इंदिरा गांधी ने अचानक नहीं लगाया था आपातकाल, ये उनकी सोची-समझी चाल थी!
आपातकाल लगाने की योजना एक सोची समझी चाल थी, इसका खुलासा पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के पत्र में आपातकाल लगाने से छह महीने पहले ही हो गया था। यह चिट्ठी तभी के कानून मंत्री ए. आर. गोखले और कांग्रेस के कई नेताओं के देखरेख में ड्राफ्ट की गई थी। इंदिरा गाँधी ने अपने एक साक्षात्कार में ज़िक्र भी किया था कि इस देश को ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की ज़रुरत है।
इतिहास के आईने में : नेहरू की गलतियों का खामियाजा भुगतता भारत
प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में नेहरू ने पड़ोसी देशों के साथ कई ऐसे समझौते किए जो आत्मघाती साबित हुए। एक-दो नहीं अनेक उदाहरण मिल जाएंगे।
युवाओं के सम्पूर्ण विकास की वाहक बनेगी अग्निपथ योजना
भारत में जो युवा, सेना का एक अहम अंग बनकर, मां भारती की सेवा करना चाहते हैं, वे अग्निपथ योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
योग : भारत की सपूर्ण विश्व के लिए सौगात
योग में निहित आसन और प्राणायाम हमे दैनिक जीवन में रोग से मुक्त तो रखते ही हैं, लेकिन योग मात्र आसन, प्राणायाम और मुद्राएं ही नहीं बल्कि योग जीवन जीने की पद्धति है।
आयुर्वेद और एलोपैथ मिलकर चलें तो भारतीय चिकित्सा विश्व के लिए पथप्रदर्शक सिद्ध हो सकती है
देखा जाए तो दोनों ही चिकित्सा पद्धतियाँ मानव जीवन के कल्याण के लिए आस्तित्व में आईं हैं। एक कल का विज्ञान है तो एक आज का। लेकिन इसके साथ साथ दोनों की ही अपनी सीमाएं भी हैं।
आम जनमानस के सपनों के पंख को परवाज देती मोदी सरकार
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मूल मंत्र ‘सबका साथ सबका विकास’ के माध्यम से विकास के सर्वसमावेशी मॉडल को लेकर आगे बढ़ रहें हैं।
‘यूपी से हूँ, हाँ योगी जी वाले यूपी से’
योगी आदित्यनाथ का हर बयान और काम राज्य की राजनीति को पारदर्शी बनाता जा रहा था और समाज के हर वर्ग और भविष्य के हर राजनीतिक फैसलों पर यह गहरा असर कर रहा
काशी सर्वप्रकाशिका : सनातन सत्य की विजय सुनिश्चित है
काशी के प्रकाश को अब भी ये समझ नहीं पा रहे, दीवार पे लिखी इबारत ये पढ़ नहीं पा रहे! मस्जिद किसी दूसरे की छिनी ज़मीन पर ज़बरदस्ती नहीं बनायी जा सकती।
मोदी सरकार में संशयमुक्त हो राष्ट्रीय हितों का प्रभावी साधन बनी भारतीय विदेश नीति
भारतीय विदेश नीति में यह पहला ऐसा दौर है जब वैश्विक संगठनों, वैश्विक मंचों और बहुराष्ट्रीय घटनाक्रमों में भारत मूकदर्शक नहीं, इनका सक्रिय भागीदार है।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर : जिनका हिंदुत्व कोरी भावुकता पर नहीं, तर्कपूर्ण चिंतन पर आधारित था
आधुनिक राजनीतिक विमर्श में विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे नाम हैं, जिनकी उपेक्षा करने का साहस उनके धुर विरोधी भी नहीं जुटा पाते।