नौकरशाही में लैटरल इंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में ही आया था, जब वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट दी थी। लेकिन सोनिया गांधी के रिमोट कंट्रोल से संचालित यूपीए सरकार ने इस प्रगतिशील सिफारिश को सिरे से खारिज कर दिया गया। सरकारी कार्यों के क्रमश: तकनीकी स्वरूप ग्रहण करने के कारण प्रशासनिक सुधार आयोग ने 2010 में सौपी अपनी दूसरी रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की। इस बार भी राजनीतिक कारणों से रिपोर्ट को सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकलने दिया गया। स्पष्ट है यूपीए शासन काल में व्यक्तिगत हितों के आगे देशहित को ठुकरा दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को दुनिया की महाशक्ति बनाने की दूरदर्शी योजना पर काम कर रहे हैं। मोदी सरकार के पिछले छह वर्षों के कार्यकाल में कई बार यह प्रमाणित हो गया कि जब भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। एक दौर वह था जब भारत अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मामलों में अपना स्वतंत्र रूख न अपनाकर विश्व की महाशक्तियों के भरोसे रहता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय विदेश नीति में पिछलग्गू वाले दौर को खत्म कर दिया। वर्तमान कोरोना त्रासदी में भी भारत की यह बढ़ी हुई क्षमता प्रमाणित हो रही है।
मोदी की सफलता का कारण है कि वे लीक से हटकर सोचते हैं और पेशेवर तरीके से काम करते हैं। अपनी इसी धुन के चलते प्रधानमंत्री नौकरशाही के शीर्ष पदों पर विशेषज्ञों की सीधी नियुक्त कर रहे हैं। सरकारी भाषा में इसे लैटरल इंट्री कहा जाता है। पहले दौर में सरकार ने पिछले साल संयुक्त सचिव के नौ पदों पर नौकरशाही से हटकर निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को नियुक्त किया।
अभी तक संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा, भारतीय वन सेवा परीक्षा व अन्य केंद्रीय सेवाओं की परीक्षाओं में चयनित अधिकारियों के कॅरियर में लंबा अनुभव हासिल करने के बाद संयुक्त सचिव पद पर नियुक्त किए जाने की परिपाटी रही है। इसका अपवाद सलाहकार होते थे जिन्हें विषय विशेषज्ञ के रूप में एक निर्धारित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है।
इन नियुक्तियों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह रही कि विशेषज्ञों के बजाए सत्ता पक्ष से नजदीकी रखने वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाती थी। इतना ही नहीं आगे चलकर सेवानिवृत्त नौकरशाहों को भी सलाहकार नियुक्त किया जाने लगा। इससे समस्या और बढ़ गई। दरअसल वरिष्ठ नौकरशाह सेवानिवृत्ति के बाद सलाहकार बनने के लिए सरकार के अनुचित कामों को भी हरी झंडी दिखाने लगे।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र के पेशेवरों की सरकार के नीति निर्णय में भागीदारी चाहते हैं। दरअसल यह उपलब्ध स्रोतों में से सर्वश्रेष्ठ को चुनने का एक प्रयत्न है। इसके पीछे प्रेरणा है कि यह हर भारतीय नागरिक को अपनी प्रतिभा और क्षमता के हिसाब से अपना विकास सुनिश्चित करने के लिए मौका देता है। इसी के तहत संयुक्त सचिव के बाद अब केंद्र सरकार उप सचिव और निदेशक स्तर के कुछ पदों पर भी निजी क्षेत्र के विशेषाज्ञों की नियुक्त करने की योजना बना रही है। शुरू में 40 अधिकारियों को नियुक्त किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात है कि ये सभी नियुक्तियां परिणामोन्मुखी होंगी। अर्थात यदि तय लक्ष्य हासिल नहीं होता है तो नियुक्तियों को रद्द भी किया जा सकता है।
नौकरशाही में लैटरल इंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में ही आया था, जब वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट दी थी। लेकिन सोनिया गांधी के रिमोट कंट्रोल से संचालित यूपीए सरकार ने इस प्रगतिशील सिफारिश को सिरे से खारिज कर दिया गया। सरकारी कार्यों के क्रमश: तकनीकी स्वरूप ग्रहण करने के कारण प्रशासनिक सुधार आयोग ने 2010 में सौपी अपनी दूसरी रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की। इस बार भी राजनीतिक कारणों से रिपोर्ट को सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकलने दिया गया। स्पष्ट है यूपीए शासन काल में व्यक्तिगत हितों के आगे देशहित को ठुकरा दिया गया।
इस दिशा में पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में लैटरल इंट्री की संभावना तलाशने के लिए एक समिति बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा की। शीर्ष स्तर पर नौकरशाही के अंदर इस प्रस्ताव पर विरोध और आशंका दोनों रही थी, जिस कारण इसे लागू करने में इतनी देरी हुई। अंतत: प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप के बाद मूल प्रस्ताव में आंशिक बदलाव कर इसे लागू कर दिया गया। हालांकि पहले प्रस्ताव के अनुसार सचिव स्तर के पद पर भी लैटरल इंट्री की अनुशंसा की गई थी लेकिन शीर्ष नौकरशाही के विरोध के कारण अभी संयुक्त सचिव के पद पर ही इसकी पहल की गई है। सरकार का मानना है कि लैटरल इंट्री आईएएस अधिकारियों की कमी को पूरा करने का भी प्रभावी जरिया बनेगा। फिर इससे सरकारी कार्य संस्कृति में एक नया बदलाव आएगा जो लीक से हटकर होगा।
संसद की स्थायी समिति ने भी प्रशासनिक तंत्र की गुणवत्ता में सुधार के लिए लैटरल इंट्री का सुझाव दिया है। हाल ही में संसद में पेश रिपोर्ट में स्थायी समिति ने सरकार को ग्रामीण, सामाजिक और वित्तीय क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों से जुड़े मंत्रालयों के समूह बनाकर इनमें विशेषज्ञता और विशेष रूचि रखने वाले अधिकारियों को नियुक्त करने की सिफारिश की है। स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनूठी पहल को अब संसद की भी स्वीकृति मिल गई है।
समग्रत: भारतीय राजनीति को कांग्रेसी संस्कृति से बाहर निकालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब कांग्रेसी कार्य संस्कृति में पली-बढ़ी नौकरशाही को भी बदलने की कवायद में जुट गए हैं। नए भारत के उदय की दिशा में यह एक ठोस कदम है।