गौरी शंकर राजहंस
अमेरिका के रक्षा मंत्री एस्टन कार्टर और भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हाल में जो घोषणाएं कीं वे अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। दोनों मंत्रियों ने इस बात का ऐलान किया कि दोनों देशों की सैन्य सुविधाओं को साझा करने के लिए ‘लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज’ ‘मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट’ पर सैद्धांतिक रूप से सहमति बन गई है। इस एग्रीमेंट के तहत भारत और अमेरिका दोनों देश जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की सैन्य छावनी एयरबेस और नौसेना बेस का उपयोग कर सकेंगे। यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण ऐलान है। वर्तमान में चीन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तेजी से अपनी दादागीरी दिखा रहा है, जिसकी पुख्ता जानकारी अमेरिकी सेटेलाइट ने दी है। चीन ने साउथ चाइना सी के छोटे-छोटे द्वीपों पर तेजी से कब्जा करके अपने भूभाग से 500 किलोमीटर दूर समुद्र में ‘द ग्रेट वॉल ऑफ सैंड’ अर्थात् बालू की दीवार खड़ी कर दी है। कई द्वीपों को मिलाकर उसमें 3000 मीटर लंबी हवाई पट्टी बनाई है। साउथ चाइना सी के जिस क्षेत्र को चीन ने छोटे-छोटे द्वीपों को मिलाकर सूखी जमीन बना ली है, उसने हाल में वहां एक हवाई अड्डा भी बना लिया है और कुछ सप्ताह पहले वहां एक लड़ाकू हवाई जहाज इस क्षेत्र में उतारा गया। चीन इसे अपने पर्यटन उद्योग का विस्तार बता रहा है, परंतु अमेरिका ने अपने सेटेलाइट से यह पता लगा लिया कि इन क्षेत्रों में चीन अपना सैनिक विस्तार कर रहा है। कहीं ऐसा न हो कि चीन इन टापुओं पर कब्जा कर ले और निकटवर्ती दक्षिण-पूर्व एशिया के देश हाथ मलते रह जाएं। 1दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ समझौता करने के लिए चीन पर अमेरिका पहले से ही दबाव बनाता रहा है, लेकिन चीन पर इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है, वह खुद को मालिक ही समझ रहा है। तेल और गैस के विशाल भंडार वाले इन क्षेत्रों पर चीन का आधिप्त्य दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के लिए अत्यंत चिंताजनक बात होगी। चीन की बढ़ती हुई दादागीरी के आलोक में अमेरिका के मित्र देशों ने माना है कि चीन के इस दुस्साहस को रोकना आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि ‘साउथ चाइना सी’ को संसार के सभी व्यापारिक जहाजों के आवागमन के लिए खुला रहना चाहिए। किसी भी देश को यह हक नहीं है कि वह इसमें अड़ंगा डाले। अमेरिका का ‘साउथ चाइना सी’ के रास्ते हर 1200 अरब डालर का व्यापार होता है। इस संदर्भ में देखा जाए तो अमेरिकी रक्षा मंत्री का भारत और अमेरिका के बीच सैनिक संधि का ऐलान कई मायने में महत्वपूर्ण है। चीन की मौजूदा दादागीरी के आलोक में यदि अमेरिका के साथ कोई सैन्य समझौता होता है तो वह निश्चय ही भारत के लिये बहुत लाभ्रपद होगा। चीन का भारत विरोधी रुख इसी से स्पष्ट हो जाता है कि हाल में संयुक्त राष्ट्र में पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने को उसने वीटो कर दिया। अब यह स्पष्ट हो गया है कि वह पाकिस्तान को भारत की तुलना में हर तरह की तरजीह देना चाहता है। जब चीन के राष्ट्रपति भारत आए थे तो भारत में उनका भव्य स्वागत हो रहा था। परंतु उसी समय चीनी सेना ने बड़े पैमाने पर लद्दाख में घुसपैठ कर दी थी। चीन ने फिलीपींस के कई निकटवर्ती द्वीपों को हथिया लिया है। चीन एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की उपस्थिति किसी भी सूरत में नहीं चाहता है। भारत-अमेरिका सैन्य सहयोग की बात ने चीन को और उद्वेलित कर दिया है। चीन चाहे लाख भड़के, हमें अपने देश का हित देखना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्थायित्व और शांति कैसे बरकरार रह सकती है। उधर अमेरिका को भी अपने पाकिस्तान के प्रति सहयोगात्मक रवैये पर विचार करना होगा।
(लेखक राज्यसभा सांसद रहे हैं)