सोनिया गांधी, जो लंबे समय से राजनीतिक रूप से निष्क्रिय थीं, चिदंबरम के बचाव में सार्वजनिक रूप से बयानबाजी पर उतर आईं। उन्होंने कहा कि राजीव गांधी भी सन 84 में बहुमत से जीतकर सत्ता में आए थे लेकिन उन्होंने लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा नहीं किया। निश्चित ही सोनिया गांधी का सामान्य ज्ञान अत्यंत कमजोर है। उन्हें लोकतंत्र का सही अर्थ पता होता तो वे ऐसी बातें ना करतीं। असल में, एक पूर्व मंत्री को, आरोप लगने पर, जांच के दायरे में लाना ही तो सच्चा लोकतंत्र है। यदि ऐसा नहीं तो यह नौकरशाह तंत्र अथवा नेता तंत्र जैसा कुछ कहलाता।
कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है। इस कहावत को वैसे तो कई बार साकार होते देखा गया है लेकिन देश की राजनीति में यह कहावत अब नए संदर्भों के साथ फिर सिद्ध हुई है। एक ओहदे के नाते कभी सीबीआई के बॉस रहे चिदंबरम अब सीबीआई की हिरासत में हैं। बीते दिनों में जो कुछ भी हुआ, सबने टीवी पर देखा, मीडिया से जाना और सोशल मीडिया पर चुटकी लेने से भी नहीं चूके।
पूर्व वित्त मंत्री, गृहमंत्री और कांग्रेस के दिग्गत नेता पी चिदंबरम अब कानून के शिकंजे में हैं। या यूं कहें कि आखिरकार वे कानून के शिकंजे में हैं। आईएनएक्स मीडिया केस में वे फंसे हुए तो लंबे समय से थे, लेकिन अब जब बुरी तरह घिर गए तो आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गए थे।
देश के बड़े और जिम्मेदार पदों पर रहने वाले चिदंबरम, जो स्वयं कानून के गहरे जानकार हैं, इस तरह कानून को ताक पर रखकर किसी अपराधी की तरह गायब हो जाएंगे, किसी ने सोचा नहीं था। फिर जब उन्हें भान हुआ कि अब तो अग्रिम जमानत भी नहीं मिलने वाली है, तो विक्टिम कार्ड खेलते हुए नाटकीय अंदाज में 20 से अधिक घंटों तक लापता रहने के बाद अचानक प्रकट हो गए। आते ही उन्होंने सफाई देना शुरू कर दी। प्रेस वार्ता कर डाली। सबसे आश्चर्य की बात है कि सामने आने के लिए उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय का स्थान चुना।
उन्होंने स्वयं को पाक साफ बताकर यह दुहाई दी कि वे अपने वकीलों से चर्चा कर रहे थे इसलिए व्यस्त थे। वकीलों के साथ कागजात तैयार करना और गायब होना, अलग-अलग बातें हैं। फिर, यदि वे सचमुच तैयारी ही कर रहे थे तो ये तैयारियां धरी क्यों रह गईं। हिरासत में तो उन्हें आना ही पड़ा। वह भी बेहद नाटकीय ढंग से।
सीबीआई के अधिकारियों को उनके घर की दीवार फांदकर उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। इतनी भद पिटने के बाद आखिर वे किस मुंह से स्वयं को पाक साफ बता रहे हैं। उनकी यह बेशर्मी यहां भी नहीं थमी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उल्टे सीबीआई और ईडी के खिलाफ याचिकाएं लगाईं जिन्हें खारिज कर दिया गया है।
हालांकि वे अब पूरी तरह से कानून के शिकंजे में हैं और 30 अगस्त तक सीबीआई की पूछताछ से गुजरेंगे। उनके गिरफ्त में आने के समय ही सरकार ने उनकी कई संपत्तियों को जब्त करना शुरू कर दिया है। यह एक अच्छा संकेत है और त्वरित कार्यशैली का भी श्रेष्ठ उदाहरण है कि किस प्रकार एक आरोपी पूर्व मंत्री की बेहिसाब संपत्ति का हिसाब किया जाना चाहिये।
चिदंबरम ने अपने दीर्घ कार्यकाल में इतनी अधिक अनियमितताएं, मनमानी और कदाचरण किए हैं कि उन पर चलाई जाने वाली ट्रायल में समय लग सकता है। निश्चित ही जांच एजेंसियां अपना काम कर रही हैं, न्याय पालिका अपना काम करेगी। लेकिन इन सबके बीच जो बात सबसे अधिक हैरान करने वाली है, वह है कांग्रेस का रूख।
कांग्रेस अब खुलकर चिदंबरम के समर्थन में आ खड़ी हुई है और सरकार की कार्यवाही पर आक्षेप लगा रही है। बिना इस बात को सोचे कि वर्तमान में चिदंबरम केवल आरोपी हैं, उन्हें मुजरिम करार नहीं दिया गया है। वे निर्दोष भी बच सकते हैं और दोषी भी साबित हो सकते हैं। लेकिन कांग्रेस का चिदंबरम के पक्ष में उन्हें एकदम पाक साफ बताते हुए सामने आना सवाल खड़े करता है। कांग्रेस की बौखलाहट चरम पर है। सोनिया गांधी को अब शायद डर लगने लगा है कि पूछताछ में चिदंबरम सीबीआई के सामने कुछ ऐसी बात ना कह दें जिससे यूपीए के पूरे दस वर्षों के कार्यकाल का कच्चा चिट्ठा सामने आ जाए।
आखिर चिदंबरम ने जो भी आर्थिक गड़बडि़यां की हैं, सब यूपीए सरकार में ही की हैं। इसी घबराहट का परिणाम था कि सोनिया गांधी, जो लंबे समय से पृष्ठभूमि में थीं, अब सार्वजनिक रूप से बयानबाजी पर उतर आईं। उन्होंने कहा कि राजीव गांधी भी सन 84 में बहुमत से जीतकर सत्ता में आए थे लेकिन उन्होंने लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा नहीं किया। निश्चित ही सोनिया गांधी का सामान्य ज्ञान अत्यंत कमजोर है। उन्हें लोकतंत्र का सही अर्थ पता होता तो वे ऐसी नासमझी भरी बातें ना करतीं। असल में, एक पूर्व मंत्री को, आरोप लगने पर, जांच के दायरे में लाना ही तो सच्चा लोकतंत्र है। यदि ऐसा नहीं तो यह नौकरशाह तंत्र अथवा नेता तंत्र जैसा कुछ कहलाता।
चिदंबरम को इस देश में वित्त और गृह मंत्रालय जैसे अहम दायित्व मिले, यह भी लोकतंत्र था, लेकिन उन्होंने इसका दुरुपयोग करते हुए गड़बडि़यां कीं, और अब जब वे कानून के पिंजरे में हैं, तो यह भी लोकतंत्र की ही सच्ची ताकत है। चिदंबरम अकेले नहीं थे, उनपर सपरिवार घोटाले के आरोप हैं। उनके बेटे कार्ति और पत्नी नलिनी भी आईएनएक्स और सारधा घोटाले में पूछताछ से कई बार गुजर चुके हैं और उनका भी अभी ट्रायल होना शेष है। लोकतंत्र का मजाक तो सोनिया गांधी उड़ा रही हैं। एक आरोपी के पक्ष में आकर वे स्वयं लोकतंत्र का उपहास कर रही हैं।
पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि वे चिदंबरम के साथ हैं। उन्होंने कहा कि सच की लड़ाई जारी रहेगी। प्रियंका से पूछा जाना चाहिये कि सच की लड़ाई लड़ने वाले सामने आकर लड़ते हैं या फरार होने की कोशिश करते हैं। मोदी सरकार की कार्यवाही को अलोकतांत्रिक बताने वाली सोनिया-प्रियंका यदि वास्तव में लोकतंत्र की हिमायती हैं, तो उन्हें निष्पक्ष होकर पूरे मामले में जांच के लिए सरकार एवं एजेंसियों को सहयोग करना चाहिये। चिदंबरम के शिकंजे में आने से कांग्रेस प्रमुख का विचलित हो जाना जरूर यह संकेत देता है कि दाल में कुछ काला है। बहरहाल, चिदंबरम रिमांड बढ़ने के बाद अब 30 अगस्त तक हिरासत में रहेंगे और उम्मीद है कि पूछताछ में उनसे अहम सुराग पता चल सकेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)