8 नवम्बर को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा देश में पाँच सौ और एक हजार के नोटों को प्रतिबंधित कर दिया गया और फिर इनकी जगह पाँच सौ और दो हजार के नये नोटों की शुरुआत की गई। चूंकि, पाँच सौ और हजार के पुराने नोट देश की कुल नकदी का ८६ प्रतिशत थे, इसलिए इनका प्रतिबंधित होना देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम जनों की घरेलू आर्थिकी तक को सीधे-सीधे प्रभावित करने वाला था। बैंकों के आगे पुराने नोटों की बदली करने से लेकर उन्हें जमा करने तक के लिए लोगों की कतारें लगने लगीं और कमोबेश अब भी लगी ही हैं। स्वाभाविक रूप से इस विमुद्रीकरण की प्रक्रिया में लोगों को परेशानी हुई है। मगर, बावजूद इसके जमीनी पड़ताल से लेकर विविध सर्वेक्षणों के आंकड़ों तक इस विमुद्रीकरण पर बहुमत में जनता का यही मिज़ाज सामने आ रहा कि यह निर्णय सही है और इसमें वो सरकार के साथ है।
नकदी रहित अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ना ही समय की मांग है। अच्छी बात ये है कि मौजूदा सरकार इस दिशा में गंभीर दिख रही है और उससे भी अच्छा ये है कि देश के बहुसंख्य आम जनमानस में मौजूदा सरकार, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, की इन नवाचारी परिकल्पनाओं और निर्णयों के प्रति विश्वास दृष्टिगत हो रहा है। लोक का तंत्र के प्रति ये विश्वास व सहयोग बना रहे और तंत्र देश के अर्थतंत्र को नकदी के मकड़जाल से मुक्त करने के लिए यूँ ही अगर प्रयास रहे तो आश्चर्य नहीं कि अगले कुछ वर्षों में ही ये देश नकदी रहित अर्थव्यवस्था का निर्माण कर लेगा।
यह सही है कि विमुद्रीकरण एक आर्थिक प्रक्रिया है और जब किसी भी अर्थव्यवस्था में काले धन और नकली नोटों का प्रवाह अधिक हो जाता है, तब सरकारें इसे अपनाती हैं। लेकिन, यह भी एक सच्चाई है कि ये विमुद्रीकरण अपने आप में थोड़ा अलग और ऐतिहासिक है। कारण कि इसे अत्यंत गोपनीय ढंग से घोषित किया गया तथा इसके बाद ज़रा भी समय नहीं दिया गया कि काला धन रखने वाले अपनी संपत्ति को ठिकाने लगा सकें। इस गोपनीयता और आकस्मिकता के कारण लोगों को थोड़ी समस्याएँ भी हुईं, मगर यही इस निर्णय का मास्टर पंच भी है।
देश में नकदी के रूप में मौजूद काले धन का खात्मा तो इस विमुद्रीकरण का एक पहलू है, लेकिन इसके साथ ही इसे भारतीय अर्थव्यवस्था को नकदी रहित अर्थव्यवस्था का रूप देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है। हाल ही में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा है कि भारत में महाशक्ति बनने की ताकत है और यह ताकत देश के करोड़ों युवाओं के भरोसे है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह दिन दूर नहीं, जब भारतीय अर्थव्यवस्था नकदी रहित और पेपरलेस हो जाएगी। नकदी रहित अर्थव्यवस्था की यह उम्मीद ठीक भी है, क्योंकि इस विमुद्रीकरण के बाद नकदी के अभाव में लोगों ने ज्यादातर ऑनलाइन खरीद-फरोख्त का रुख किया है। एक आंकड़े के मुताबिक़ इस निर्णय के बाद देश के ऑनलाइन भुगतान में तीन सौ प्रतिशत तक इजाफा हुआ है। साथ ही, पेटीएम, मोबिक्विक और फ्रीचार्ज जैसी ऑनलाइन पेमेंट कंपनियों के उपयोग में भी भारी वृद्धि बताई जा रही है। सरकार ने भी इस सम्बन्ध में सरकारी-नागरिक लेन-देन के लिए अपना एक पैनल स्थापित कर दिया है, जो इस सम्बन्ध में सरकार की गंभीरता का ही एक और उदाहरण है। इन सब से मोटे तौर यह आंकलन निकलता है कि नोटबंदी के बाद देश का वो वर्ग जो इन्टरनेट पर सक्रिय है, ने नकदी के अभाव में ऑनलाइन भुगतान की तरफ ध्यान दिया है। इसी संकेत के मद्देनज़र यह अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि विमुद्रीकरण के इस निर्णय के बाद देश नकदी रहित अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है।
उल्लेखनीय होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग चौदह प्रतिशत हिस्सा अभी नकदी के रूप में है। आर्थिक विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि एक अच्छी और मजबूत अर्थव्यवस्था में नकदी की मात्रा पांच प्रतिशत के नीचे होनी चाहिए, इस लिहाज से भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी की मात्रा बहुत अधिक प्रतीत होती है। यह अमेरिका और ब्रिटेन जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद नकदी की मात्रा से अधिक है तो वहीँ, जापान जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था से कम भी है। अब वित्तमंत्री अरुण जेटली की मानें तो इस नोटबंदी का एक लक्ष्य देश की अर्थव्यवस्था में से नकदी की मात्रा को कम करना भी है। नकदी रहित अर्थव्यवस्था के अनेक लाभ हैं। नकदी रहित अर्थव्यवस्था में कर चोरी पर लगाम लगेगी, जिससे काले धन का संग्रह रुकेगा, जाली नोटों पर भी लगाम लगेगी और इन सबके परिणामस्वरूप देश में समानान्तर अर्थव्यवस्था की संभावनाएँ क्षीण होंगी। इसके अलावा जब लोग अपना अधिकांश पैसा बैंकों में रखेंगे तो बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी और वे विकास की दिशा में निवेश को प्रोत्साहित कर सकेंगे। भारतीय रूपये की दशा में सुधार आने की भी संभावना बनेगी। इस तरह स्पष्ट है कि नकदी रहित अर्थव्यवस्था के अनेक लाभ होंगे, यही कारण है कि सरकार इस दिशा में आशावान और प्रयासरत दिख रही है।
भारत में नकदी रहित अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम अभी तकनिकी रूप से उस स्तर तक नहीं पहुंचे हैं कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश को नकदी के बिना संचालित कर सकें। इंटरनेट की पहुँच अभी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ठीक प्रकार से नहीं हो सकी है। एक आंकड़े के अनुसार, अभी देश भर में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या कुल आबादी की चालीस प्रतिशत ही है, इसमें भी निरंतर रूप से ऑनलाइन भुगतान को लेकर सजग लोगों की मात्रा काफी कम है। ये वो समस्याएँ हैं, नकदी रहित अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ने के लिए जिनका निर्मूलन आवश्यक है।
देश में नकदी रहित अर्थव्यवस्था के उपर्युक्त पक्षों को देखने के बाद सवाल उठता है कि ये व्यवस्था भारत की दृष्टि से कितनी उपयुक्त है ? दरअसल इस व्यवस्था के सम्बन्ध में जितनी भी समस्याओं और संकटों का उल्लेख ऊपर किया गया है, उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है, जिससे एक क्रमिक प्रयास के जरिये पार न पाया जा सके। उपर्युक्त अधिकांश समस्याओं से मुक्ति के लिए सिर्फ दो ही चीजों की जरूरत है – देश को सम्बंधित क्षेत्र की तकनिकी क्षमताओं से युक्त बनाना और लोगों में नकदी रहित अर्थव्यवस्था के प्रति जागरूकता का विकास करना। वैसे भी, भारत जैसे बड़े देश के लिहाज से नकदी रहित अर्थव्यवस्था अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यहाँ जितनी अधिक नकदी होंगी, वो समस्याएँ भी उतनी ही अधिक और जटिल पैदा करेगी। इसलिए नकदी रहित अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ना ही समय की मांग है। अच्छी बात ये है कि मौजूदा सरकार इस दिशा में गंभीर दिख रही है और उससे भी अच्छा ये है कि देश के बहुसंख्य आम जनमानस में मौजूदा सरकार, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, की इन नवाचारी परिकल्पनाओं और निर्णयों के प्रति विश्वास दृष्टिगत हो रहा है। लोक का तंत्र के प्रति ये विश्वास व सहयोग बना रहे और तंत्र देश के अर्थतंत्र को नकदी के मकड़जाल से मुक्त करने के लिए यूँ ही अगर प्रयासरत रहे तो आश्चर्य नहीं कि अगले कुछ वर्षों में ही ये देश नकदी रहित अर्थव्यवस्था का निर्माण कर लेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)