सीबीआई ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा तथा उनके करीबी अधिकारियों समेत 20 स्थानों पर तलाशी ली है। ढींगरा आयोग के रिपोर्ट सौपनें के कुछ ही घंटो बाद सीबीआई ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करना शुरू कर दिया है। इस छापेमारी में सीबीआई के हाथ कई अहम दस्तावेज़ हाथ लगे हैं। जाहिर है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर पहले भी कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं और हरबार वह जाँच करने की चुनौती देते थे। फ़िलहाल जब सीबीआई ने कार्रवाई की तो इसे राजनीतिक बदला करार देने लगे हैं। यही नही हुड्डा के समर्थकों ने सरकार व सीबीआई के अधिकारियों के खिलाफ गुस्सा भड़क गया और पुलिस के अधिकारियों के साथ मार-पीट पर उतारू हो गये। यह दर्शाता है कि जाँच होने से हुड्डा कितना घबडाये हुए हैं।
सवाल यह उठता है कि अगर हुड्डा सरकार पाक साफ थी तो इस अधिग्रहण को रोकी क्यों नहीं? चार सौ एकड़ जमीन का मामला किसान हितों के साथ जुड़ा हुआ था तो सरकार ने इसपर गंभीरता का परिचय क्यों नहीं दिया? सरकार ने उन बिल्डरों व प्राइवेट कम्पनियों को लाइसेंस क्यों जारी किये? उपरोक्त सवाल का जवाब यही है कि इस जमीन घोटाले में बिल्डरों द्वारा किसानों की जमीन हड़पने में तत्कालीन हुड्डा नीत हरियाणा सरकार का पूरा सहयोग था।
किसानों से जमीन की खरीदारी में अनियमितता में जारी जाँच के तहत सीबीआई ने रोहतक, गुड़गाँव, पंचकूला और दिल्ली में छापेमारी करके जाँच प्रक्रिया को जैसे ही आगे बढ़ाया, तिलमिलाए पूर्व मुख्यमंत्री के समर्थकों ने अपना आपा खोकर सीबीआई और सरकार पर बेजा बदले की कार्यवाही का आरोप लगाया। लेकिन, इन सब से आरोपों से घिरे हुड्डा की मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं। दरअसल इस पूरे मामले को पर एक सरसरी निगाह डालें तो कई बातें सामने आती हैं। हुआ ये कि मानेसर व आस पास के गावों के किसानों को बिल्डरों, हरियाणा सरकार के नौकरशाहों और सरकार में बड़े पदों पर बैठे नेताओ ने मिलीभगत कर के धोखा देते हुए यह अफवाह फैलाई कि किसानों की जमीन का सरकार अधिग्रहण कर लेगी। किसानों को इस भ्रम में रखकर बड़ी चालाकी से अपने करीबी बिल्डरों को हुड्डा सरकार ने यह जमीन सौंप दिया। इस पूरे मामले में सीबीआई ने पिछले साल संज्ञान में लेते हुए मामला दर्ज किया था। 27 अगस्त 2004 से 24 अगस्त 2007 के बीच निजी बिल्डरों ने हरियाणा सरकार के अधिकारियों की मिलीभगत से मानेसर, नौरंगपुर और नाखनौला के किसानों और अन्य भू-स्वामीयों से लगभग 400 एकड़ जमीन बेहद कम दाम में खरीदी। स्पष्ट है कि इस मामले में पूरी तरह से किसानों के साथ छल किया गया था।
बहरहाल, सवाल यह उठता है कि अगर हुड्डा सरकार पाक साफ थी तो इस अधिग्रहण को रोकी क्यों नहीं? चार सौ एकड़ जमीन का मामला किसान हितों के साथ जुड़ा हुआ था तो सरकार ने इसपर गंभीरता का परिचय क्यों नहीं दिया? सरकार ने उन बिल्डरों व प्राइवेट कम्पनियों को लाइसेंस क्यों जारी किये? उपरोक्त सवाल का जवाब यही है कि इस जमीन घोटाले में बिल्डरों द्वारा किसानों की जमीन हड़पने में तत्कालीन हुड्डा नीत हरियाणा सरकार का पूरा सहयोग था।
अब मामला सीबीआई के हाथ आया है और कार्यवाही भी शुरू हो गई है तो हुड्डा साहब इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रहे हैं। चूंकि, हुड्डा साहब पर यह कार्रवाई ढींगरा आयोग द्वारा सरकार को रिपोर्ट सौंपने के ठीक बाद की गई है, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस रिपोर्ट में जरूर ऐसे साक्ष्य होंगे जो इस जमीन घोटाले में तत्कालीन हुड्डा सरकार की संलिप्तता का संकेत करते होंगे। कहा तो भी जा रहा है कि इसमे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी के दामाद रोबर्ट वाड्रा जिनके ऊपर भी इस जमीन घोटाले में शामिल होकर सस्ती दरों पर जमीनें हासिल करने का आरोप है, के खिलाफ भी साक्ष्य होंगे। बहरहाल, यह सब बातें तो तभी एकदम स्पष्ट होंगी जब इस घोटाले की जांच-रिपोर्ट सार्वजनिक होंगी। लेकिन, फिलहाल सीबीआई की कार्रवाई देखते हुए यह तो कह सकते हैं कि यह रिपोर्ट हुडा, वाड्रा आदि के लिए आफत का सबब ही बनने वाली है। अब सच्चाई अधिक दिन तक छिपी नहीं रह सकती।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)