चंडीगढ़ निकाय चुनाव : भाजपा की चली आंधी, जनता ने दिखाया विपक्षी दलों को आईना
हाल ही में पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में निकाय चुनावों के परिणाम आये। इन चुनावों में जनता ने भाजपा को ऐतिहासिक रूप से विजयी बनाया है। चंडीगढ़ निकाय के कुल 26 वार्डों में से 22 वार्डों में भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 20 में उसे जोरदार जीत हासिल हुई है। भाजपा की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ एक सीट हाथ लगी, वहीँ पिछली बार के चुनावों में ११ सीटें जीतने वाली कांग्रेस
संसद सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ाने वाले विपक्षी दलों का जनता करेगी हिसाब
लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद का का काम जनता की भलाई करना होता है, लेकिन शीतकालीन सत्र में जो स्थिति नजर आई, उसे देखकर इस सम्बन्ध में निराशा ही होती है। जिस नोटबंदी पर विपक्ष ने इस पूरे संसद सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया, उसपर भारतीय जनता सरकार के साथ खड़ी है। क्योंकि लोगों को समझ आ रहा है कि इसका दूरगामी असर देश के लिए सुखद साबित होगा। फिर किस उद्देश्य की पूर्ति के
नये सेनाध्यक्ष की नियुक्ति का बेजा विरोध कर रहे विपक्षी दल
पिछले दिनों से एक खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। यह प्रवृत्ति है भारतीय सेना को सियासत में खींचने की। अपनी सियासी चाल के लिए सेना के इस्तेमाल की। आज़ादी के बाद से हमारे देश में सेना सियासत से ऊपर रही है। जिस तरह से विदेश नीति को लेकर कमोबेश सभी दल एक धरातल पर रहते हैं, उसी तरह से सेना को लेकर भी सभी दलों में लगभग मतैक्य रहता आया है। लेकिन अब
राहुल गाँधी की राजनीतिक अपरिपक्वता की भेंट चढ़ती कांग्रेस
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का नाम ऐसे नेताओं के नाम मे सम्मिलित किया जाना चाहिए जो पार्टी के लिए करना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा कर देता है कि उनकी पार्टी को उनके कृत्यों पर न कुछ उगलते बनता और न ही कुछ निगलते बनता है। संसद का इस बार का शीतकालीन सत्र पिछले 15 वर्षों के इतिहास मे सबसे कम कामकाज वाले सत्र मे शामिल हो गया है। इस बार का पूरा
यूपी चुनाव : भाजपा की परिवर्तन यात्रा के आगे हवा हो रहे विपक्षी दलों के सियासी समीकरण
उत्तर प्रदेश में चुनाव को अभी लगभग दो-तीन महीने का वक्त शेष है, लेकिन सूबे की सियासत में सियासी गर्माहट का माहौल देखने को लगातार मिल रहा है। सूबे में वोटबैंक की राजनीति साधने के लिए तमाम पार्टियॉं अपने सभी पैंतरें अपना रही है। बसपा एक ओर जहां दलित समुदाय को अपनी पैतृक संपत्ति मानते हुए ब्राहाण और राजपूतों को अपने पाले में खींचकर चुनावी वैतरणी को पार करने की फिराक में दिख
संसद ठप्प करने की नकारात्मक राजनीति से बाज आयें विपक्षी दल
संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने में चंद दिन शेष बचे हैं और अबतक का यह पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। नोटबंदी को लेकर विपक्षी दल लोकतंत्र के मंदिर संसद मे जो अराजकता का माहौल बनाए हुए हैं, वह शर्मनाक है। सरकार नोटबंदी पर चर्चा को तैयार है, लेकिन विपक्षियों को तो चर्चा चाहिए ही नहीं, क्योंकि चर्चा में वे टिक नहीं पायेंगे, इसलिए बस फिजूल का हंगामा कर संसद का वक़्त और
गरीबों-मजदूरों के लिए लाभकारी है नोटबंदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले को लागू करके बड़ा रिस्क लिया है जो अगर वो नहीं भी लेते तो कोई फर्क नहीं पड़ता और उनकी राजनीति निर्बाध गति से चलती रहती । नोटबंदी के पहले हो रहे तमाम सर्वे के नतीजे यह बता रहे थे कि मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं । बावजूद ये जोखिम उठाना इस बात का संकेत देता है कि नरेन्द्र मोदी देश के लिए कुछ बड़ा करने की दिशा में कदम उठा चुके हैं ।
हार्ट ऑफ़ एशिया सम्मेलन : पाक को अलग-थलग करने की दिशा में भारत का एक और कदम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के बीच विगत दिनों संपन्न हार्ट ऑफ़ एशिया सम्मेलन में व्यापार और निवेश को बढ़ाने पर चर्चा हुई, जिससे कि दक्षिण एशिया में भारत पाकिस्तान के विरुद्ध अपनी स्थिति मजबूत करने की दिशा में शनैः-शनैः कदम बढ़ाता दिख रहा है। अफगानिस्तान की जर्जर अर्थव्यवस्था के पुननिर्माण और रक्षा
चार दशकों के राजनीतिक सफर में हर अवसर पर विफल रहे हैं मनमोहन सिंह
एक पत्रकार वार्ता (जनवरी 2014) में डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि मेरा मूल्यांकन इतिहास करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि चार दशक तक किसी एक राजनीतिक दल के साथ पूरी वफादारी और राजनीतिक निष्ठा से सरकार में शीर्ष पदों पर काम करने वाले व्यक्ति का मूल्यांकन होना स्वाभाविक है। इसमें कोई शक नहीं कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में डॉ मनमोहन सिंह उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्हें
सोशल मीडिया के जरिये जन-जन तक पहुँचने में कामयाब सरकार
लोक कल्याणकारी राज्य में लोक की चिंता राज्य की चिंता होती है। लोक का सुख-दुःख, कष्ट, पीड़ा सरकार से सीधे जुड़ी होती है। पिछली सरकारों की तुलना में अगर वर्तमान सरकार का कार्यकाल देखें तो गत ढाई साल में इस देश ने कई बदलाव देखे हैं। लेकिन एक बड़ा बदलाव यह दिखा है कि अब सरकार के मंत्री और मंत्रालय जनता के ज्यादा करीब उपस्थिति बना पाने में सफल हुए हैं। डिजिटल इण्डिया के प्रसार