पूर्वोत्तर भारत : मोदी राज में ख़त्म हो रहा उग्रवाद, खुल रहे विकास के द्वार
गत सप्ताह केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पूर्वोत्तर भारत के मेघालय से पूर्णतः तथा अरुणाचल प्रदेश से आंशिक तौर पर अफस्पा हटाने का निर्णय लिया गया। मेघालय के ४० प्रतिशत इलाकों में ही यह क़ानून अब रह गया था, वहाँ से भी अब इसे हटा लिया गया है। वहीं, अरुणाचल प्रदेश के १६ थाना क्षेत्रों में यह क़ानून लागू था, जिनमें से आठ थाना क्षेत्रों से इसे हटाने का निर्णय गृह मंत्रालय ने लिया है
भारत-चीन अनौपचारिक वार्ता के निकलेंगे सकारात्मक परिणाम
अंततः बिना एजेंडे की शिखर वार्ता का प्रयोग कारगर रहा। भारत और चीन के बीच आपसी विश्वास बहाल हुआ। चीन ने भारत के साथ संवाद और अच्छे संबन्ध रखने का महत्व स्वीकार किया। कहा गया कि द्विपक्षीय संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है। ये सकारात्मक रूप में आगे बढ़ते रहेंगे। दो दिन में छह वार्ताएं हुई। यह सकारात्मक बदलाव को रेखांकित करता है। भविष्य में इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते है।
कर्नाटक चुनाव : विकास के मुद्दे पर बात करने से बच क्यों रही है कांग्रेस ?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर महीने “मन की बात” के ज़रिये देश के लोगों से संवाद स्थापित करते हैं, इसमें वे देश-समाज से जुड़े विकासपरक विषयों पर बात करते हैं। अतः हर महीने देश की जनता में जिज्ञासा रहती है कि वे अबकी इस कार्यक्रम के जरिये किन योजनाओं और नीतियों पर बात करने वाले हैं। लेकिन, विपक्ष और खासकर कांग्रेस पार्टी को शायद हमेशा यह चिंता रहती है कि कैसे हर मुद्दे पर राजनीति की जाए
अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था को चोट पहुँचा रही कांग्रेस !
सात विपक्षी दलों द्वारा मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ़ दिए गए महाभियोग नोटिस को उपराष्ट्रपति ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि मुख्य न्यायाधीश के ऊपर लगाए गए आरोप निराधार और कल्पना पर आधारित हैं। उपराष्ट्रपति की यह तल्ख़ टिप्पणी, यह बताने के लिए काफ़ी है कि कांग्रेस ने किस तरह से अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए महाभियोग जैसे अति-गंभीर विषय पर अगम्भीरता दिखाई है।
महाभियोग प्रकरण : उपराष्ट्रपति का न्यायसंगत निर्णय, कांग्रेस की फिर हुई फजीहत !
मुख्य न्यायाधीश को हटाने की कांग्रेसी मुहिम का यही हश्र होना था। राज्यसभा के सभापति वैकैया नायडू ने इस संबन्ध में विपक्ष की नोटिस को खारिज कर दिया। उन्होंने इसके लिए पर्याप्त होमवर्क किया। देश के दिग्गज संविधान और विधि विशेषज्ञों से विचार विमर्श किया। इसके आधार पर विपक्ष की नोटिस के प्रत्येक बिंदु का परीक्षण किया।
न्यायपालिका का मखौल बना रहे विपक्षी दल !
आज से तीन वर्ष पहले हुई जज लोया की मौत को सुप्रीम कोर्ट ने ‘सामान्य’ करार दिया, साथ ही उनलोगों को लताड़ लगाई जो इसे सनसनीखेज बनाने की कोशिश कर रहे थे। सम्बंधित याचिकाओं के साजिशन या राजनीति से प्रेरित होने की बात भी कोर्ट ने कही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले यह भी स्पष्ट किया कि अब इस मामले पर आगे कोई सुनवाई नहीं होगी।
मोदी सरकार की रणनीतिक कुशलता से खत्म हो रहा नक्सलवाद !
भारत की आंतरिक सुरक्षा की चर्चा जब भी होती है, नक्सलवाद की समस्या एक बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने उपस्थित हो जाती है। नक्सलवाद, भारत की शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए एक बड़ी और कठिन बाधा के रूप में सत्तर-अस्सी के दशक से ही उपस्थित रहा है। हर सरकार अपने-अपने ढंग से नक्सलवाद से निपटने और इसका अंत करने के लिए प्रयास भी करती रही है। वर्तमान मोदी सरकार ने भी सत्तारूढ़
‘हिन्दू आतंकवाद’ का झूठ फैलाने के लिए देश से कब माफ़ी मांगेगी कांग्रेस !
गत ग्यारह वर्षों से आतंकवाद की साज़िश का शिकार होकर जेल यंत्रणा झेल रहे असीमानन्द को अंततः न्याय मिला। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया। यह मसला पांच लोगों की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से भगवा आतंकवाद शब्द भी निर्मूल साबित हुआ। यह शब्द दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को अपमानित करने वाला था। ऐसा करने वालों के अपराध की भी
बलात्कार पर राजनीति की परम्परा तो इस देश में नेहरू-इंदिरा के समय से रही है!
उन्नाव और कठुआ में हुई बलात्कार की घटनाओं ने एक बार फिर वोट बैंक की राजनीति करने वालों को उर्वर जमीन मुहैया करा दी। यदि यही उन्नाव की घटना किसी गैर-भाजपा शासित राज्य में घटी होती, तो मानवाधिकार के स्वयंभू नेता घरों से बाहर न निकलते। इसी प्रकार यदि कठुआ में पीड़ित लड़की हिंदू होती, तो सभी की जुबान सिल जाती। इसका ज्वलंत उदाहरण है 10 अप्रैल को बिहार के सासाराम में छह साल की मासूम
एससी-एसटी एक्ट : न्यायालय के निर्णय पर विपक्ष की नकारात्मक राजनीति
एससी/एसटी एक्ट पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद देश में तनाव की स्थिति पैदा हो गई। कुछ दिनों से अनेक कारणों से न्यायपालिका के निर्णय चर्चा का विषय बन रहे हैं। प्रत्येक केस की स्थिति भिन्न होती है, उसके तथ्य, प्रकरण भी भिन्न होते हैं, ऐसे में, कानूनी तौर पर विशेष ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि संबंधित कानूनी प्रक्रिया का सम्यक प्रकार से पालन हुआ है या नहीं। किसी एक घटना या मामले