पॉलिटिकल कमेंटरी

विपक्ष की नकारात्मक राजनीति के बावजूद मानसून सत्र की रिकॉर्ड सफलता सरकार की बड़ी कामयाबी है!

संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, जहाँ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता से सरोकार रखने वाले विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस करके उनका समाधान निकालते हैं। फिर चाहे वह राज्यसभा हो अथवा लोकसभा, दोनों सदनों में सत्तापक्ष तथा विपक्ष के बीच नोक-झोंक, सहमति-असहमति की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

35ए : वह अनुच्छेद जिसे नेहरू ने संसद में पारित किए बिना ही संविधान का हिस्सा बना दिया

अनुच्छेद 35-ए को लेकर पिछले कुछ दिनों से लगातार बहस-मुबाहिसो का दौर जारी है। यह एक ऐसा विधान है, जिसने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया है। लेकिन इसे एक ऐसे संवैधानिक धोखे का नाम भी दिया जा रहा है, जिसकी वजह से वहां के लाखों लोग वर्षों से नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

एनआरसी : ‘देश देख रहा है कि विपक्षी दल सरकार के विरोध और देश-विरोध के अंतर को भूल गए हैं’

आज राजनीति प्रायः सत्ता हासिल करने मात्र की नीति बन कर रह गई है, उसका राज्य या फिर उसके नागरिकों के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है। कम से कम असम में एनआरसी ड्राफ्ट जारी होने के बाद कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया तो इसी बात को सिद्ध कर रही है। चाहे तृणमूल कांग्रेस हो या सपा, बसपा, जद-एस, तेलुगु देसम या फिर आम आदमी पार्टी।

कांग्रेस पिछड़े वर्ग की कितनी हितैषी है, ये ओबीसी आयोग पर उसके इतिहास से ही पता चल जाता है!

देश की राजनीति में आज़ादी के बाद से ही निरंतर पिछड़े समाज व वर्ग के उत्थान की बातें तो बहुत की गईं। लेकिन इसको लेकर कभी कोई नीतिगत फैसला पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा नहीं लिया गया। इसके उलट मोदी सरकार ने सत्ता में आने के उपरांत ही गरीब, वंचित, शोषित, पिछड़े वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में अनेक हितकारी निर्णय लिए हैं, जिसमें हाल ही में

मोदी सरकार का राफेल सौदा कांग्रेस से बेहतर ही नहीं, सस्ता भी है!

राफेल विमान सौदे के सहारे कांग्रेस चुनावी उड़ान की रणनीति बना रही थी। फ्रांस के साथ हुए समझौते में घोटाले के आरोप लगाकर वह एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास कर रही थी। पहला, उसे लगा कि नरेंद्र मोदी सरकार पर घोटाले का आरोप लगा कर वह अपनी छवि सुधार लेगी। दूसरा, उसे लगा कि वह इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना सकेगी। लेकिन इस संबन्ध में नई

‘जो समझौता लागू करने की हिम्मत राजीव गांधी नहीं दिखा सके, उसे मोदी सरकार ने लागू किया है’

असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे  मसौदे को जारी कर दिया गया है। एनआरसी में शामिल होने के लिए आवेदन किए 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं और इसमें 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। असम सरकार का कहना है कि जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है, उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा।

एनआरसी पर बौखलाने वाले वही लोग हैं, जिन्हें देशहित से अधिक अपना वोट बैंक प्यारा है!

एनआरसी का ड्राफ्ट आज संसद से सड़क तक चर्चा का केंद्रबिंदु बना हुआ है। सभी विपक्षी दल इस मुद्दे पर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहें हैं, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा का स्पष्ट कहना है कि घुसपैठियों के मसले पर सभी दलों को अपना मत स्पष्ट करना चाहिए। देश की सुरक्षा के साथ भाजपा कोई समझौता नहीं करेगी, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि भाजपा को

एनआरसी प्रकरण : वोट बैंक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने पर तुले हैं विपक्षी दल

असम के राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर प्रसंग पर संसद में हंगामा हतप्रभ करने वाला है। आंतरिक सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर तो राष्ट्रीय सहमति दिखनी चाहिए थी, जबकि इसमें सभी छुटे भारतीयों का नाम दर्ज होने तय है। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह आंतरिक सुरक्षा की जगह  सियासत का मुद्दा है। जनगणना रजिस्टर पर भारत के नागरिकों के लिए कोई कठिनाई ही नहीं है।

क्या आम आदमी पार्टी ने वाकई में कांग्रेस के सामने घुटने टेक दिए हैं?

सबको याद होगा कि आम आदमी पार्टी क्यों और कैसे बनाई गई थी। यूपीए-2 के दौरान भ्रष्टाचार का प्रचंड बोलबाला था। मनमोहन सिंह सरकार को एक धक्का भर देने की ज़रुरत थी। दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के घपलों के कारनामे थमने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसे में दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल नाम के एक शख्स ने मौके को पहचानकर व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली

राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता पर एक बड़ी मुहर साबित हुआ अविश्वास प्रस्ताव

लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जिस तरह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री के समक्ष पहुंचकर उन्हें कुर्सी से उठाने की कोशिश के साथ गले पड़कर प्रायोजित प्रहसन को अंजाम दिया, उससे न सिर्फ संसदीय गरिमा का क्षरण हुआ है, बल्कि राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता पर भी मुहर लगी है। हद तो तब हो गयी