काउंटर फैक्ट

केरल की वामपंथी हिंसा पर कब टूटेगी ‘असहिष्णुता गिरोह’ की खामोशी ?

केरल में आए दिन हो रही राजनीतिक हत्याओं से एक सवाल उठना लाजिमी है कि भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में क्या असहमति की आवाजें खामोश कर दी जाएगी? एक तरफ वामपंथी बौद्धिक गिरोह देश में असहिष्णुता की बहस चलाकर मोदी सरकार को घेरने का असफल प्रयास कर रहा है। वहीं दूसरी ओर उनके समान विचारधर्मी दल की केरल की राज्य सरकार के संरक्षण में असहमति की आवाज उठाने वालों को मौत के

सेना ने अब जो ‘रणनीति’ अपनाई है, वो घाटी में आतंक की कमर तोड़ देगी !

कश्‍मीर में आतंकियों के खिलाफ सेना का अभियान जोरशोर से चल रहा है। इसी क्रम में सेना को बीते सप्‍ताह बड़ी सफलता मिली। पुलवामा में सुरक्षाबलों ने लश्‍कर के कमांडर आतंकी अबु दुजाना सहित दो अन्‍य आतंकियों को मार गिराया। हिजबुल कमांडर बुरहान वानी, लश्कर कमांडर जुनैट मट्टू और सब्‍जार भट जैसे बड़े आतंकियों के मारे जाने के बाद अब दुजाना के खात्‍मे को बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। जुनैद

सेना और जांच एजेंसियों के जरिये कश्मीर में आतंकवाद पर सरकार ने बोला दोतरफा हमला !

यूँ तो एक लम्बे समय से केंद्र सरकार ने सेना को कश्मीरी आतंकियों से निपटने के लिए खुली छूट दे रखी है, मगर अब जिस स्तर पर सेना कार्रवाई कर रही उसके अलग ही संकेत हैं। कश्मीर में हिंसा फैलाने वाले आतंकियों के साथ-साथ उनको शह देने वाले अलगाववादियों पर भी सरकार एकदम सख्त रुख अपनाए हुए है। स्पष्ट है कि सरकार अब कश्मीर के सभी अराजक तत्वों से एकदम सख्ती से निपटने का मन बना

केरल में संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर कब टूटेगी मानवाधिकारवादियों की खामोशी ?

केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा के कार्यकताओं के कत्लेआम का सिलसिला बदस्तूर जारी है। लोकतंत्र में मतभेद संवाद से दूर होते हैं, हिंसा के सहारे विरोधियों का खात्मा नहीं किया जाता। राजनीतिक हिंसा तो अस्वीकार्य है ही। पर, केरल में लेफ्ट फ्रंट सरकार को यह समझ नहीं आता। केरल में भाजपा और संघ के जुझारू और प्रतिबद्धता के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं की नियमित रूप से होने वाली नृशंस

गुजरात में पहले से ही बदहाल कांग्रेस अब ‘सूपड़ा साफ’ होने की ओर बढ़ रही है !

राहुल गाँधी ने कहा कि उन्हें बिहार में घटित हुए सियासी घटनाक्रम के बारे में पहले से अंदेशा था, तो सवाल उठा कि उन्होंने इसे रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं किया ? दूसरा सवाल अब ये उठ रहा कि क्या राहुल गाँधी को गुजरात में घटित हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में भी पहले से पता था और अगर हाँ, तो उन्होंने इसको रोकने के लिए भी क्यों कुछ नहीं किया? ये तो राहुल गांधी हैं जो धीरे-धीरे भारतीय राजनीति के मज़ाक

जो मज़हब किसीके डांस करने या चेस खेलने से खतरे में पड़ जाता हो, उसे खत्म ही हो जाना चाहिए !

इस्लाम शायद ऐसा एकमात्र मज़हब है, जो आए दिन और बात-बेबात ख़तरे में पड़ता रहता है। किसी भी मुसलमान के गाना गाने, नाचने से लेकर बनाव-श्रृंगार करने तक से इस्लाम पर खतरा आ जाता है। फिर इसके स्वघोषित झंडाबरदारों द्वारा धमकी भरे फतवों का दौर शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं, अगर इन्हें राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ गाने को कह दो तो उससे भी अक्सर इनके इस्लाम पर संकट आ जाता है। राष्ट्रगान के कई शब्दों

वे कौन लोग हैं, जो पाकिस्तानी लोकतंत्र की तथाकथित महानता पर लहालोट हो रहे !

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पनामा पेपर्स मामले में वहाँ की अदालत द्वारा संसद सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराए जाने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा क्या दिया कि इधर भारत में सोशल मीडिया पर वे ट्रेंड करने लगे। सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया तक पाकिस्तान और नवाज शरीफ की चर्चा चल पड़ी। इनमें ‘कुछ लोग’ (इनमें ज्यादातर वही अंधविरोधी थे जिन्हें मोदी सरकार के

अलगाववादियों पर सरकार की सख्ती से कश्मीर में टूटेगी आतंक की कमर

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इन दिनों अलगाववादी नेताओं की धरपकड़ की कार्रवाई में लगी है। यह कार्रवाई कश्‍मीर में आतंकवाद को लेकर की जा रही फंडिंग की जांच के तहत की गई है। कुछ महीनों पहले एक चैनल के स्टिंग में अलगाववादी नेता नईम ने कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए अलगाववादियों को पाकिस्तान से फंडिंग होने की बात कही थी, जिसके बाद एनआईए इस मामले की जांच में लग गयी थी। अब इसी मामले

भारत से युद्ध छेड़ना चीन के लिए खुद अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा !

चीन का जब सीमा विवाद पर आक्रमक रुख शुरू हुआ तो एक उम्मीद थी कि दलाई लामा से लेकर भारत में रहने वाले बड़ी संख्या में तिब्बती उसके (चीन) के खिलाफ सामने आएँगे। लेकिन सब चुप हैं। न दलाई लामा बोल रहे हैं, न ही बात-बात पर चीन एंबेसी के बाहर प्रदर्शन करने वाले तिब्बती खुलकर भारत के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। भारत ने दलाई लामा को उनके हजारों अनुयायियों के साथ शरण देकर एक तरह से चीन से

नाखून कटाकर शहीद बनने का नाटक कर रही हैं मायावती

“यदि मैं सदन में दलितों की बात नहीं उठा सकती तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं।” यह कहते हुए मायावती ने राज्‍य सभा की सदस्‍यता से इस्‍तीफा दे दिया। उपर से देखने पर मायावती के इस्‍तीफे में बलिदान की भावना नजर आती है, लेकिन यदि इसका विश्‍लेषण किया जाए तो यह सियासी वजूद मिट जाने के भय से उठाया गया कदम नजर आएगा।