नियति से भेंट का दिन ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’
स्वराज्य स्थापना के समय अष्टप्रधान मंडल की रचना, फारसी और अरबी भाषा के शब्दों को हटाकर संस्कृतनिष्ठ एवं मराठी शब्दों के प्रचलन पर जोर देते हुए ‘राज्य व्यवहार कोश’ का निर्माण, कालगणना हेतु श्रीराजाभिषेक शक का प्रारम्भ, संस्कृत राजमुद्रा का उपयोग, प्रशासनिक व्यवस्था, कृषि एवं श्रम सुधार, सामाजिक उत्थान, न्याय व्यवस्था, तकनीक और विज्ञान में
जयंती विशेष : अखंड भारत के पक्षधर वीर सावरकर
वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना किया। नतीजा उनके वकालत करने पर रोक लगा दी गयी।
सैकड़ों मंदिरों का पुनरुद्धार कराने वाली महारानी अहिल्याबाई होलकर
महारानी अहिल्याबाई की पहचान एक विनम्र एवं उदार शासक के रुप में थी। उनके ह्रदय में जरूरमदों, गरीबों और असहाय व्यक्ति के लिए दया
महारानी लक्ष्मीबाई : सोए हुए पौरुष और स्वाभिमान को जागृत-झंकृत करने वाली वीरांगना
जनरल ह्यूरोज का यह कथन महारानी लक्ष्मीबाई के साहस एवं पराक्रम का परिचय देता है, ”अगर भारत की एक फीसदी महिलाएँ इस लड़की की तरह आज़ादी की दीवानी हो गईं तो हम सब को यह देश छोड़कर भागना पड़ेगा।”
आदि गुरु शंकराचार्य : भारतीय सांस्कृतिक एकता के प्रतीक
ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या और जीव ही ब्रह्म है, उससे भिन्न नहीं। वेदांत की इस वाणी को सिद्ध करने वाले महान मनीषी परमपूज्य आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से विश्व विख्यात हैं।
शस्त्र और शास्त्र की समन्वित शक्ति के प्रतीक हैं परशुराम
मनुष्य के लिए आत्मरक्षण और समाज-सुख-संरक्षण के निमित्त शस्त्र का आराधन भी आवश्यक है। शर्त यह है कि उसकी शस्त्र-सिद्धि पर शास्त्र-ज्ञान का दृढ़ अनुशासन हो। भगवान परशुराम इसी शस्त्र-शास्त्र की समन्वित शक्ति के प्रतीक हैं। सहस्रार्जुन के बाहुबल पर उनकी विजय उनकी शस्त्र-सिद्धि को प्रमाणित करती है, तो राज्य भोग के प्रति उनकी निस्पृहता
महाराणा प्रताप : जिनका युद्ध-कौशल ही नहीं, सामाजिक-सांगठनिक कौशल भी अतुलनीय था
जिनका नाम लेते ही नस-नस में बिजलियाँ-सी कौंध जाती हों; धमनियों में उत्साह, शौर्य और पराक्रम का रक्त प्रवाहित होने लगता हो- ऐसे परम प्रतापी महाराणा प्रताप की आज जयंती है। आज का दिवस मूल्यांकन-विश्लेषण का दिवस है।
हनुमान जयंती विशेष : सहजता और सकारात्मकता का संदेश देते हैं बजरंगबली
हनुमान जी रामकथा के संभवतः एकमात्र ऐसे प्रमुख पात्र हैं जिनकी उपस्थिति इस कथा में तो प्रमुखता से है ही, इसके इतर भी वे सक्रियता से उपस्थित दिखाई देते हैं।
भाषा के प्रति बाबा साहेब का राष्ट्रीय दृष्टिकोण
बाबा साहेब भाषा के प्रश्न को केवल भावुकता की दृष्टि से नहीं देखते थे। बल्कि उनके लिए भाषा को देखने का राष्ट्रीय दृष्टिकोण था। संस्कृत हो या फिर हिन्दी, दोनों भाषाओं के प्रति उनकी धारणा थी कि ये भाषाएं भारत को एकसूत्र में बांध कर संगठित रख सकती हैं और किसी भी प्रकार के भाषायी
आंबेडकर जयंती विशेष : ‘मुझे कैबिनेट की किसी कमिटी में नहीं रखा गया, कहीं जगह नहीं दी गयी’
देश में जब भी बड़े चुनाव होने को होते हैं, तो दलित विमर्श का मुद्दा ज़ोरों-शोरों से उठाया जाने लगता है। कुछ राजनीतिक पार्टियों में ये बताने की होड़ मच जाती है कि वही दलितों की सबसे बड़ी हितैषी हैं और फिर चुनाव के बाद दलित भुला दिए जाते हैं। याद रखा जाना चाहिए कि देश एक दिन में नहीं बनता, देश का इतिहास भी एक दिन में सृजित नहीं होता। दलितों की बात राजनीतिक फायदे के लिए करना एक बात है और दलितों