पॉलिटिकल कमेंटरी

रक्षा सौदों में घोटालों का कीर्तिमान कांग्रेस के नाम दर्ज है!

लंबे अरसे से कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के बहाने मोदी सरकार पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगा रहे हैं। पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनावों के प्रचार में कांग्रेस ने राफेल को बोफोर्स तोप की तरह इस्‍तेमाल किया और 2019 के आम चुनाव में भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की कवायद में जुटी थी लेकिन सर्वोच्‍च न्‍यायालय के फैसले ने उसकी उम्‍मीदों

संसद में मोदी ने जो कहा है, उसकी गूँज दूर तक जाएगी!

बीते दिनों संसद के बजट सत्र का समापन हुआ। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना महत्‍वपूर्ण भाषण दिया। भाजपा सरकार के मौजूदा कार्यकाल का यह अंतिम भाषण था, इसलिए भी इसका विशेष महत्‍व था। इसमें उन्‍होंने न केवल विपक्ष के समय-समय पर लगाए जाने वाले आरोपों का सिलसिलेवार, तथ्‍यपरक जवाब दिया बल्कि मौजूदा सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए विपक्ष के व्‍यक्तिगत प्रहारों का भी जमकर पलटवार किया।

महागठबंधन: हर हप्ते बदल रहा विपक्ष का प्रधानमंत्री उम्मीदवार

चुनाव से पहले देश की राजनीति बहुत हो रोचक दौर में प्रवेश कर गई है। विपक्षी गठबंधन का आलम यह है कि विपक्ष की तरफ से हर हफ्ते प्रधानमंत्री पद के नए दावेदार सामने आ रहे हैं। आज उन्हीं नामों की चर्चा जो प्रधानमंत्री पद की रेस में बने हुए हैं।कांग्रेस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी है (संसद में वैसे कांग्रेस को विपक्षी दल का स्टेटस हासिल नहीं है), जिसके अध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कई सालों से प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लगातार बने हुए हैं।

अगर राहुल भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, तो ममता-माया-अखिलेश जैसों के घोटालों पर क्यों नहीं बोलते?

क्या राहुल रॉफेल डील से सचमुच असंतुष्ट हैं? अगर हाँ, तो जैसा कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, उन्हें ठोस सबूत पेश करने चाहिए। अगर वो कहते हैं और मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनिल अंबानी को 30 हज़ार करोड़ रुपए दिए हैं तो इसे सिद्ध करें, कहीं न कहीं किसी ना किसी खाते में पैसों का लेनदेन दिखाएं।

राहुल गांधी की ‘भक्ति’ चुनावों के मौसम में ही क्यों जागती है?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी पार्टी को चुनावों में जीत भले न दिलवा पा रहे हों, लेकिन अपनी गतिविधियों से चर्चा में जरूर बने रहते हैं। इन दिनों वे अपनी ‘शिव भक्ति’ को लेकर सुर्ख़ियों में हैं। अभी हाल ही में वे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए थे, जिसके बाद से ही उनकी ‘भक्ति’ को लेकर राजनीतिक गलियारों का तापमान बढ़ा हुआ है। कांग्रेस जहां इसे राहुल की निश्छल

माल्या प्रत्यर्पण: ‘जिन्होंने देश का लूटा है, उन्हें लौटना पड़ेगा’ पर खरी साबित होती मोदी सरकार

भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार की नीति पहले दिन से स्पष्ट रही है। चाहे वह कालेधन पर एसआईटी का गठन करना हो, स्विस सरकार से विदेशों में कालेधन की जानकारी के संबंध में संधि करना हो या अगस्ता वेस्टलैंड में मिशेल की गिरफ्तारी हो। चौकीदार ने हमेशा अपनी ईमानदार सोच का प्रमाण दिया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि देश के गरीबों का पैसा लूटने वाले

बंगाल : मोदी की रैली में दिखी भाजपा की बढ़ती धमक, बढ़ रही ममता की बेचैनी

पिछले कुछ महीने से पश्चिम बंगाल में सत्ता पक्ष द्वारा एक ख़ास तरह की घिनौनी राजनीति चल रही है कि विपक्षी पार्टियों को वहाँ रैली ही नहीं करने दो, उनके कार्यकर्ताओं पर हमले करो। ऐसा कुछ पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी करती थी, लेकिन मिट्टी और मानुष की सौगंध लेने वाली ममता बनर्जी भी अब लोगों के साथ छल कर रही हैं। बंगाल में विपक्षी कार्यकर्ताओं के साथ ज्यादती की शिकायत कई बार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी की है।

इस बजट ने आम आदमी का दिल तो जीता ही है, विपक्ष की राजनीति भी ध्वस्त कर दी है!

विपक्ष भले ही वर्तमान सरकार के इस आखिरी बजट को चुनावी बजट कहे और कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण को चुनावी भाषण की संज्ञा दे, लेकिन सच तो यह है कि इस आम बजट ने अपने नाम के अनुरूप देश के आम आदमी के दिल को जीत लिया है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘यह सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी, सर्वोत्कर्ष को समर्पित एक ऐसा बजट है’ निस्संदेह ये बजट भारत के भविष्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने जगाता है।

‘मोदी का जितना विरोध होता है, वे उतने ही मजबूत होते जाते हैं’

समकालीन भारतीय राजनीति में जितना विरोध नरेंद्र मोदी का हुआ है, उतना शायद ही किसी नेता का हुआ हो। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मोदी का जितना विरोध होता है, मोदी उतने ही मजबूत बनते जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह है, उनकी विकास की राजनीति जो “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” पर आधारित है।

तमिलनाडु के विकास में जुटी मोदी सरकार

दक्षिण की सियासत पर नजर डालें तो सबसे पहले राजनीतिक मानचित्र पर तमिलनाडु का चित्र उभरकर आता है। यहाँ की राजनीति की ख़ासियत है कि अधिकतर समय यहाँ सिनेमा से सियासत में आए लोग ही सत्ता में रहें हैं। लेकिन जयललिता की मृत्यु के पश्चात् सियासी घमासान से राज्य का विकास बाधित हुआ है।