कश्मीर पर पाकिस्तान की ‘भाषा’ क्यों बोल रहे हैं पी चिदंबरम ?

कश्मीर की अलगाववादी ताकतों के प्रति मोदी सरकार के कड़े रुख और सेना को दी गयी खुली छूट के कारण ये ताकतें एकदम बौखलाई हुई हैं; इसी कारण कश्मीर में इन दिनों कभी  हथियारबंद आतंकियों तो कभी पत्थरबाजों के जरिये वे सेना की कार्रवाई को कुंद करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन, हमारे जवान इन चीजों से बेपरवाह कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए कमर कसकर मोर्चा संभाले हुए हैं। अब सरकार और सेना के संयुक्त प्रयासों से कश्मीर में अलगाववादियों की ज़मीन कमज़ोर होती नज़र आ रही है। घाटी में परिवर्तन के संकेत दिखाई देने लगे हैं। लेकिन इन्हीं सबके बीच देश के स्वनामधन्य सबसे पुराने दल कांग्रेस के नेता और पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम साहब का एक ऐसा बयान आया है, जो न केवल राष्ट्रीय अखंडता पर कुठाराघात की तरह है, बल्कि  घाटी में अपनी जान हथेली पर लेकर संघर्ष कर रहे हमारे जवानों के मनोबल को भी गिराने वाला है।

दरअसल यह कोई पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस के किसी नेता की तरफ से इस तरह का बयान दिया गया हो। इशरत जहां एनकाउंटर मामलों से लेकर अभी हाल ही में हुई सर्जिकल स्ट्राइक तक आतंक के विरुद्ध लड़ाई को कमज़ोर करने वाला कांग्रेस का रुख एकदम स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। लश्कर आतंकी इशरत जहाँ के एनकाउंटर को भी फर्जी बताने का काम कांग्रेस करती रही है। यहाँ तक कि अभी जो चिदंबरम साहब ‘कश्मीर के हाथ से निकलने’ की बात कह रहे, गृहमंत्री रहते हुए इशरत जहाँ को आतंकवादी साबित नहीं होने देने और एनकाउंटर को फर्जी साबित करने के लिए उन्होंने जांच रिपोर्टों में कैसे फेर-बदल किया, ये भी अब कोई छुपी बात नहीं रह गयी है।

चिदंबरम ने अपने एक हालिया बयान में देश को यह दिव्यज्ञान दिया है कि मोदी सरकार की गलत नीतियों के कारण कश्मीर आज हमारे हाथ से निकल चुका है। हालांकि इस ज्ञान के पीछे क्या आधार है, इस बारे में चिदंबरम महोदय कुछ नहीं बोले। चिदंबरम के इस बयान से स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का वैचारिक दिवालियापन लगातार बढ़ता जा रहा है। कहने की आवश्यकता नहीं कि एक तरफ जिस कश्मीर में शांति और सुव्यवस्था के लिए हमारे जवान अपनी जान जोखिम में डालकर लगे हुए हैं, दूसरी तरफ उसी कश्मीर के सम्बन्ध में देश के एक पूर्व गृहमंत्री का ऐसा गैर-जिम्मेदाराना बयान शर्मनाक होने के साथ–साथ आतंक के खिलाफ लड़ाई को कमज़ोर करने वाला भी है। विडंबना तो यह है कि अपने नेता के ऐसे आपत्तिजनक बयान के बाद भी कांग्रेस की तरफ से चिदंबरम पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई तो दूर इस बयान पर किसी तरह की सफाई या खंडन तक व्यक्त नहीं किया गया है। ऐसे में यह क्यों नहीं समझा जाए कि कांग्रेस अपने नेता के इस राष्ट्र-विरोधी बयान के प्रति मौन समर्थन व्यक्त कर रही है।        

दरअसल यह कोई पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस के किसी नेता की तरफ से इस तरह का बयान दिया गया हो। इशरत जहां एनकाउंटर मामलों से लेकर अभी हाल ही में हुई सर्जिकल स्ट्राइक तक आतंक के विरुद्ध लड़ाई को कमज़ोर करने वाला कांग्रेस का रुख एकदम स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। लश्कर आतंकी इशरत जहाँ के एनकाउंटर को भी फर्जी बताने का काम कांग्रेस करती रही है। यहाँ तक कि अभी जो चिदंबरम साहब ‘कश्मीर के हाथ से निकलने’ की बात कह रहे, गृहमंत्री रहते हुए इशरत जहाँ को आतंकवादी साबित नहीं होने देने और एनकाउंटर को फर्जी साबित करने के लिए उन्होंने जांच रिपोर्टों में कैसे फेर-बदल किया, ये भी अब कोई छुपी बात नहीं रह गयी है। अभी गत वर्ष सितम्बर में हमारे जवानों द्वारा पीओके में घुसकर आतंकी ठिकानों पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक की गयी, जिसके बाद सारा देश जवानों के प्रति अपना समर्थन व सम्मान व्यक्त कर रहा था; वहीँ कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक की प्रामाणिकता पर सवाल उठाने में लगी थी। इस प्रकार स्पष्ट है कि कांग्रेस ने आतंक के विरुद्ध लड़ाइयों को अपने बयानों व गतिविधियों से अक्सर कमज़ोर करने का ही काम किया है।

दरअसल कांग्रेस जब खुद सत्ता में थी, तो आतंक और उसके प्रायोजक पाकिस्तान के विरुद्ध उसका रुख एकदम लचर ही रहा था। कोई ठोस नीति नहीं थी। कश्मीर के अलगाववादियों के प्रति भी कांग्रेस ने नरम रुख ही रखा था। इसके विपरीत मोदी सरकार ने आतंकवाद और पाकिस्तान दोनों के प्रति न केवल सैद्धांतिक बल्कि व्यावहारिक रूप से भी बेहद कठोर रुख का परिचय दिया है। कश्मीर के अलगाववादियों से निपटने में भी सरकार किसी तरह से कोई नरमी दिखाने के मूड में नहीं दिख रही। सरकार के इस रुख का अत्यंत सकारात्मक प्रभाव भी दिखने लगा है। इस कारण कांग्रेस बौखलाई हुई है और कहीं न कहीं चिदम्बरम का ताज़ा बयान इस बौखलाहट का ही परिणाम है। मगर, ऐसे बयानों से हमारे सैन्य बलों का मनोबल गिरने से लेकर कूटनीतिक स्तर पर तक देश को कितनी हानि उठानी पड़ सकती है; क्या कांग्रेस को इसका अंदाज़ा है ? क्या देश के एक पूर्व गृहमंत्री के इस तरह के बयान से कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के रुख को बल नहीं मिलेगा ? कहने की आवश्यकता नहीं कि कश्मीर पर चिदंबरम का ताज़ा बयान एकदम पाकिस्तान की भाषा बोलने जैसा है। अतः उचित होगा कि इसके लिए वे देश से माफ़ी मांगें और कश्मीर मसले पर अपना रुख स्पष्ट करें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)