कामकाज

डिजिटलीकरण से भ्रष्टाचार और काले धन पर लग रही लगाम

हाल ही में आयकर विभाग ने 3,500 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य की 900 से अधिक बेनामी संपातियाँ जब्त की है, जिनमें फ्लैट, दुकानें, आभूषण, वाहन आदि शामिल हैं। अगर व्यक्ति कोई जायदाद किसी दूसरे के नाम से खरीदता है, तो उसे बेनामी संपत्ति कहा जाता है। ऐसे जायदाद आमतौर पर पत्नी, पति या बच्चे के नाम से खरीदे जाते हैं, जिनके भुगतान के स्रोत की जानकारी नहीं होती है। वैसे, भाई, बहन, साला, साली या

अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में सफलता के नए आयाम गढ़ता भारत

नया साल देश के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता और उपलब्धियां लेकर आया है। अपने सफल प्रक्षेपणों के लिए ख्‍यात भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने फिर एक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण कर दिखाया है। यह उपग्रह कार्टोसेट टू सीरीज का था, जिसे पीएसएलवी के माध्‍यम से लॉन्‍च किया गया। यह तो उपलब्धि है ही, लेकिन इससे बड़ी और अहम उपलब्धि ये रही कि इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो द्वारा प्रक्षेपित

काले धन पर एक और चोट, 3500 करोड़ की बेनामी संपत्ति हुई जब्त !

नोटबंदी के बाद से काले धन की रोकथाम के लिए मोदी सरकार एकदम से कमर कस चुकी है। नोटबंदी, बाजार में मौजूद नकदी काले धन को बैंकिंग प्रणाली में सम्मिलित करवाने में कारगर रही। इसके बाद बात उठी कि बहुत सारा काला धन तो लोग नकदी से इतर बेनामी संपत्ति के रूप में इधर-उधर लगा चुके हैं, मगर इसके लिए भी मोदी सरकार पहले से ही तैयारी करके बैठी थी।

मोदी सरकार के प्रयासों से वैश्‍विक विनिर्माण की धुरी बन रहा भारत !

आज भारत दुनिया भर की कंपनियों का बाजार बना है तो इसके लिए कांग्रेस सरकारों की भ्रष्‍ट और वोट बैंक की राजनीति जिम्‍मेदार है। आजादी के बाद से ही हमारे यहां बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थानों (आइआइटी) को विकास का पर्याय मान लिया गया। इसी का नतीजा है कि भारत की पहचान कच्‍चा माल आपूर्ति करने वाले देश के रूप में होने लगी है। दूसरी चूक यह हुई कि उदारीकरण के दौर

डीबीटी प्रणाली के द्वारा स्थापित हो रही आर्थिक सशक्तिकरण की पारदर्शी व्यवस्था

एक प्रश्न है कि किसी भी व्यक्ति के सशक्त होने का व्यवहारिक मानदंड क्या है ? इस सवाल के जवाब में व्यवहारिकता के सर्वाधिक करीब उत्तर नजर आता है- आर्थिक मजबूती। व्यक्ति आर्थिक तौर पर जितना सम्पन्न होता है, समाज के बीच उतने ही सशक्त रूप में आत्मविश्वास के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। निश्चित तौर पर आर्थिक मजबूती के लिए अर्थ को अर्जित करना ही पड़ता है। भारतीय अर्थ परम्परा में धर्म और

लोगों के अपने घर के सपने को साकार कर रही प्रधानमंत्री आवास योजना !

देश में घरों की कमी एक गंभीर समस्या है। आज भी करोड़ों लोग घरों के बिना फुटपाथ पर अपना जीवन गुजर-बसर करने के लिये अभिशप्त हैं। समस्या की गंभीरता को देखते हुए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना का शुभारंम 25 जून, 2015 को किया, जिसका उद्देश्य 2022 तक सभी को घर उपलब्ध कराना है। इस योजना को दो भागों यथा, शहरी और ग्रामीण में विभाजित किया गया है।

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए भाजपा सरकारों की अनूठी पहल

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की खेती-किसानी की बदहाली पिछली सरकारों द्वारा लंबे समय तक कृषिगत आधारभूत ढांचा विशेषकर बिजली, सड़क, सिंचाई, बीज, उर्वरक, भंडारण, विपणन, प्रसंस्‍करण आदि की ओर ध्‍यान न दिए जाने का नतीजा है। भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबी और जाति-धर्म की राजनीति करने वाली सरकारों के पास इतनी फुर्सत ही नहीं थी कि वे दूरगामी कृषि सुधारों की ओर ध्‍यान देतीं। यही कारण है

मोदी सरकार के सुधारों से अपने लक्ष्यों को पाने में कामयाब हो रही मनरेगा योजना !

मोदी सरकार ग्रामीण क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिये शिद्दत के साथ कोशिश कर रही है। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को मजबूत बनाना सरकार की इसी रणनीति का हिस्सा है। ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराने के लिये सरकार ने वित्त वर्ष 2016-17 के लिये पूरक मांग के द्वारा बजट आवंटन में बढ़ोतरी की थी, जिससे वित्त वर्ष 2016-17 में मनरेगा के तहत कुल रोजगार सृजन 235.77 करोड़ व्यक्ति

बिजली की बचत से बिजली क्रांति लाने की दिशा में बढ़ रही मोदी सरकार !

आजादी के बाद अन्‍य क्षेत्रों की भांति बिजली क्षेत्र का विकास भी विसंगतिपूर्ण रहा। गुणवत्‍तापूर्ण विद्युत् आपूर्ति हो या प्रति व्‍यक्‍ति खपत हर मामले में जमकर कागजी खानापूर्ति की गई। सबसे ज्‍यादा भेदभाव तो गांवों के साथ किया गया। बिजलीघर भले ही गांवों में लगे हों, लेकिन इनकी चारदीवारी के आगे अंधेरा ही छाया रहा। दूसरी ओर यहां से निकलने वाले खंभों व तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। इसी तरह उस गांव

मोदी सरकार के इन क़दमों से बढ़ेगी किसानों की आय !

कृषि क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि हेतु सरकार इस क्षेत्र की मौजूदा कमियों को दूर करना चाहती है। इस कवायद के तहत केंद्र सरकार ने हाल ही में चने और मसूर के आयात शुल्क में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है; वहीं तोरिया, जो मुख्य रूप से राजस्थान में पैदा होने वाली तिलहन फसल है, के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि की है। सरकार जल्द ही गेहूं के आयात शुल्क, जो मौजूदा समय में 20 प्रतिशत है, में भी बढ़ोतरी