शाह फैजल के किन्तु-परन्तु में भारत और कश्मीर कहां है?
2009 के आईएएस टॉपर शाह फैजल के दर्द भरे लेख को पढ़ लेने वाले देश के अधिकांश लोगों के मन में ये अहसास गहरा सकता है कि दरअसल भारत सरकार ने कश्मीर के साथ संवाद का गलत तरीका अपनाया है। शाह फैजल ने अपने लेख में लगातार बताया है कि गलत तरीके से हो रहे संवाद से कश्मीर लगातार भारत से दूर होता जा रहा है। शाह का लेख दरअसल एक कश्मीरी की भावनाओं को सामने लाता है। लेकिन, ये भावनाओं से ज्यादा उस डर को ज्यादा सामने लाता है, जिसमें कश्मीर के आतंकवाद, अलगाववाद के खिलाफ बोलने से हर कश्मीरी की जिंदगी जाने का खतरा है
कुर्सी से चिपकने की राजनीति में पीएचडी है केजरीवाल की पार्टी: अन्ना हजारे
भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अन्ना हजारे के सहयोगी रहे अरविन्द केजरीवाल के संबध में सवाल पूछने पर अन्ना कहते हैं कि केजरीवाल ने राजनीति में जाकर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया। मैंने पहले ही कहा था कि यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए होगा, राजनीति के लिए नहीं। मैंने राजनीतिक दल बनाने के लिए अरविंद को रोका था।
गुलाम नबी को तो हीलिंग टच चाहिए, पर बाकी देश को क्या चाहिए?
अभिरंजन कुमार कश्मीर में गुलाम नबी आज़ाद हीलिंग टच की बात कर रहे थे। 70 साल से वहां हीलिंग टच ही हो रहा था। अगर किसी की फीलिंग में हीप्रॉब्लम हो, तो कब तक हीलिंग करें? हीलिंग करते-करते तो दो-दो पाकिस्तान बन गए। हमारा आधा कश्मीर फंसा हुआ है। बचे हुए आधे कश्मीर की भी समूची
फ्रांस वाला खतरा भारत पर भी मंडरा रहा है, सचेत होइए!
मैं आतंकवाद के मामले में स्वार्थी हूँ। मैं, नीस में ट्रक से कुचलने से हुयी मौतों पर, फ्रांस के साथ किसी भी शोक और श्रधांजलि में नही खड़ा हूँ। मैं आप सबसे यही कहूँगा की आप भी कोई शोक मत मनाइये, यह काम राजनैतिज्ञों और आदर्श लिबरल का है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? क्या मेरे अंदर का इंसान मर गया है या फिर मैं ही दानव हो गया हूँ?
काश्मीर: विलासितों के लोकतंत्र से बढ़ता आतंकवाद का खतरा
वर्तमान समय काश्मीर के सन्दर्भ में जो बुद्धिजीवी यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि काश्मीर में उत्पात मचा रहे अलगाववादी ताकतों से शांति और सद्भावना से शान्ति एवं सद्भावना की उम्मीद की जानी चाहिए, वह या तो झूठ बोलते है या फिर वह स्वयं किसी यूटोपिया में जी रहे हैं। अलगाववादी पत्थरबाजों से शान्ति की अपील इसलिए भी असंभव लगती है क्योंकि वे पिछले 69 सालो से शेष भारत से अलग और विशेष होने की विलासता में जीवन जी रहे हैं और उनको वैसे ही जीते रखने की कोशिश भी तथाकथित सेक्युलर सरकारों द्वारा की गयी है।
जाकिर नाइक के नाम खुला ख़त: पूछे गये 35 सवाल
इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे और जवाब देंगे।
दिल्ली का निजाम बदला तो आये आतंकवादियों के समर्थकों के बुरे दिन
दुर्दांत आतंकी और हिजबुल का कमांडर बुरहान की मिजाज पुर्सी में 23 24 25 ……30 31 32 की संख्या वाली जो गिनती चल रही है ये सिर्फ गिनती नहीं है, बल्कि यह कश्मीर से गए हुए वो कुछ लोग हैं, जिन्हे आतंकी के समर्थन करने के एवज में भारतीय सेना ने उनके सही ठिकाने पर भेजा है। मेरा ख्याल है की इनकी संख्या अभी और बढ़ेगी और फिर एक खतरनाक सन्नाटे की तरह रुक जाएगी।
वाम-विलासियों के ‘अंतहीन’ विमर्श का अंत जरुरी
हमारे सभ्य समाज में सबसे महत्वपूर्ण अगर कुछ है तो वह ‘विमर्श’ है। बहस-मुबाहिसा, शास्त्रार्थ, वाद-विवाद, मतैक्य-मतभिन्नता, सहमति-असहमति, पक्ष-विपक्ष, पंचायत आदि के बिना किसी नतीजे पर पहुचना केवल तानाशाही में ही संभव है। लोकतंत्र और सभ्य समाज में तो मानवता के लिए यह प्रक्रिया एक वरदान ही है। अभिव्यक्ति की आज़ादी का सबसे सुन्दर रूप है हर पक्ष को सुनना, उन्हें अपनी बात रखने देना, विरोधी विचारों को समादर की दृष्टि से देखना।
जाकिर नाइक के चैनल के नक्शे में ‘काश्मीर’ नहीं है भारत का हिस्सा!
बांग्लादेश में हुए हमले के बाद किसको फायदा और किसको नुकसान हुआ इसका विश्लेषण तो होता ही रहेगा, लेकिन भारत में इसका फायदा यह हुआ कि इस्लाम मज़हब के प्रचारक ज़ाकिर नाइक को ले कर भारतीयों की नींद अब टूटी है और उनके क्रिया-कलापो की विवेचना शुरू हो गयी है।
अब आइने में अपनी शक्ल देखे इस्लाम… डरावनी लगने लगी है!
अभिरंजन कुमार हमारे जम्मू-कश्मीर राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की इस बात के लिए तारीफ़ की जानी चाहिए कि उन्होंने उस सच्चाई को कबूल करने का साहस दिखाया है, जिसे तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले हमारे सुपर-सेक्युलर लोग समझते हुए भी स्वीकार करने को तैयार नहीं होते।जब भी इस्लामिक