों की उपस्थिति और वामपंथी शासन-व्यवस्था में सरकारी मशीनरियों के भयानक दुरुपयोग को देखते हुए इसकी महत्ता और बढ़ जाती है।
बीजेपी को हराने के लिए अनेक स्थानों पर एलडीएफ और यूडीएफ ने गुप्त समझौता कर रखा था। यदि ऐसा न होता तो तिरुवनंतपुरम नगरपालिका भी बीजेपी जीतती।
वामपंथ अपने ही गढ़ में हाँफता हुआ तब दिखा, जब उसके मेयर के उम्मीदवार को बीजेपी के एक साधारण से कार्यकर्त्ता ने पराजित कर दिया। बल्कि बीजेपी के जीते हुए उम्मीदवारों में से एक सब्जी बेचने वाली अति साधारण महिला है।
यह दर्शाता है कि जहाँ और पार्टियाँ वंशवादी विषबेल को सींचने और खाद-पानी डालने में विश्वास रखती हैं, वही बीजेपी आज भी कार्यकर्त्ताओं की पार्टी है। यह जीत दक्षिण की राजनीति के भविष्य के संकेत हैं।
ग़ौरतलब है कि नकली और झूठे प्राइम टाइम आंदोलनों को खड़ा कर विपक्षी पार्टियाँ जितना बीजेपी को बदनाम करने की साज़िशें रचती हैं, उतना ही जनता थोक में चुनाव-दर-चुनाव बीजेपी को जिताती जा रही है।
पहले विद्यार्थियों, फिर दलित भाइयों और अब किसानों को आगे कर हौआ खड़ा करने वालों को न जाने कब अक्ल आएगी कि चुनाव नीति और नीयत से जीते जाते हैं, समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं के बल पर जीते जाते हैं, नकली क्रांतिवीरों की ओट से नहीं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)