यूएपीए : नकाब में छिपे आतंकियों और नक्सलियों को बेनकाब करने वाला क़ानून
आतंकी हों या नक्सली, इन्हें नैतिक समर्थन उन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों से भी मिलता रहता है, जो शहर के ऐशो-आराम में रहकर देश की आत्मा पर आघात करते रहते हैं। वैसे तो ऐसे ज़्यादातर लोगों की खुद-ब-खुद पहचान हो चुकी है कि ये एक ख़ास वैचारिक गुट के सिपाहसालार हैं,
अनुच्छेद-370 हटाने का विरोध बताता है कि कांग्रेस ने पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है!
कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल सुधारते हुए मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने का ऐलान किया जिसके साथ जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा भी खत्म हो गया। इसे मोदी सरकार की कुशल रणनीति ही कहेंगे कि मोदी विरोधी पार्टियां भी सरकार के फैसले का साथ दे रही हैं। इनमें आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, एआईडीएमके और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख हैं।
ममता के राज में हिंसा और अराजकता के बीच पिसता बंगाल
पश्चिम बंगाल इन दिनों लगातार खबरों में बना हुआ है, लेकिन ये सुर्खियां नकारात्मक और अप्रिय कारणों के चलते हैं। लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले ही यहां अराजकता का माहौल बनना शुरू हो गया था जो चुनाव के बाद और गहरा गया है। पश्चिम बंगाल से लगातार हिंसा और अस्थिरता की खबरें आ रही हैं।
‘एजेंडा पहले ही नहीं था, अब संख्याबल भी नहीं रहा, फिर भी कुमारस्वामी से कुर्सी नहीं छूट रही’
कर्नाटक का सियासी घमासान राज्य के संचालन को कितना नुकसान पहुंचा रहा होगा, इस दिशा में कोई सोचने को तैयार नहीं है। हाथी निकल गया लेकिन पूंछ अटक गई है। पूरी कैबिनेट जा चुकी लेकिन कुमार स्वामी अभी भी बालहठ की तरह अपना पद पकड़े हुए हैं, मानो उनके सत्ता में बने रहने से रातोरात कोई चमत्कार हो जाएगा।
कर्नाटक का नाटक : बिना एजेंडे के चल रही कांग्रेस-जेडीएस सरकार की हालत अब गई, तब गई
असल संघर्ष तो कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया और कुमारस्वामी के बीच कुर्सी को लेकर है और इसका ठीकरा बीजेपी के माथे पर फोड़ने की कोशिश की जा रही है। केंद्र में कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में स्पष्ट कर दिया था कि कर्नाटक का संकट गठबंधन दलों के आपसी स्वार्थ का नतीजा है
संसद में अमित शाह के भाषण ने कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस को कायदे से आईना दिखाया है!
लंबे समय तक बीजेपी के अध्यक्ष रहे अमित शाह अब सत्तारूढ़ दल में केंद्रीय मंत्री हैं। उन्हें गृह मंत्रालय का जिम्मा मिला है और पहली बार वे इस नाते संसद में मौजूद हैं। चुनावी और दलगत मसलों पर देश भर में सार्वजनिक मंचों पर तो उन्हें जनता देखती-सुनती आई लेकिन संसद के बजट सत्र में एक मंत्री के तौर पर उनका जो रूप देखने को मिल रहा है,
पराजय से सबक लेना कब शुरू करेंगे, राहुल गांधी?
गुरुवार को संसद का संयुक्त सत्र था। इसमें महत्वपूर्ण बात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अभिभाषण था। इसमें उन्हें संसद के दोनों लोकसभा एवं राज्यसभा के सत्रों को संबोधित करते हुए पिछली सरकार के कार्यों का उल्लेख करना था। सब कुछ तय कार्यक्रम के अनुसार चल रहा था। राष्ट्रपति अपना अभिभाषण शुरू कर चुके थे कि तभी कुछ अप्रत्याशित सा हुआ।
छत्तीसगढ़ : कांग्रेस राज में जनता का अपनी समस्याओं पर बात करना राजद्रोह कैसे हो गया?
बिजली कटौती पर सोशल मीडिया पर विरोध प्रकट करना क्या है, यह अभिव्यक्ति ही तो है। आखिर पुलिस ने किस अधिकार से लोगों को गिरफ्तार कर लिया। यदि ऐसे ही गिरफ्तारी होने लगी तो कल से सारे कारागार, सारी जेलें कम पड़ जाएंगी क्योंकि सोशल मीडिया पर तो दिन-रात पक्ष-विपक्ष की बहसें खुलेआम चलती ही रहती हैं।
बंगाल को हिंसा की आग में धकेल ममता किस मुंह से लोकतंत्र की बात करती हैं?
क्या पश्चिम बंगाल की स्थिति आज से 20 साल पहले कश्मीर वाली हो गई है? राज्य में एक पूर्ण बहुमत की सरकार होते हुए भी बंगाल के मौजूदा हालात बद से बदतर हो रहे हैं, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी वहां की राज्य सरकार पर जाती है। ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री होते हुए राज्य में अत्याचार और अनाचार बहुत बढ़ गए हैं
‘हिंसा की राजनीति से ममता ने जो किला बनाया था, अब उसमे लोकतंत्र की सेंधमारी हो गयी है’
इन दिनों पश्चिम बंगाल देश की राजनीति में सुर्खियों का केंद्र बना हुआ है। इसके मूल में हैं यहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और लोकसभा में जमीन खिसकने के बाद बढ़ चुकी उनकी बौखलाहट। उन्होंने जिस नफरत और हिंसा की राजनीति से बंगाल का अपना किला बनाया था, अब उसमें लोकतंत्र की सेंधमारी हो गई है। वह किला अब दरक रहा है और इससे ममता का गुस्सा दिनोदिन भड़कने लगा है। असल में, लोकसभा चुनाव से पहले ही ममता को आभास हो गया था कि अब यहां की जनता बदलाव