अपने रहनुमाओं से अब मुस्लिम पूछ रहे हैं कि भाजपा क्यों नहीं ?
बीजेपी के जीत के पीछे जो कारण रहे, उनमें से पहला कारण है मोदी पर जनता का विश्वास । जो इस बात से प्रकट होता है कि उन पर लगभग 3 साल की सरकार में एक भी आरोप नहीं है । दूसरा कारण है, सरकार की निर्णय लेने की इच्छाशक्ति । यह बिलकुल सच बात है कि कोई भी व्यक्ति कोई भी काम कर सकता है; परंतु उसके लिए इच्छाशक्ति एक जरुरी योग्यता है, जो कि मोदी और उनकी पार्टी के अंदर है।
आखिर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कैसे बनी भाजपा ?
भारत की राजनीति में दलीय व्यवस्था का उभार कालान्तर में बेहद रोचक ढंग से हुआ है। स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस का पूरे देश में एकछत्र राज्य हुआ करता था और विपक्ष के तौर पर राज गोपाल चारी की स्वतंत्र पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी सहित बहुत छोटे स्तर पर जनसंघ के गिने-चुने लोग होते थे। उस दौरान भारतीय राजनीति में एक दलीय व्यवस्था के लक्षण दिख रहे थे। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद आजाद हुए
गौ-संरक्षण की दिशा में गुजरात सरकार का अनुकरणीय प्रयास
भारतीय संस्कृति में गाय का बड़ा महत्व है। गाय के साथ इस देश का संबंध मात्र भावनात्मक नहीं है, वरन भारतीय समाज के पोषण में गौवंश का प्रमुख स्थान रहा है। भारत में गाय धार्मिक और आर्थिक, दोनों की बराबर प्रतीक है। यही कारण है कि प्राचीन समय में गौ-धन से सम्पन्नता देखी जाती थी। गाय के प्रति सब में बराबर सम्मान और श्रद्धा थी। फिर चाहे वह भारत में आक्रांता के रूप में आए समूह हों या फिर शरण लेने
प्रधानमंत्री मोदी के सुशासन और अमित शाह की रणनीति के आगे चारों खाने चित होते विरोधी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यों ही नहीं आज के दौर के सबसे बड़े नेता हैं। पहले लोकसभा चुनावों में भाजपा को बंपर बहुमत दिलाकर और अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पूर्वोत्तर के मणिपुर, समुद्री राज्य गोवा, पहाड़ी उत्तराखंड और गंगा-यमुना के विशाल मैदान उत्तर प्रदेश को जिस ढंग से उन्होंने भगवा झंडे के नीचे समेटा वह उन्हें देश के सार्वकालिक जन नायकों में शुमार करने के लिए काफी
भाजपा की जीत से बौखलाए विपक्षी दलों का ईवीएम राग
‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ एक पुरानी और प्रचलित कहावत है, जो वर्तमान में ईवीएम को लेकर विपक्ष द्वारा मचाए जा रहे फ़िज़ूल के हंगामे पर एकदम सटीक बैठती है। एक तरफ यूपी की पराजय से सपा, बसपा तो दूसरी तरफ पंजाब में हुई हार से आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल
मोदी सरकार के नेतृत्व में परिवर्तन की ओर अग्रसर भारत
उत्तर प्रदेश के नतीजों के तुरंत बाद उमर अब्दुल्लाह ने कहा था कि “विपक्ष को अब 2024 की तैयारी करनी चाहिए; 2019 में उसके लिए खास उम्मीद नहीं है”। उमर अब्दुल्ला ने संभवत: वर्तमान राजनीति की उस हक़ीकत को स्वीकारने का प्रयास किया, जिसे पूरा विपक्ष कहीं न कहीं समझ तो रहा है, मगर स्वीकार नहीं रहा। यद्यपि 2019 अभी दूर है; परंतु जमीनी हकीकत और तमाम समीकरणों को देखते हुए पूरी संभावना
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने की ज़रूरत
संसद के वर्तमान सत्र में गत दिनों राज्यसभा में भारतीय राजनीति में चुनाव सुधार से जुड़े विविध पहलुओं पर व्यापक रूप से चर्चा हुई। पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से तमाम विचार आए। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय लोकतंत्र का विकास परंपरागत तौर पर तमाम सुधारों के माध्यम से हुआ है। अनेक बार अलग-अलग मसलों पर सुधार की आवश्यकता महसूस की गयी है और उन सुधारों को अमल में लाया गया है।
योगी सरकार के आते ही यूपी के शासन-प्रशासन की कार्य-संस्कृति में दिखने लगा बदलाव
उत्तर प्रदेश के 2012 के विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी को 224 सीटों का बहुमत प्राप्त हुआ था, तो जीत का जश्न इस कदर चला कि अखिलेश सरकार के तमाम मंत्रियों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की जीत की खुमारी हफ़्तों तक नही उतरी थी। सपा कार्यकर्ताओं ने जश्न की खुमारी में काफी उत्पात मचाया था। यहाँ तक कि जश्न के दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हो गयी थी; मगर उससे भी जश्न फीका नही पड़ा।
पस्त संगठन और मस्त नेताओं के बीच बदहाल कांग्रेस
2014 के बाद से जब भी कोई चुनाव होता है और उसमें कांग्रेस को हार मिलती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े होने लगते हैं । राजनीतिक विश्लेषकों के अलावा कांग्रेस के नेता भी उनके नेतृत्व को लेकर प्रत्यक्ष तौर पर तो नहीं, लेकिन संगठन की चूलें आदि कसने के नाम पर सवाल उठाने लगते हैं । इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी में एक सौ तीस साल पुरानी पार्टी की अगुवाई को लेकर कोई स्पार्क
भाजपा की यूपी विजय के सन्देश
उत्तर प्रदेश में विशाल बहुमत के साथ भाजपा सरकार आकार ले चुकी है। गोरखपुर के केंद्र से पूर्वांचल में अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान करने वाले योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में अपने 43 मंत्रियों के साथ शपथ ले चुके हैं। इस मजबूत सत्ता पक्ष के समक्ष राज्य में विपक्ष बस कहने भर के लिए रह गया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन से लेकर बसपा तक सबको मिलाकर भी महज़ अठहत्तर सीटें ही