काउंटर फैक्ट

भारतीय सेना पर लांछन लगा पाकिस्तान की लाइन को आगे बढ़ाते रहे हैं वामपंथी !

भारतीय सेना सदैव से कम्युनिस्टों के निशाने पर रही है। सेना का अपमान करना और उसकी छवि खराब करना, इनका एक प्रमुख एजेंडा है। यह पहली बार नहीं है, जब एक कम्युनिस्ट लेखक ने भारतीय सेना के विरुद्ध लेख लिखा हो। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट लेखक पार्थ चटर्जी ने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की तुलना हत्यारे अंग्रेज जनरल डायर से करके सिर्फ सेना का ही अपमान नहीं किया है, बल्कि अपनी संकीर्ण

ये तथ्य बताते हैं कि एनडीटीवी कौन-सी ‘निष्पक्ष’ पत्रकारिता करता है!

एनडीटीवी के सर्वेसर्वा प्रणव रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय पर एक पुराने मामले में सीबीआई की छापेमारी को जिस तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट के रूप में कुप्रचारित किया जा रहा है, वो अपने आप में बेहद विचित्र है। ऐसा करने में सबसे आगे खुद ये चैनल और इसके स्वनामधन्य एंकर रवीश कुमार हैं।

कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोल रही है कांग्रेस !

कश्मीर को स्थायी रूप से राख में डालने का काम इसी कांग्रेस के बड़े नेता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने किया था। उसे देश भुगत रहा है। तब पाकिस्तान ने बल प्रयोग से कश्मीर को हथियाने की कोशिश की। लेकिन, कश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचन्द्र महाजन के बार-बार सहायता के अनुरोध पर भी नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार उदासीन रही।

ईवीएम पर आरोप लगाने वालों की ईवीएम हैकिंग की चुनौती में खुली पोल !

2017 की शुरुआत में हुए पांच राज्यों के चुनावों में जब भाजपा चार राज्यों में अपनी सत्ता स्थापित करने में कामयाब रही, तबसे ही सारे विरोधी एकजुट होकर ईवीएम हैक करने की बात कहकर भाजपा पर आरोप मढ़ने लगे। यूपी चुनाव में जनता द्वारा खारिज की जा चुकीं मायावती ने ईवीएम हैकिंग का किस्सा शुरू किया, जिसे पंजाब की हार से बौखलाए केजरीवाल ने लपकने में जरा भी देर नहीं लगायी। फिर तो केजरीवाल

अब तो सुधर जाएं केजरीवाल, वर्ना मतदाता तो क्या इतिहास भी उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा !

आम आदमी पार्टी में इन दिनों सब कुछ अच्‍छा नहीं चल रहा है। बाहरी और आंतरिक दोनों मोर्चों पर पार्टी विषम हालातों से जूझ रही है। बाहरी मोर्चं पर जहां एक के बाद एक आए चुनाव परिणामों ने पार्टी के जनाधार को डगमगा दिया, वहीं भीतरी तौर पर भी उपजे विरोधों का सामना करना पड़ रहा है। अधिक समय नहीं बीता था कि कुमार विश्‍वास ने एक वीडियो जारी करके और विभिन्‍न मंचों पर कविताओं, बयानों के ज़रिये

‘जब मुझे पीटा जा रहा था, केजरीवाल हँस रहे थे’

अभी अधिक समय नहीं हुआ जब दिल्ली विधानसभा में भाजपा के दो विधायकों को मार्शलों द्वारा बड़े ही घटिया ढंग से बाहर निकाला गया था, इसके बाद अब एक बार फिर इससे भी बदतर व्यवहार पूर्व आप नेता कपिल मिश्रा के साथ हुआ है। दरअसल आम आदमी पार्टी बहुमत के नशे में इतनी चूर हो गयी है कि उसे लोकतान्त्रिक मर्यादाओं और मूल्यों तक का ध्यान नहीं रहा है।

कन्नूर में यूथ कांग्रेस के लोगों ने जो किया, वैसी हरकतें कांग्रेस की बची-खुची लुटिया भी डुबो देंगी!

केरल के कन्नूर में यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा गाय काटने की घटना निहायत घटिया, शर्मनाक और शैतानी हरकत है। इसे देश में गाय के नाम पर माहौल को बिगाड़ने की साज़िश माना जाना चाहिए। ऐसे लोगों को सख़्त सज़ा मिलनी चाहिए। यह मत भूलिए कि केरल के कन्नूर जिले में लगातार भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं की हत्याएं भी हो रही हैं।

सरकार से छूट मिलने के बाद आतंकियों के लिए कहर साबित हो रही भारतीय सेना

भारतीय सेना देश के दुश्मनों को माकूल जवाब देने की क्षमता से हमेशा युक्त रही है, मगर पिछली संप्रग सरकार ने कभी सेना को पूरी तरह से खुली छूट नहीं दी। लेकिन, मोदी सरकार के आने के बाद से सेना के हाथ देश के दुश्मनों को जवाब देने के लिए खुल गए हैं। इसका उदाहरण हम म्यांमार के सैन्य अभियान से लेकर पाकिस्तान पर हुई दोनों सर्जिकल स्ट्राईकों तथा कश्मीरी आतंकियों के सफाए

सेना के साथ-साथ सरकार को भी जाता है सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय

सीज फायर का उल्‍लंघन तो मानो पाकिस्‍तान का दैनंदिनी कार्य हो गया है। जब संयुक्‍त राष्‍ट्र में झूठे आंसू बहाकर और सरहद पर भारतीय सेना के जवानों को हमेशा की तरह पीठ पीछे आकर कायराना तरीके से मारकर भी पाक की नापाकियत कम नहीं पड़ती तो वह जब तक संघर्ष विराम का उल्‍लंघन करके अपनी मौजूदगी जताने की कोशिश करता है। जब यह सब होता रहा तब समय-समय पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,

ब्रिटेन में बढ़ती आतंकी धमक के लिए ब्रिटेन खुद भी कम जिम्मेदार नहीं है !

यह हमला सिर्फ इसलिए नहीं किया गया है कि ब्रिटेन ने आईएसआईएस से लड़ाई में अमेरिका का साथ दिया, बल्कि इसके पीछे इस्लामिक कट्टरपंथ से अभिप्रेरित आतंकवाद की गहरी साजिश है, जिसे स्वीकारने से पूरी दुनिया के नेता घबराते हैं। दिक्कत यही है कि दुनिया के तमाम देश अब भी इस्लामिक आतंकवाद को खुलकर स्वीकारने की बजाय आतंक का ‘कोई मज़हब नहीं होता’ की