विपक्ष बताए कि एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का औचित्य क्या था?
भारत के संसदीय इतिहास में विगत शुक्रवार का दिन कई मायने में ऐतिहासिक रहा। विपक्षी दलों द्वारा उस सरकार के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने का दुस्साहस किया गया, जिसे भारत की जनता ने प्रचंड बहुमत से देश की कमान सौंपी है। एनडीए सरकार के खिलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हश्र क्या होगा, इसको लेकर किसी के मन में कोई शंका नहीं रही होगी।
तुष्टिकरण का जो दांव कभी हिटलर ने खेला था, आज कांग्रेस भी उसीको आजमाने में लगी है!
पानी को उबलने के लिए भी सौ डिग्री तापमान का इंतजार होता है, लेकिन कांग्रेस दिल्ली का सिंहासन हथियाने के लिए किस कदर बेकरार है, ये इसी से समझा जा सकता है कि उसने अपने सिपाहसालारों को तुष्टिकरण के घातक हथियार से देश को छलनी करने का जिम्मा सौंप दिया है। उसके सिपाहसालार तुष्टिकरण के घातक औंजारों से देश की नस-नस में जहर उतारना
अविश्वास प्रस्ताव पर अपने ही बुने जाल में फँस गया विपक्ष
शुक्रवार का दिन संसद के इतिहास में रोचक, हंगामाखेज और घटनाप्रधान दिन के रूप में दर्ज हो गया। इन दिनों संसद का मानसून सत्र चल रहा है। इसे आरंभ हुए तीन दिन भी नहीं बीते थे कि बजट सत्र की तरह इस सत्र को भी हंगामे की भेंट चढ़ाने की विपक्ष की तैयारी नज़र आने लगी।
कांग्रेस आज जिस अहंकार से ग्रस्त दिखती है, उसकी जड़ें नेहरू के जमाने की हैं!
कल लोकसभा में तेदेपा द्वारा लाया गया और कांग्रेस आदि कई और विपक्षी दलों द्वारा समर्थित अविश्वास प्रस्ताव प्रत्याशित रूप से गिर गया। अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में कुल 451 सांसदों ने मतदान किया जिसमें सरकार के पक्ष में 325 और विपक्ष में 126 मत पड़े। इस प्रकार 199 मतों से सरकार ने विजय प्राप्त कर ली। लेकिन इससे पूर्व अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा में पक्ष-
राहुल गांधी की अजीबोगरीब हरकतें ही कांग्रेस के लिए अविश्वास प्रस्ताव का हासिल हैं !
अविश्वास प्रस्ताव सरकार को परेशान करने वाला होता है, लेकिन इस बार उल्टा हुआ। सत्ता पक्ष को बड़े उत्तम ढंग से अपनी उपलब्धियां लोगों तक पहुंचाने का अवसर मिला। विपक्ष की पूरी रणनीति ध्वस्त हो गई। इनका प्रदर्शन एक हद तक अदूरदर्शी और हास्यास्पद ही साबित हुआ।
पांच साल की सरकार का दावा करने वाले कुमारस्वामी के डेढ़ महीने में ही आंसू क्यों निकल पड़े !
कर्नाटक में जिस गठबन्धन को लेकर डेढ़ महीने पहले बंगलुरू में अखिल भारतीय जश्न हुआ था, उसके लिए अब मुख्यमंत्री कुमारस्वामी आंसू बहा रहे हैं। वैसे उन्होंने यह नहीं बताया कि वह ऐसी विषभरी स्थिति से कब बाहर निकलेंगे। लेकिन इतना तय हुआ कि यह गठबन्धन नैतिक आधार पर विफल हो चुका है।
प्रगति-पथ पर मोदी-योगी की दमदार जुगलबंदी
उत्तर प्रदेश का व्यापारिक सुगमता में दो पायदान आगे बढ़ना, नोएडा में सैमसंग की सबसे बड़ी फैक्ट्री शुरू होना, लखनऊ में उद्यमिता समिट, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उद्घाटन – ये सब कुछ ही दिनों की दास्तान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास के जिस मॉडल के पक्षधर रहे हैं, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
‘शशि थरूर की ये किताब पढ़ने के बाद मुझे उनके ‘हिन्दू पाकिस्तान’ वाले बयान पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ’
देश में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस कुछ ऐसा कर रही है, जिससे उसकी मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी मुस्लिम समाज के नेताओं से मुलाकात करते हैं। उससे पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर कहते हैं कि बीजेपी को 2019 में वोट मत दो, वर्ना भारत “हिन्दू पाकिस्तान” बन जाएगा।
भारत में जबतक हिन्दू बहुमत में हैं तबतक ये पाकिस्तान नहीं बन सकता, थरूर साहब !
गुजरात विधानसभा चुनाव के समय जारी कांग्रेस का जनेऊधारी संस्करण बन्द हुआ। अब लोकसभा चुनाव की तैयारी है। राहुल गांधी की वर्ग विशेष के साथ बैठक, पहले गुलाम नबी आजाद और फिर शशि थरूर के बयान यही दिखाते हैं। भारत को बदनाम करने वाली बातें यही तक सीमित नहीं हैं। पाकिस्तान के नेता भी भारत के खिलाफ बयान देते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार प्रकोष्ठ के प्रमुख हुसैन का बयान भी लगभग ऐसा ही था। उसका कहना था कि जम्मू कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर की स्थिति एक जैसी है। दोनों स्थानों पर
अलग मजहबी मुल्क की मांग करने वालों को पाकिस्तान से शरण देने की गुहार लगानी चाहिए !
आये दिन किसी न किसी भाजपा नेता, खासकर गिरिराज सिंह, का हवाला देते हुए राष्ट्रवादियों पर यह आरोप लगता है कि इन्होंने पाकिस्तान भेजने का ठेका ले रखा है। ‘पाकिस्तान चले जाएँ’ का प्रयोग जितना हिदायत के नाते भाजपाइयों ने नहीं किया उससे ज्यादा प्रयोग तो उनसे असहमत होने वालों ने इसे विक्टिम कार्ड के रूप में किया है। मसलन, अकसर देखने को मिलता है कि