सवाल यह है कि चीन इन दिनों सीमा पर इतने अराजक आचरण का परिचय क्यों दे रहा है? दरअसल इसके पीछे चीन की बौखलाहट है। विश्व बिरादरी में भारत का बढ़ता प्रभाव उसकी आँख की किरकिरी बना हुआ है। दूसरी चीज कि अपनी जिस सैन्य-शक्ति और आर्थिक साम्राज्य पर चीन को बहुत ज्यादा भरोसा था, अब उन दोनों से ही मुकाबले की मजबूत इच्छाशक्ति भारत ने दिखा दी है।
भारत और चीन के बीच फिर तनाव शुरू हो गया है। लद्दाख की गलवन घाटी में चीनी सैनिकों से हुई हिंसक झड़प को अभी दो महीने ही बीते थे कि फिर से चीन ने अपनी घुसपैठ की हरकत शुरू कर दी है। यह बात अलग है कि मुस्तैद भारतीय सेना के जाबांज जवानों ने इस कोशिश को ना केवल नाकाम कर दिया बल्कि करीब 500 चीनी सैनिकों को पीछे भी धकेलने की बड़ी सफलता अर्जित की।
समाचार माध्यमों में ये सूचनाएं चल रही हैँ कि पैंगोंग लेक के क्षेत्र में चीन किसी बड़ी साजिश की तैयारी में था। बीते दो दिनों में 500 से अधिक चीनी सैनिक एलएसी पार करके भारत के क्षेत्र में शिविर लगाने के मंसूबे लिए आ धमके थे।
लेकिन शायद चीन को पता नहीं है कि यह पहले वाला भारत नहीं है। इस देश का रवैया, तौर-तरीका और सोचने, करने का ढंग, सब बदल चुका है। हमारी सेना के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए ऐसी दृ़ढ़ता दिखाई कि चीन के सैनिक उल्टे पांव भाग खड़े होने को विवश हो गए।
दोनों तरफ से इस बार भी झड़प हुई लेकिन गनीमत है कि खूनी संघर्ष नहीं हुआ। संघर्ष की बात चली है तो याद दिला दें कि गलवन घाटी में हुई झड़प में भारतीय सैनिकों ने चीन के सैनिकों को केवल शारीरिक बल के बूते पर ही धूल चटा दी थी और तब आई ख़बरों के मुताबिक़, चीन के 40 सैनिक ढेर कर दिए थे।
इस बार भी पैंगोंग लेक के क्षेत्र में चीन ने वही घटना दोहराने की कोशिश की। फिलहाल चीन भारतीय सीमा में घुसपैठ तो नहीं कर पाया है लेकिन इस ताजी घटना के बाद से दोनों राष्ट्रों के मध्य चला आ रहा तनाव और अधिक गहरा गया है।
इन दो घटनाओं ने कई प्रसंगों को ताजा कर दिया है। मसलन, भारत व चीन के बीच तनाव के दौरान सरकार और सेना तो अपने स्तर पर जो करना है करती ही हैं, जनता का रूख भी स्पष्ट रहता है, लेकिन विपक्ष ऐसे में क्या रवैया अपनाता है।
विरोधी राष्ट्र के साथ तनाव के क्षणों में विपक्ष के कृत्य, नीतियां संदिग्ध क्यों हो जाती हैं। या तो विपक्ष मौन धारण कर लेता है या अति मुखर हो उठता है और देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर सरकार को घेरने में लग जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में चीन से तनाव का यह पहला अवसर नहीं है। इससे पिछले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2017 में डोकलाम क्षेत्र में चीन से तनाव गहराया था। यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय सुर्खी बना था। प्रधानमंत्री मोदी उस समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से चर्चा करके इस मसले के हल पर लगातार बात कर रहे थे, उसी दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चीन के राजदूत से मिलने गुपचुप तरीके से देश के बाहर चले गए।
हालांकि मोदी सरकार की दृढ़ता एवं अजीत डोभाल की सूझबूझ के चलते डोकलाम मामला भी ठंडा पड़ गया और चीन ने जहां अपनी सेना तैनात कर दी थी, वहां से सेना हटा ली। यही प्रकरण गलवन और पैंगोंग लेक क्षेत्र में व्याप्त हुए तनाव के संदर्भ में भी प्रासंगिक जान पड़ता है।
बहरहाल, सवाल यह है कि चीन इन दिनों सीमा पर इतने अराजक आचरण का परिचय क्यों दे रहा है? दरअसल इसके पीछे चीन की बौखलाहट है। विश्व बिरादरी में भारत का बढ़ता प्रभाव उसकी आँख की किरकिरी बना हुआ है। दूसरी चीज कि अपनी जिस सैन्य-शक्ति और आर्थिक साम्राज्य पर चीन को बहुत ज्यादा भरोसा था, अब उन दोनों से ही मुकाबले की मजबूत इच्छाशक्ति भारत ने दिखा दी है।
चीनी सैन्य शक्ति को तो हमारे जवान सीमा पर लगातार माकूल जवाब दे ही रहे हैं, इधर कोविड काल के दौरान देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में सरकारी मंजूरी को आवश्यक करने का नियम हो या गलवन प्रकरण के बाद चीन के 59 मोबाइल ऐप्स पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना हो, ऐसे क़दमों से भारत सरकार ने भी उसे स्पष्ट सन्देश दे दिया है कि भारत अब 1962 क्व जमाने से बहुत आगे बढ़ गया है और अब वो किसी भी मोर्चे चीन की धौंस नहीं सहेगा।
भारत द्वारा इस तरह हर मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब मिलने से चीन एकदम बौखलाया हुआ है और इसी बौखलाहट में सीमा पर तनाव पैदा कर भारत को परेशान करने की नाकाम कोशिश में है। मगर उसे समझ लेना चाहिए कि हमारे वीर जवानों के सीमा पर होते हुए उसकी ऐसी हरकतें इस देश को परेशान नहीं कर सकतीं।
ऐसी कोशिशों में उसे हर बार मुंह की खानी पड़ेगी। भारत हमेशा की तरह बातचीत के रास्ते शांति एवं स्थायित्व बनाए रखना चाहता है लेकिन यदि प्रतिपक्ष ने सीमाएं लांघी तो उसका भी जवाब देना हमें बखूबी आता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)