अब चीन के पीछे हटने की खबर आने के बाद भी कांग्रेस चीजों में मीनमेख निकालती नजर आ रही है। राहुल गांधी सरकार पर ऊल-जुलूल सवाल उठाने में लगे हैं। ऐसे में, सवाल है कि चीन तो पीछे हट गया, लेकिन कांग्रेस राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर राजनीति करने से कब पीछे हटेगी?
भारत-चीन के बीच सीमा पर चल रहा गतिरोध चीन के पीछे हटने के साथ समाप्त हो चुका है और डोकलाम प्रकरण के बाद एकबार फिर साबित हो गया है कि ये नए दौर का भारत है, जो अपनी राष्ट्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा।
देखा जाए तो प्रारंभ से ही नरेंद्र मोदी की विदेश नीति स्पष्ट रही है। पिछले कार्यकाल के प्रारंभ में ही उन्होंने दिशा का निर्धारण कर दिया था। तब मोदी ने कहा था कि भारत किसी देश से आंख झुका कर या आंख दिखा कर बात नहीं करेगा बल्कि वह आँख मिला कर बात करेगा। विदेश नीति के संदर्भ में इस कथन का व्यापक अर्थ था।
वस्तुतः इस कथन में भारतीय चिन्तन का समावेश था, जिसमें शांति व सौहार्द की कामना निहित है। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में भी कहा था कि भारत युद्ध नहीं, बुद्ध का देश है। हम शांति के पक्षधर हैं, उसके अनुरूप प्रयास करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि हमको किसी देश की घृष्टता का जवाब देना नहीं आता।
पिछले कार्यकाल की शुरुआत में मोदी ने अपनी विदेश नीति का यह सिद्धांत बताया था और पहले दिन से ही वह इसको व्यवहार में भी ले आये थे। तब अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने सार्क के सदस्य देशों को आमंत्रित किया था। इसमें पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ भी शामिल थे। यह आँख मिलाकर बात करने का प्रयास था। लेकिन जब पाकिस्तान ने आतंकी हमले से आँख दिखाई, तो उसके भीतर घुस कर भारत ने सर्जिकल व एयर स्ट्राइक भी की।
इसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ आंख मिलाकर रिश्तों में सुधार का प्रयास किया। मोदी की चीन और चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा इसी सिद्धांत के अनुरूप थी। लेकिन जब डोकलाम में चीन ने आंख दिखाने का प्रयास किया, तो भारत के सैनिकों ने उसे माकूल जवाब भी दिया। इसके बाद चीन यथास्थिति पर सहमत हुआ था।
एक बार फिर चीन ने गलवान में अपना असली चेहरा दिखाया। उसने भारतीय सीमा में घुसने का प्रयास किया। तब हमारे जांबाज सैनिकों ने बलिदान देकर अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखा और चीन को उसकी जगह भी दिखाई। इस झड़प में चीन के भी अनेक सैनिक मारे गए थे।
नरेंद्र मोदी की लेह यात्रा ने भी बड़ा सन्देश देने का काम किया। सुबह सात बजे ही नरेंद्र मोदी लेह लद्दाख पहुंच गए थे। उन्होंने लेह के नीमू फॉरवर्ड पोस्ट पर अधिकारियों से बात की और सुरक्षा स्थिति समीक्षा की। उन्होंने सैनिकों से भी संवाद किया।
वह नीमू के एक फॉरवर्ड लोकेशन पर गए थे। यह भी चीन को सीधा सन्देश था। यह जगह ग्यारह हजार की ऊंचाई पर स्थित है। यह क्षेत्र सिंध नदी के किनारे जांस्कर रेंज से घिरा दुर्गम स्थान है। नीमू दुनिया की सबसे ऊंची और खतरनाक पोस्ट में से एक है। प्रधानमंत्री के साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे भी इस दुर्गम पोस्ट पर गए थे।
इस यात्रा से प्रधानमंत्री ने न केवल सेना के मनोबल को धार दी बल्कि चीन को भी स्पष्ट सन्देश दिया कि अब उसकी मनमानी नहीं चलेगी और देश की सरकार पूरी तरह से सेना के साथ है।
दरअसल नरेंद्र मोदी ने सुनियोजित रणनीति अपनाई है। मन की बात में उन्होंने कहा था कि लद्दाख में हुई झड़प का चीन को उचित जवाब दे दिया गया है। इसके दो दिन के अंदर भारत ने चीन के 59 ऐप्स को बैन कर दिया था। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे भारत की चीन पर डिजिटल स्ट्राइक करार दिया था, क्योंकि इससे चीन को बड़ा नुकसान हुआ है।
प्रधानमंत्री जब लेह में थे, तब उनमें ऐसा आत्मविश्वास था जैसे पूरा देश उनके साथ है और यह सच भी है कि जनता अपने प्रधानमंत्री के हर निर्णय में पूरे विश्वास सहित उनके साथ है। लेकिन यह बिडम्बना है कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस एकजुटता से अलग ही दिखाई दे रही है। चीन के साथ झड़प के बाद से अबतक उसका यही नजरिया चल रहा है।
वह चीन की जगह अपनी ही सरकार पर हमला बोल रही है। कांग्रेस के नेता जब कहते हैं कि चीन ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है, नरेंद्र मोदी ने सरेंडर कर दिया है, तब वह चीन का ही मनोबल बढ़ा रहे होते हैं। उनको यह अनुभूति होनी चाहिए कि इस समय ऐसी शब्दावली अपने ही देश के लिए ठीक नहीं है।
नरेंद्र मोदी ने इस संकट में पूरे देश को साथ लेकर चलने का प्रयास किया है। इसीलिए उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। ऐसी बैठक केवल राष्ट्रीय सहमति को ही आवाज बुलंद करने के लिए होती है।
लेकिन कांग्रेस ने इसका भी अपनी राजनीति के लिए उपयोग किया। कांग्रेस नरेंद्र मोदी पर ही हमला बोलती रही। जबकि इनका सेना पर अपरोक्ष रूप में प्रभाव पड़ सकता था। ऐसे बयानों से बचने की आवश्यकता थी। बैठक में कांग्रेस राष्ट्रीय एकजुटता के सन्देश में बाधक दिखाई दे रही थी। उसे केवल सरकार को घेरना था।
विचित्र ये है कि अब चीन के पीछे हटने की खबर आने के बाद भी कांग्रेस चीजों में मीनमेख निकालने में लगी है। राहुल गांधी ऊल-जुलूल सवाल उठाने में लगे हैं। ऐसे में, सवाल है कि चीन तो पीछे हट गया, लेकिन कांग्रेस राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर राजनीति करने से कब पीछे हटेगी?
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)