पॉलिटिकल कमेंटरी

परिवारवादी पार्टियों का हश्र देखिये और समझिये कि भाजपा क्यों है पार्टी विद अ डिफरेंस!

उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में अभी जो घमासान मचा हुआ है, उसको लेकर लोग भ्रम में हैं कि इसे राजनीतिक घमासान कहें या पारिवारिक। अब चूंकि, ये सब एक राजनीतिक दल में हो रहा है तो इसे राजनीतिक घमासान कह सकते हैं, लेकिन जब उस दल की हालत पर गौर करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि ये तो पारिवारिक घमासान है। बाप-बेटा, चाचा-भतीजा, भाई-भाई यही सब तो हो रहा है अभी इस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रगति के नए आयाम गढ़ता भारत

भारत में नरेन्द्र मोदी के पूर्व जितने प्रधानमंत्री हुए थे, उनका जन्म आजादी के पहले हुआ था। नरेन्द्र मोदी भारत की आजादी के बाद पैदा होने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। वे नयी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। आजादी के बाद जितने लोग पैदा हुए हैं, वे उन्हें सहज अपना प्रतिनिधि मानते हैं। देश में अब तक 15 प्रधानमंत्री बने हैं, उनमें से प्रधानमंत्री बनने से पूर्व वी.पी. सिंह और एचडी देवगौड़ा क्रमशः उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के

राष्ट्रवादी विचारधारा की बढ़ती स्वीकार्यता से बेचैन वामपंथी

केरल में कम्युनिस्ट पार्टी खुलकर असहिष्णुता दिखा रही है। लेकिन, असहिष्णुता की मुहिम चलाने वाले झंडाबरदार कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्या उन्हें यह असहिष्णुता प्रिय है? यह तथ्य सभी के ध्यान में है कि कम्युनिस्ट विचारधारा भयंकर असहिष्णु है। यह दूसरी विचारधाराओं को स्वीकार नहीं करती है, अपितु अपनी पूरी ताकत से उन्हें

सावरकर ही नहीं अंबेडकर के खिलाफ भी है जेएनयू की लेफ्ट-यूनिटी

भारत में सावरकर, अम्बेडकर और वामपंथ तीनों की बहस एक कालखंड में पैदा हुई बहस है, जो आज भी प्रासंगिक है। सावरकर की राष्ट्रवादी विचारधारा वामपंथियों के निशाने पर तब भी थी, आज भी है। वहीँ अम्बेडकर, सावरकर की हिन्दू एकजुटता के अभियान से सहमत थे जबकि अम्बेडकर वामपंथियों की जमकर आलोचना करते थे। अम्बेडकर का स्पष्ट मानना था कि वामपंथी विचारधारा संसदीय लोकतंत्र के

नेहरु की गलती के कारण बलूचिस्तान पर हुआ था पाकिस्तान का कब्ज़ा!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक तथा स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण मे बलूचिस्तान मे हो रहे मानवाधिकार के उल्लघंन की चर्चा की तो दुनिया भर से बलोच नागरिकों ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। इस घटना के बाद आल इंडिया रेडियो ने भी सांस्कृतिक आदान-प्रदान की दृष्टि से बलोच भाषा में जम्मू-काश्मीर से प्रसारण शुरू करने की घोषणा की। इस कदम को भी बलोचियों ने काफी सराहा, लेकिन भारत मे

संघ के खिलाफ गांधी की हत्या को नहीं भुनाती तो खत्म हो जाती कांग्रेस!

गांधी ह्त्या से जुड़ा एक दूसरा पक्ष अगर देखें तो गांधी की मृत्यु से सबसे अधिक लाभ कांग्रेस को ही हुआ है। यदि इस प्रकार गांधी की ह्त्या न हुई होती तो कांग्रेस इतने दिनों तक लोकप्रिय नही रही होती। कांग्रेस की रीती-नीति से खफा होकर गांधी खुद कांग्रेस के विरोध में उतर आते। कुछ लोग तो यह भी बतलाते हैं कि गांधी जी एक दो दिन के भीतर कांग्रेस विसर्जित करने की घोषणा करने वाले थे। साथ ही यह भी अन्वेषणा

पटेल ने नेहरू से कहा था, गांधी की हत्या से संघ का कोई लेना-देना नहीं!

राहुल गांधी आये दिन अपनी नासमझी के कारण कांग्रेस को मुसीबत में डालते रहते हैं। यह उनके लिए कोई नयी बात नही है, बल्कि उनकी आदत में शुमार हो चुका है। राहुल गांधी की बातों से यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें भारत के इतिहास की कोई ख़ास समझ नही है। वे केवल कुछ सुनी सुनाई बातो को बिना परखे तोते की तरह रट-रटकर बोलते रहते हैं। अपनी इसी नासमझी की वजह से राहुल गांधी को

मोदी विरोध से ग्रस्त विपक्ष को नहीं भा रही बलूचिस्तान नीति की कामयाबी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के साथ ही….

सिर्फ खाटें नहीं लुटी हैं, उनके साथ कांग्रेस की बची-खुची साख भी लुट गई!

यह निर्विवाद तथ्य है कि कांग्रेस इस वक़्त अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है। देश से लेकर राज्यों तक हर जगह जनता द्वारा लगातार उसे खारिज होना पड़ा है। इन लगातार मिली विफलताओं से हताश कांग्रेस ने आगामी यूपी चुनाव के मद्देनज़र सफल चुनावी रणनीतिज्ञ माने जाने वाले प्रशांत किशोर की पीआर एजेंसी को यूपी में अपने प्रचार की जिम्मेदार सौंपी है। अब प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को

यूपी चुनाव कांग्रेस लड़ रही है या प्रशांत किशोर लड़ रहे हैं ?

राजनीति में हार-जीत स्थायी नहीं होती है। यह एक क्रम है जो कभी इस पाले तो कभी उस पाले के अनुकूल होता है। आजादी के बाद नेहरु से शुरू हुई कांग्रेस इंदिरा गांधी से होते हुए राजीव, सोनिया और राहुल गांधी तक पहुंची है। इस दरम्यान लगभग पांच दशकों तक कांग्रेस सत्ता में रही है, जिसमें लगभग तीन दशक से ज्यादा सत्ता के शीर्ष पर नेहरु का परिवार रहा है। अब केंद्र की सत्ता बेशक कांग्रेस के पास नहीं है,